परम योग

ऊँ ग्राँ ग्रीं ग्रों स: गुरवे नम: परम गुरु प्रणाम सम्पूर्ण मानव शब्दकोषों में एक भी शब्द ऐसा नहीं जो इस अनुभूति को बता सके राई जैसा ब्रह्माण्ड उससे भी परे सकल ब्रह्माण्डों को एक मुट्ठी में थमा दिया सत्य बता दिया यही है सत्य यहीं है सत्य !! प्रणाम मीना ऊँ

ज्ञान-दान दीक्षा

मुझे युग-युगान्तर तक सहज उपलब्ध हों ज्ञान ब्रह्मा का दिल बड़ा ब्रह्माण्ड का तेज सूर्य का अमृत चन्द्रमा का विस्तार सागर का ज्ञान शारदा का शक्ति शिव की नैतिकता विदुर की गुण राम के त्याग दधीचि का नीति-वैराग्य कृष्ण का क्षमा ईसा की सेवा हनुमान की फकीरी कबीर की भक्ति नानक की प्रीति मीरा की तपस्या बुद्ध की दया महावीर की प्रतिज्ञा प्रताप की चरित्र शिव का बुद्धि की तीव्रता विवेकान्द की प्रभावी व्यक्तित्व रजनीश का सूक्ष्मदर्शिता अरविन्द की कृपा सांई राम की श्रद्धा रविदास की उदारता सनातन धर्म की आँचल प्यारभरा माँ का अनुपम प्रेम माँ भारती का प्रभुता सत्य प्रेम कर्म व प्रकाश की मुझे युग-युगान्तर तक सहज उपलब्ध हों हे प्रभु गुरु के सत्य कर्म व धर्म की शक्ति भी तो दो देनी ही होगी मन ही मन गुरु को शत्-शत् प्रणाम करती हूँ प्रभु मेरे पापों को क्षमा करो सत्याचरण नम्रता सहनशीलता की शक्ति दो शक्तिरूप…

मंगलाचरण

गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णु गुरूर्देवो महेश्वर:। गुरु साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नम:॥ जन्म-जन्मान्तर से सृष्टि के आरम्भ से ही हूँ थी और रहूँगी युगों-युगों से जन्म-जन्म से मेरे गुरु स्वयं ब्रह्मा विष्णु महेश हैं आत्मा का काव्य सत्य है यही सत्य है। यहीं सत्य है।। प्रणाम मीना ऊँ

प्रणाम बंधु निवेदन

न प्रशंसा करो, न आलोचना, न ही तुलना करोन प्रेम करो, न ही अपनाओ, न ही नकारोबस स्वीकारो, एक प्रकाश का राही हूँ नि:स्वार्थ सरल प्रेम का सागर लिए स्व अनुभूत प्रकाश की गागर लिए प्रणाम कर्म को अर्पित, सत्य यज्ञ की आहुति होने को समर्पितएक प्रकाश का राही हूँ, बस स्वीकारो भान नहीं योग्य हूँ या अयोग्य, समर्थ हूँ या असमर्थ दृढ़ प्रतिज्ञ हूँ एक निश्चय हूँ यही एक राह है जीवन की प्रणाम में साथ बढ़ने को अग्रसर बहने को तत्पर होने को संयुक्त सत् चित् आनन्द के स्रोत में, करने को प्रणाम प्रकाश का विस्तार यही है प्राकृतिक अस्तित्व मेरा यही है रूपांतरण का सार बस स्वीकारो एक प्रकाश का राही हूँहूँ अर्पित समय की पुकार को सत्य की गुहार कोकरने को सर्वस्व न्योछावर ताकि दे सकूँ यह प्रमाण काल को जो यहीं परिष्कृत हुआ, इसी धरा पर पूर्ण समर्पित हुआ नहीं रहे कज़र् इस जन्म का…

आँखों का भाव

यहीं है सत्य, मीना की आँखों में आँखों के भाव में यही सत्य है कि यहीं सत्य है मीना नाम का जीव बह रहा है युग-युगान्तर से युगचेतना के साथ युग पुरुषों की इच्छाशक्ति से सब गुरु मेरे अन्तर में ही तो समाए हैं अपना-अपना काम मुझसे करवाए हैं बारी-बारी आकर समय के हिसाब से मेरा अन्दर बाहर सब उनका ही आधार उनका ही आकार हो जाता है मीना अब कहाँ? कहाँ ढूँढ़े मीना अपने को बिना मोल खरीदा सबने इस जीव मीना को बस दृष्टि का आँख का भाव ही बता पाएगा यहीं यहीं सत्य को… यही सत्य है यहीं सत्य है !! प्रणाम मीना ऊँ

ज्ञान से तीसरा नेत्र खोलो : तीसरा नेत्र दिव्य चक्षु

हे मानव ! ज्ञान का विस्तार अर्थहीन हो जाता है अपना महत्व समेट लेता है जब मानव तत्व के बिन्दु तक पहुंच जाता है इस बिन्दु तक पहुँचने के लिए ज्ञान बहुत सहायक होता है। योगियों द्वारा सिखाया जाने वाला योग जीवन पर्यन्त, मृत्यु तक विस्तारित रहता है मोक्ष प्राप्ति हेतु! पर सबसे बड़ा सच है जीते जी इसी मानव शरीर में ही पूर्ण मुक्तावस्था या मोक्ष प्राप्त कर लेना ! मानव को फिर-फिर बार-बार जन्म न लेना पड़े। मोक्ष मिल जाए मुक्ति मिल जाए और जब-जब शरीर नष्ट हो या मृत्यु आए स्वास्थ्य ठीक रहे आजकल यही योग बता रहा है। जब तक शरीर रहे योग क्रियाएँ चलती रहें उसके बाद योग कुछ नहीं कहता। योग का काम आपको वो मोक्ष दिलाना है जिसके बाद क्या होता है उसका कुछ अता-पता ही नहीं। मोक्ष पाने के बाद का अनुभव क्या होगा उसे न आप बता सकते हैं न तथाकथित…

सृष्टि की दीवाली

जीवन्त पटाखे रंग-बिरंगे रोज छोड़े रोज तोड़े धूमकेतु पुच्छल तारे छोटे मोटे ग्रह न्यारे-न्यारे यहाँ से वहाँ तक ब्रह्माण्ड के अनन्त छोर तक अपनी मर्जी के मालिक स्वच्छन्द नटखट पूर्णता के खेल में रमे न थके न बुझे यह तो केवल मानव ही है जो कहे धरती की दीवाली पर पटाखे उड़े मिटे चले जले बुझे-अनबुझे जो करते रहते हमारी ही मानसिकता को तृप्त उस अनन्त रचयिता के पटाखे करते अपने को ही संतुष्ट अपना ही गुन गुनें अपने में ही जलें-बुझें कोई निहारे या न निहारे कोई पुकारे या न पुकारे कोई छुटाए या न छुटाए कोई जलाए या न जलाए अपनी मन की मौज से ही जलते तड़पते दौड़ते डूबते सरकते घूमते चमकते रगड़ते बने सृष्टि का हिस्सा कह रहे उसी का किस्सा फिर क्यों मानव मन चाहे उसे कोई जलाए बुझाए घुमाए रिझाए क्यों नहीं जलता अपनी ही आग से बुझता अपनी ही प्यास से क्यों नहीं…

आह्वान

पराशक्ति यहीं है मैं पूर्ण समर्पण में स्थित हुई तुम्हारे साथ विकसित हो रही हूँ तुम्हारे लिए विकसित हो रही हूँ। सच्चे जीवन की ओर जागृत हो जाओ। अहंकार त्याग, पवित्र प्रेम के पंखों के नीचे आओ। यही पूर्ण आनन्द का स्रोत है। पूर्ण समर्पण में कोई प्रतिशत नहीं। शत-प्रतिशत ही चाहिए। कालचक्र फिर घूमा है। श्रीकृष्ण चेतना तथा जगत मातृ चेतना एक ही शरीर में है। जो समय की मांग होती है वही प्रकृति उपलब्ध कराती है। उसे समझने जानने मानने को विवेक चाहिए। क्योंकि वही समयानुसार कर्म की प्रेरणा व शक्ति का स्रोत है। परमानन्द है। यही सत्य है !! प्रणाम मीना ऊँ

नवयुग का सुप्रभात

धरती पर सत्य का सूर्य उदय हुआ है- हमें प्रकाशित करने तथा अपूर्णता व अंधकार मिटाने के लिए। हमारे बीच एक ऐसा मानव है जिसके पास अपार प्रेम व ज्ञान की अनबूझ ज्योति है तथा सतत सत्कर्म में पूर्ण विश्वास है। इनका आह्वान है- रूढ़ियों से उठकर आत्मानुभूति को अपनाओ जो जीवन का अस्तित्व है। अपनी आत्म जागृति से ये वेद और विज्ञान को मिलाने में कार्यरत हैं। परमस्रोत से स्वत: इनमें ज्ञान प्रवाहित हो रहा है जो अंतर्दृश्यों, अंतर्ध्वनियों से प्रकट होकर ध्यान में लिपिबद्ध हो रहा है। यह ज्ञान अमृत है तथा इसमें पूर्ण ब्रह्मशक्ति है सत्य का तत्व है। एक मुस्कान जो कभी भी निराश नहीं करती। यही सत्य है !! प्रणाम मीना ऊँ

सत्य

सत्य था है और सदा सत्य ही रहेगा।तन मन आत्मा का सत्य। विचार वाणी कर्म का सत्य।सत्य सबका आधार है सत्य किसी पर निर्भर नहीं। सत्य ही सत्य तक किसी बाहरी शक्ति के बिना सहज स्वत: ही पहुंचता है। यही सत्य की शक्ति है। सूर्यमुखी प्राकृतिक रूप से ही सूर्य की ओर उन्मुख होता है। सत्य को कभी ढूंढ़ा या छोड़ा नहीं जा सकता।सत्य को सत्य होकर ही पाया जा सकता है।सत्य ही सत्य है :- स्वीकार करो या न करो अनुभव करो या न करो पहचान करो या न करो प्रशंसा करो या न करो ग्रहण करो या न करो अनुसरण करो या न करो उपासना करो या न करो उपदेश दो या न दो मन वचन कर्म एक ही सत्य से संचालित हों। जो सोचें वही बोलें वैसा ही कर्म करें- यही सत्य की अनुपम साधना है ! मनसा वाचा कर्मणा सत्य होना ही सत्य है। सत्य निरन्तर…