एकात्म भाव

हे मानव ! एकात्म भाव से अनुभूत हो सभी यहां एक-दूसरे के पूरक ही तो हैं। एक-दूसरे को पूर्णता की ओर अग्रसर करने के माध्यम ही तो हैं। यहां सभी एक-दूसरे के कर्म धुलवाने, कटवाने या परिष्कृत कराने ही आए हैं। सभी को परमबोधि की सटीक सम्पूर्ण व्यवस्था में कुछ न कुछ कर्म निर्धारित कर सौंप कर ही भेजा गया है। जो कि ब्रह्मा विष्णु महेश, प्रतीकात्मकता, कृतित्व पूर्णता व संहार के लिए विशेषतया चुने हुए हैं। प्रत्येक कर्म अच्छी तरह से निभाने के लिए ही सामने आ जाता है कर्म को टालने की अपेक्षा कैसे उसे पूर्णता से निभाया जाए इसका ध्यान करना होता है। इस कारण जो कर्म स्वत: ही प्राप्त हो उसे पूर्णता से जीकर ज्ञान का मोती बीनकर विवेक जगाना है। पढ़कर या जानकर ज्ञान का प्रदर्शन प्रभाव उत्पन्न करने हेतु करना अज्ञान है। जियो जीकर बताओ जीवन उदाहरण स्वरूप हो प्रवचन न झाड़ो। क्या होना…

युग चेतना का नव प्रवाह

''अब समाप्त होना है विद्रूपता व कुरूपता का वीभत्स खेल'' हे मानव ! तू तो अब इंसान भी नहीं रहा। अब वो समय आ पहुँचा है जब यह ध्यान करना ही होगा कि इंसान अब इंसान क्यों नहीं रहा। इंसान केवल ''मैं'' होकर रह गया है। कोई स्वार्थहीन प्रेममय सच्चे बोल या अच्छे हाव-भाव शोभापूर्ण भाव-भंगिमाएँ दिखाई ही नहीं देतीं। हर तरफ यही सोच है- मुझे क्या नहीं मिला मुझे पूछा नहीं मैं बोर हुआ मैं तनाव या विषाद में हूँ, मुझे अच्छा या ठीक नहीं लगा, मुझे क्या मिलेगा मेरा क्या होगा, मुझे क्या पड़ी है, दुनिया जाए भाड़ में आदि-आदि। जो सही इंसान नहीं रहे उनके लिए समय के संकेत बहुत स्पष्ट हैं। जो अपने ऊपर काम करने के हेतु आन्तरिक यात्रा प्रारम्भ कर देंगे उनकी सहायता प्रकृति अवश्य ही करेगी। अन्यथा पाँचों तत्वों का विनाशकारी तांडव अपूर्णता को जड़-मूल से नष्ट कर ही देगा। अग्नि-आग,पृथ्वी-भूचाल,वायु-आँधी बवंडर, आकाश-उल्कापात…

युग परिवर्तन हेतु सत्य ही आधार

हे मानव ! बहुत हो चुका भिन्न-भिन्न धर्मों का खेल, अब मानवता के धर्म की बारी है। मानव मानवता और प्रकृति, इन्सान इन्सानियत और कुदरत की शाश्वत न्याय-व्यवस्था, इतना-सा ही तो खेल है और तू सदियों से किन-किन चक्रव्यूहों में घूम रहा है, अब तो मकड़जाल से बाहर निकल। निकलना ही होगा असत्य चाहे अपनी पूरी शक्ति लगा ले, सत्य का सूर्य उदय होगा ही। धर्मों कर्मकाण्डों व पूजा-अर्चना पद्धतियों का कार्य है एक सही मानव बनने के लिए शान्ति और शक्ति प्रदान करना। सही सौहार्दपूर्ण वातावरण तैयार करना ताकि मानव अपना तथा औरों का भी उत्थान करे न कि स्वर्ग के टिकट बेचने का प्रबन्ध करे। यदि कर्मकाण्डों व अनुष्ठानों का उपयोग अपनी ही हठी मान्यताओं से युक्त बुद्धि के अनुसार किया जाता है तो वह मानव की उत्थान प्रक्रिया केमार्ग में मील के पत्थर की तरह गड़े तो रह जाएँगे, उन पर लिखे अंक भी समय आने पर…

तमस की निद्रा से जाग !

हे मानव ! इतने सारे बुद्घिमान मानव होते हुए भी विश्व विवेकहीन महामूर्खों की बस्ती बन कर रह गया है। एक ओर महामारी कोविड-19 कोरोना से लड़ने हेतु अंधाधुंध व्यय कर रहा है। सामान्य जीवन अस्त-व्यस्त कर आधी अधूरी व्यवस्थाएं कर रहा है। उनको बचाने हेतु जिनका कि शायद मानव समाज देश और विश्व हित में कोई भी योगदान न हो। दूसरी ओर अपरिमित धन व्यय कर रहा है युद्घ के लिए आयुधों पर उनको मारने के लिए जो हृष्ट पुष्ट हैं नौजवान हैं विश्व का भविष्य हैं। ऊपर से पर्यावरण का सत्यानाश। वाह रे मानव ! बलिहारी तेरी दोगली नीति की। मानव का इतना पतन परम बोधि व प्रकृति को कभी भी मान्य ना होगा प्रकृति अब अपने हिसाब से छंटनी करके ही रहेगी। प्रकृति के इस प्रकोप कोरोना को कम करने की प्रार्थना करना तथा सावधानी रखने का प्रयत्न करना तो स्वाभाविक व उचित ही है पर इसके…

भारत भाग्य विधाता कहां हो – भारत भाग्य विधाता कहां न हो

हे सनातन मानव ! तू कहां खो गया है इतनी गिरावट-अधोगति कि मानव त्राहि त्राहि कर रहा है मानवता घुट घुट कर दम तोड़ रही है। क्या ये पढ़े लिखे लोग हैं इनकी शिक्षा दीक्षा कहां की है। भाषणों का स्तर केवल अपनी ही आत्म प्रशंसा और बाकी सबकी भर्तसना पर ही ठकर गया है क्या कोई ऐसा आत्मवान-शक्तिमान मानव बचा ही नहीं भारत में जो उठे और इन महामूर्ख भ्रष्टाचारी नेताओं को ठिकाने लगा दे। जब कांग्रेस पप्पू और मिट्ठू बोलते हैं तो बीजेपी के ही नम्बर बढ़ा देते हैं और जब बीजेपी के पिट्ठू और टट्टू बोलते हैं तो कांग्रेस के नम्बर बढ़ जाते हैं। क्या ताजमहल क्या लालकिला क्या बहाई या क्या अक्षरधाम आदि आदि। ये सभी मध्य इमारतें क्या बिगाड़ रही हैं देश का मानवों का। जो इतना वाद-विवाद इन पर किया जाता है। जब भी देश में द्वेष घृणा हिंसा अराजकता और अभद्रता का विष…

अनुभूत ज्ञान

आज का ध्यान : मूलरूप ज्ञान - वास्तविक ज्ञानReal Original Gyan जो ज्ञान ध्यान में प्राप्त होता है उसी का प्रसार ही मानव को उत्थान व ख्याति के उच्चतम स्तरों तक पहुंचाता है। मानव जीवन को श्रेष्ठता प्रदान करता है। संसार से सीखा जाना अभ्यास किया गया ज्ञान व्यवसायिक दृष्टिकोण से अच्छा सिद्ध हो सकता है। परंतु मानव के आध्यात्मिक उत्थान के लिए या मानव को उत्कृष्टता प्रदान कर उत्थान की चरम सीमा तक ले जाने में उसकी उपयोगिता कम ही होती है। रामायण रटने से या एकदम राम जैसा व्यवहार करने से कोई श्रीराम नहीं बन सकता ना ही गीता गुनने से कोई श्रीकृष्ण ही बन पाएगा। जो बनेगा केवल अपने बलबूते पर अपने ही सत्य की साधना से बनेगा। बड़ी-बड़ी बाते प्रवचन शास्त्रार्थ धरा का धरा ही रह जाएगा। हां भूतकाल के संदर्भ से ज्ञान प्राप्त कर उस पर चिंतन मनन कर भविष्य का मार्ग चुनने में सहायता…

देवउठावनी एकादशी : भारतीय तिथियों का विज्ञान

हरि ऊँ हरि रविवार : 14-11-2021चारों दिशाओं से धरती पर त्रासदियों से त्रस्त मानव दया व कृपा हेतु कर रहा प्रभु से करुण पुकार… मंगलवार 20-7-2021 देवशयनी एकादशी पर 4 मास के लिए विश्राम पर जाने से पहले श्री विष्णु ने चेताया :- श्री विष्णु उवाच हे मानव ! क्यों कर रहा करुण पुकार दया करो हे ! कृपा निधान तेरी कुबुद्घि का अब होना ही है निदान पांच हजार पांच सौ साल हो गए पढ़ाई थी तुझे पूर्ण ज्ञानमयी गीता जिसे तू अब तक न समझा न जिया रह गया रीता का रीता क्यों न बना तू सत्यमय कर्ममय मानव जो होता दैवीय सम्पदा से परिपूर्ण भुला बैठा अपनी ही मूल प्रकृति सत्कर्मों से जीवन सार्थक करने की रीति अब व्यवस्था मेरे हाथों से निकल गई है पांचों तत्वों के मध्य पहुंच गई है उन्हीं के तांडव से होगा छंटनी का महती कर्म अब तो समझ ले शिवशंकर के…

अपने मूल स्वरूप में परिवर्तित होओ

मानव ने अपने अस्तित्व का एक चक्र, सरल पवित्र शुद्घ आत्मवान और वास्तविक होने से लेकर चालाक पाखंडी धूर्त हेराफेरी और बुद्घि की जोड़ तोड़ से काम निकालने वाला होने तक का, पूर्ण कर लिया है। यह अनुभूत किए बिना कि इसमें उसने मानव जीव की प्राकृतिक उत्थान प्रक्रिया को कितना मलिन कर दिया है। वो मानव जिसे प्रकाश का ज्योतिर्मय पुंज, दिव्यता परिलक्षित करने वाला होना था वो मात्र बुद्घि की चतुराइयों और समायोजनाओं का उत्पाद बनकर अज्ञान के अंधकारमय कूप में गिरा हुआ यह सत्य भी समझ नहीं पा रहा है कि किस सीमा तक उसका पतन हो गया है। इस कारण अब प्रकृति ने अपने हाथों में नियंत्रण की रास थाम ली है। इसलिए या तो अपनी बनाई हुई अनभिज्ञता की खाइयों में विनष्ट हो जाओ या स्वयं पर कर्म कर शक्ति पाकर इनसे बाहर कूद आओ। मानव इतना उलझ गया है नीरस सपाट सीधी क्षितिजीय रेखा…

सत्य प्रेम व कर्म द्वारा आध्यात्मिक स्वास्थ्य

कलियुग में पार लगाने के सर्वोत्कृष्ट साधन सत्य प्रेम व कर्म है और सर्वोत्तम साधना है ज्ञान भक्ति और कर्म की। कर्म दोनों में है एक में आन्तरिक धर्म और एक में बाह्य कर्त्तव्य कर्म। सत्य निर्भय बनाता है प्रेम निर्मल करता है और कर्म पुरुषार्थ का मार्ग प्रशस्त करता है। सत्य प्रेम व कर्म की पूर्णता से वो ज्ञान जागृत होता है जो समस्त अज्ञान रूपी अंधकार को काट कर उस प्रकाश से प्रकाशित कर देता है जिसमें सच्चिदानन्द स्वरूप का दर्शन हो जाता है। सत्य प्रेम व कर्म के इस अलौकिक चमत्कार से आत्मसाक्षात्कार तभी संभव है जब कि शरीर मन व आत्मा में लयात्मकता व एकात्मकता हो। जब तक स्वयं से एकात्म न होगा तब तक बाहर भी एकात्म वाला भाव प्रसारित नहीं हो पाएगा। सत्य की सबसे बड़ी साधना है मनसा वाचा कर्मणा एक होना जो सोचो वही बोलो वही करो। सत्यनिष्ट मानव आत्मा के सभी…

हे मानव! तमस की निद्रा से जाग!

इतने सारे बुद्घिमान मानव होते हुए भी विश्व विवेकहीन महामूर्खों की बस्ती बन कर रह गया है। एक ओर महामारी कोविड-19 कोरोना से लड़ने हेतु अंधाधुंध व्यय कर रहा है। सामान्य जीवन अस्त-व्यस्त कर आधी अधूरी व्यवस्थाएं कर रहा है। उनको बचाने हेतु जिनका कि शायद मानव समाज देश और विश्व हित में कोई भी योगदान न हो। दूसरी ओर अपरिमित धन व्यय कर रहा है युद्घ के लिए आयुधों पर उनको मारने के लिए जो हृष्ट पुष्ट हैं नौजवान हैं विश्व का भविष्य हैं। ऊपर से पर्यावरण का सत्यानाश। वाह रे मानव! बलिहारी तेरी दोगली नीति की। मानव का इतना पतन परम बोधि व प्रकृति को कभी भी मान्य ना होगा प्रकृति अब अपने हिसाब से छंटनी करके ही रहेगी। प्रकृति के इस प्रकोप कोरोना को कम करने की प्रार्थना करना तथा सावधानी रखने का प्रयत्न करना तो स्वाभाविक व उचित ही है पर इसके साथ ही इस साधना…