रोना काहे का
जिनसे गलतियाँ होती हैं वह जानते हैं कि उन्होंने क्या किया है उसका जवाब सोच लेना ही उनका ध्यान 'मेडिटेशन' होता है उनसे कुछ भी कहो तो उनके पास ऐसे सधे उत्तर होते हैं कि आप अपने को एकदम बेवकूफ महसूस करते हैं उनसे बहस करने को उनके स्तर पर उतरना होता है और उस स्तर की भाषा व विद्या से अनभिज्ञ होने पर मुँह की खानी पड़ती है तो रोना काहे का यही तो सजा है यही सजा है छोड़कर स्तर अपना फँसना उनके बनाए चक्रव्यूह में मानो गुरु उनको जो लेते हैं परीक्षा आपकी बार-बार और तुम डिगते हो बार-बार अपनी स्थितप्रज्ञ एक निश्चय वाली स्थिति से शायद तुम्हारी ही दृढ़ता में रह जाती है कुछ कमी नमन प्रणाम इन सब गुरुओं को जो घसीटते हैं बार-बार तुम्हें अपने ही पोषित विषवमन को पर तुम्हें होता है अहसास बार-बार अपनी दृढ़ता की कमजोरी का उन्हीं के कर्मों द्वारा…