सुरीली

बजी बांसुरी कृष्ण की शान्ति के बिगुल सी मीना के मन सी सत्य के कथन सी प्रेम के सपन सी राधा के प्राण सी कर्म के आयाम सी जागरण के आह्वान सी जीवन के नव-विहान सी वेद के विधान सी कृष्ण के अनुप्राण सी मीना न सोई सी न जागी सी ब्रह्माण्ड की आँख की पुतली सी मनभाई सी मन ही मन मुस्काई सी दुर्गा सी ब्रह्मवादिनी मीना स्वयं साधिनी मीना मनु यही सत्य है यहीं सत्य है प्रणाम मीना ऊँ

एक ही बात

तेरा मेरा एक ही प्राण प्रभो तुम ही तो भेजते हो जगह-जगह क्यों कृष्ण क्यों जगह-जगह फिराए तुम्हारा विरह जो जो भी काम कराने हैं जिन जिनके कर्म धुलवाने हैं खुलवाने हैं तुमने मेरे कदम वहीं तो पहुँचाने हैं क्यों चुना मुझे ही कृष्ण? यही तो बात है मीना के मुस्कराने की अन्तर में दर्द छुपाने की दिल में अथाह विरह ऊपर मनोहारी मुस्कान करे तेरा गुणगान ना देना अभिमान मेरा तेरा तो एक ही है प्राण कहाँ-कहाँ घुमाए तेरा विरह अपने ही कर्म कराने को बड़े चतुर हो प्रभो पर मीना जाने तुम्हारी चतुराई सकल सृष्टि में क्रिया समाई काठमांडू भेजा राज परिवार का कल्याण हुआ गुजरात भेजा भूकंप ला दिया न्याय विधान स्थापित किया और भी बहुत कुछ कराते रहते हो कन्हाई झूला धीरे-धीरे झुलाया करो ओ सांवरे कन्हाई यही तो है खुदाई तुम्हारी सब जानो हो ओ मुरारी ओ मुरारी यही सत्य है यहीं सत्य है प्रणाम…