ऊर्जा के खेल का सत्य ज्ञान

हे मानव ! तू बहुत ही चतुर हो गया है।ऊर्जा कैसे ली जाए खूब जान गया है पर उसका समुचित व्यय और उसका हिसाब-किताब रखना एकदम भूल ही गया है। धन-दौलत केहिसाब में खूब पक्का होता जा रहा है वो दौलत जो शान्ति व सन्तुष्टि कभी नहीं खरीद सकती। संसार से बुद्धि से कमाया धन बुद्धि के अनुसार व्यय किया जा सकता है। पर प्रकृति से स्वत: प्राप्त ऊर्जा या जो प्रेम सहयोग व सहायता प्रभु कृपा स्वरूप अन्य मानवों से प्राप्त हो जाती है उसका प्रयोग बुद्धि के स्वार्थी खेलों या अपनी कुप्रवृत्तियों के हिसाब से व्यय करना ही दुखों का कारण बनता है। किसी ने प्रेम दिया ज्ञान दिया या सही मार्ग सुझाया तो उसकी ऊर्जा लेकर अपनी ही मन बुद्धि के रास्ते पर चलने से उस पवित्र प्रेममयी ऊर्जा का अपमान होता है। जो कि प्रकृति को कभी भी मान्य नहीं होता क्योंकि प्रकृति सदा अपने अनेकों…

मानव मंगल की ओर मानवता जंगल की ओर

हे मानव ! कलियुग में तूने अपनी बुद्धि का इतना विकास कर लिया है कि अपनी सब प्रकार की सुख-सुविधाओं के लिए अनेकों उपकरणों का आविष्कार किया और उन्हें अपनी इच्छानुसार प्रयोग कर अपनी ही अहम्तुष्टि कर रहा है। वैज्ञानिक और आर्थिक विकास तो ऊर्ध्वगति को प्राप्त हुए पर मानव मूल्य अधोगति को। मानव प्रकृति पर विजय पाने के सपने देख रहा है मंगल और चाँद पर भी नगर बसाने की संभावनाएँ खोज रहा है। पर अपनी ही धरती पर बसे बसाए नगर उजाड़ने में तुझे आनन्द आ रहा है। दूसरों के सिर पर पैर रख कर आगे बढ़ने को प्रगति मान रहा है। आज का युवा उदाहरणस्वरूप शोभायुक्त गरिमापूर्ण उत्कृष्टï व अनुकरणीय नेताओं के अभाव में भटक रहा है। युवाओं के अंदर कुछ कर गुज़रने का जो उबाल होता है उसे कौन दिशा दे पा रहा है आज के स्वार्थपूर्ण वातावरण में। चारों ओर केवल अपने लिए ही बटोरने…

सत्य निर्भय है : विजयी होगा ही- उजागर होगा ही

मेरा पूर्ण अस्तित्व मानव के उत्तरोत्तर विकास और भारत के भविष्य को सुदृढ़ करने हेतु कर्मरत है। भारत के गौरव के पुर्नस्थापन के लिए सही पृष्ठभूमि तैयार करने की सतत् साधना का ही परिणाम है प्रणाम अभियान। मेरा सब कुछ लिखना, स्वाध्याय, ध्यान, प्रणाम योग कक्षाएँ लेना, लोगों से सम्पर्क करना, हीलिंग-वेदना हरण स्पर्श देना व सिखाना, परामर्श करना, भारतीय सनातन सत्यधर्मिता से सब को अवगत करना। सभी प्रकार के माध्यमों से भारतीय व अन्य सभी मानवों को जागृत करने का निरंतर उद्यम करना। मानव की असीमित दिव्य शक्तियों को पूर्णतया प्रस्फुटित करना- श्रीकृष्ण के गीतोपदेश के आधार पर। इसी कर्मयोग की धारा को प्रणाम रूप में निरंतर गतिमान रखना ही मेरा धर्म-कर्म है। यही आने वाले कल की सुप्रभात की तैयारी है। पूरा है विश्वास- आयेगा ही वह स्वर्णिम समय, वो प्रकाशित पल जो स्वामी विवेकानंद और महर्षि अरविंद के सपनों को साकार करेगा। भारत के सभी उन्नत मानवों,…

जागो भारत जागो : प्रणाम का आह्वान

प्रणाम अभियान विगत कई वर्षों से इसी उद्देश्य के लिए कर्मरत है और निरंतर आह्वान कर रहा है कि कलियुग में केवल जागरूकता ध्यान व कर्म, आंतरिक व बाह्य दोनों ही, पार लगाएंगे। जागरूक होना है व चैतन्य रहना है उन सभी घटनाओं और विधाओं के प्रति जो प्रकृति विश्व देश व मानव के स्तर पर घटित हो रही हैं। सब कुछ परम बोधि-सुप्रीम इंटेलिजेन्स की सुनियोजित और सुनिश्चित व्यवस्था व अटूट कड़ी के परिणाम स्वरूप ही मूर्तरूप लेता है। तो यह प्रश्न करना कि ऐसा क्यों हुआ? या हो रहा है… सर्वथा व्यर्थ ही है। कलियुग में सत्य को केवल अपने सत्य पर पूरी निष्ठा व कर्मठता से टिके रहना होगा। जहां कहीं भी सत्ययोग व कर्मयोग का महायज्ञ चल रहा है वहां पूर्ण सहयोग की आहुति देनी ही होगी अन्यथा तटस्थता भी भयावह कष्ट का कारण बनेगी। सबसे सकारात्मक तथ्य यह है कि सत्य को झूठ से लड़ने…

भ्रष्टाचार कभी भी मंगलकारी नहीं

हे मानव! मत कर छीना-झपटी मत बन जा कपटी। भय रौब या लालच दिखाकर चतुराई से कुछ भी हथिया लेना कभी भी कल्याणकारी हो ही नहीं सकता। कागज की नाव कितने दिन चलेगी। गुरु दक्षिणा के नाम पर एकलव्य का अंगूठा ही मांग लेने वाले और अधर्म के पक्षधर सभी गुरुओं, आचार्यों की महाभारत युद्ध में क्या गति हुई सभी जानते हैं। एक ओर तो तू स्वर्गिक शान्ति व आनन्द चाहता है, दूसरी ओर भ्रष्टाचार में रमता है, उस पर तुर्रा यह कि उसी भ्रष्ट पैसे से पंडितों के चक्करों में पड़कर स्वर्ग के टिकट खरीदता है या लंबी-लंबी यात्राएं और बड़ी-बड़ी पूजाएं अनुष्ठान आदि कर ढोंगी पंडों को खिला-पिला कर पवित्र नदियों में डुबकियां मारता है। मंदिरों में भ्रष्टाचार की कमाई का करोड़ों-अरबों रुपयों का चढ़ावा चढ़ता है। भ्रष्टाचार के अनेकों रूप कलियुग में अपनी चरम सीमा पर पहुंच गए हैं। 1. शारीरिक : कुत्सित घृणित भयावह अप्राकृतिक शारीरिक…

सत्य सनातन धर्म : नित्य निरन्तर शाश्वत विधान

हे मानव! यह सत्य धर्म जानसंसार में सब कुछ नश्वर है क्षणिक है। उत्पन्न होना, पूर्णता पाना, कुछ और उत्पन्न करना, प्रकट करना और अन्तत: लुप्त हो जाना। सब देखा-समझा व अनुभव भी किया जा सकता है। इस नश्वर संसार से परे एक और संसार है। जिसका आभास व ज्ञान केवल सनातन धर्म में पूर्णतया स्थित, स्थितप्रज्ञ आत्मवान मानव को होता है। इस ज्ञान का रहस्योद्घाटन व सत्य स्थापन सर्वोन्नत आत्मज्ञानी ही कर पाता है। यह पराज्ञान की पूर्णता है। ब्रह्माण्ड प्रकृति व जीव का सनातन वैज्ञानिक सत्य है। श्रीकृष्ण इस अपरा व परा ज्ञान-विज्ञान के पूर्ण मर्मज्ञ हुए। तभी तो सर्वकला सम्पूर्ण कहाए। धार्मिकता या अंग्रेजी शब्द, religion, सनातन धर्म की व्यापकता को कदापि परिभाषित नहीं कर सकते, न ही बखान सकते हैं क्योंकि मानवाकृत धार्मिकता या रिलीजन सनातन धर्म से सर्वथा भिन्न है। धार्मिकता, religion, शब्द से श्रद्धा व आस्था शब्द का भाव भासित होता है। श्रद्धा या…

मेरे मन वाला हो जा

ओ मानव ! तू प्रभु के मन वाला हो जा। यही तो परम की इच्छा है पर तू तो प्रभुता प्राप्त - गुणयुक्त - मानव को भी अपने हिसाब से ही चलाना चाहता है। प्रभुता को अपने मन या अपनी ही युक्ति-युक्त बुद्धि से चलाने वाले या पकड़ने वाले मानव के जीवन से प्रभु फिसल जाते हैं, निकल जाते हैं। गीता में श्रीकृष्ण का वचन है, 'तू मेरे मन वाला हो जा'। यह तो मीन - मछली - जैसा खेल है। मछली को ढीला पकड़ो तो भी हाथ से फिसल जाएगी, कसके पकड़ो तो भी रपट जाएगी। पकड़ एकदम सही दबाव वाली व सटीक हो तो ही बात बनती है। प्रभु के या उस परम सत्ता के मन वाला होने के लिए यह जानना ही ज्ञान है कि प्रभु के मन में क्या है। उसकी सृष्टि, सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ अनुपम कृति मानव के अस्तित्व व मानव जीवन का प्रयोजन क्या…