एकात्म भाव
हे मानव ! एकात्म भाव से अनुभूत हो सभी यहां एक-दूसरे के पूरक ही तो हैं। एक-दूसरे को पूर्णता की ओर अग्रसर करने के माध्यम ही तो हैं। यहां सभी एक-दूसरे के कर्म धुलवाने, कटवाने या परिष्कृत कराने ही आए हैं। सभी को परमबोधि की सटीक सम्पूर्ण व्यवस्था में कुछ न कुछ कर्म निर्धारित कर सौंप कर ही भेजा गया है। जो कि ब्रह्मा विष्णु महेश, प्रतीकात्मकता, कृतित्व पूर्णता व संहार के लिए विशेषतया चुने हुए हैं। प्रत्येक कर्म अच्छी तरह से निभाने के लिए ही सामने आ जाता है कर्म को टालने की अपेक्षा कैसे उसे पूर्णता से निभाया जाए इसका ध्यान करना होता है। इस कारण जो कर्म स्वत: ही प्राप्त हो उसे पूर्णता से जीकर ज्ञान का मोती बीनकर विवेक जगाना है। पढ़कर या जानकर ज्ञान का प्रदर्शन प्रभाव उत्पन्न करने हेतु करना अज्ञान है। जियो जीकर बताओ जीवन उदाहरण स्वरूप हो प्रवचन न झाड़ो। क्या होना…