आकांक्षा करो

एक ऐसे संवेदनशील हृदय की जो सबसे नि:स्वार्थ प्रेम करे ऐसे सुंदर हाथों की जो सबकी श्रद्धा से सेवा करें ऐसे सशक्त पगों की जो सब तक प्रसन्नता से पहुंचे ऐसे खुले मन की जो सब प्राणियों को सत्यता से अपनाए ऐसी मुक्त आत्मा की जो आनन्द से सब में लीन हो जाए। यही सत्य है !! प्रणाम मीना ऊँ

लक्ष्य की ओर

पूर्ण शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य तथा आत्मा का विकास।पूर्ण उन्नत अवस्था के लिए प्राचीन तथा नवीन प्रणालियों का समन्वय।यह जानना कि रोग आंतरिक असंतुलन की बाह्य अभिव्यक्ति है।पूर्ण स्वास्थ्य तथा पूर्ण आत्मज्ञान के उच्च शिखर तक पहुँचने के लिए प्राकृतिक विधि से व्यक्ति का पूर्ण उपचार व अज्ञान का अंधकार भेदन।सत्य परम संतुलन है। सत्य दु:ख तपस्या है। असत्य ही असंतुलन है।मानव विकास के योग का ज्ञान।आत्मानुभूति और ज्ञान भक्ति एवं कर्म का विस्तार। प्रणाम मीना ऊँ

उत्थान हेतु पुरानी मान्यताएँ बदलो

पुरानी मान्यताएँ मापदंड बदलने होंगे उत्थान के लिए। भय को बदलो प्रेम में नाटकीयता को बदलो स्वयं सिद्धता में तथ्य सत्य में नियंत्रण को विश्वास में स्वयं की आलोचना को अपनी शक्ति में मानसिक शक्ति विज्ञान, ज्ञान को विद्वता में स्वतंत्रता आत्मनिर्भरता को एक-दूसरे की पूरकता में बदले को माफी में, आत्म-प्रताड़ना प्यार के ज्ञान, विद्वता में क्रोध को शक्ति में प्रेम की कमी को दिव्य ज्योतिर्मय प्रेम में घरेलू झगड़ों समस्याओं को ईमानदारी सत्य व्यवहार में अपनी बात मनवानी हो तो अपने में विश्वास रखो। सत्य जीओ ऊँ वाणी में सत्यता का बल शक्ति तभी आती है जब स्वयं सत्यरूप हो जाओ। नकारात्मकता को क्रियाशीलता में असहमति को कृतित्व में छवि को शक्ति में आंतरिक मूल्यांकन में जो तुम अपने लिए चाहते हो वही दूसरों के लिए चाहो और करो जो दूसरे तुमको समझते हैं वो उनकी अपनी आंतरिक झलक है दूसरे तुम्हें क्या समझते हैं इसी से उनका…

सबसे छोटा वेद

तुम कौन?… सत्य कैसे मानूं?… अनुभव करो अनुभव कराओ… अनुभव करने के पुरुषार्थ की क्षमता प्रकृति ने सबको दी है। जानो अपने सत्य से, पर जान लेने पर केवल सत्य के लिए और सत्यमय होकर ही जीना होता है। प्रणाम मीना ऊँ

बस दो दो दो…

क्षमादान जिसमें कुछ भीअभयदान खर्च नहीं होताप्रेमदान वही देनाज्ञानदान सबसे मुश्किल क्योंअहम् हाथ बढ़ाने ही नहीं देता ऐसे दान के लिए अहम् आत्मा की स्वतंत्रता में सबसे बड़ा बाधक है दो भई दो वही तो दोगे जो ऊपर से मिला है क्या जाएगा तुम्हारा सब ग्रंथियाँ स्वत: ही खुल जाएँगी खुल जाएँगे द्वार मन मस्तिष्क के यही सत्य है !! प्रणाम मीना ऊँ

शरीर तंत्र ज्ञान

जितना शुद्ध होगा शरीर अंदर बाहर से उतनी संवेदनशीलता बढ़ती है। सबसे पहला पाठ यही है। पहले तन शुद्ध कर मन शुद्ध कर मस्तिष्क शुद्ध कर तभी प्रभु कृपा से ज्ञान आएगा इस मानव तनधारी शरीर में। अशुद्ध मन वाला अशुद्ध शरीर, विषाक्त शरीर कैसे करेगा अमृत पान पी प्रेमामृत बन बालक प्रभु का हो मनसा वाचा कर्मणा सत्य प्रणाम मीना ऊँ

विपरीत शक्तियाँ

ब्रह्माण्ड विपरीत शक्तियों का पुंज है तभी तो अविनाशी है नित्य है नित्य गतिमान है प्रगतिशील है। शैतान - भगवान राक्षस - देवता दुष्ट - सज्जन नर-नारी, मूर्ख-विद्वान निरंतर संघर्ष दौड़ होड़ लगी थी, लगी है और लगी रहेगी। पूरा ब्रह्माण्ड, फिर ग्रह फिर धरती फिर देश शहर समाज घर फिर तू बिंदु सा, उस घर का एक प्राणी मात्र फिर तेरे अंदर भी वही सब विपरीत शैतान अपने अंदर के शैतानों को पहचान, मार तब तू भगवान होगा। बाहर के शैतानों का ब्रह्मा स्वयं उत्तरदायी है, तू क्यों चिंता करता है? कहाँ तक पहचानेगा बाहर के राक्षसों को, कभी न पहचान पाएगा बाहर के शैतानों को। क्यों जीवन व्यर्थ करता है उनको समझने में, शैतानों को पहचानने में जीवन लगा दिया तो जो देवता आएँगे जीवन में उन्हें पहचान ही न पाएगा तू और वंचित रह जाएगा उन स्वर्णिम अवसरों से जो स्वयं ही स्वत: ही मनसा-वाचा-कर्मणा सत्यमार्गी मानव…