ऊर्जा के खेल का सत्य ज्ञान
हे मानव ! तू बहुत ही चतुर हो गया है।ऊर्जा कैसे ली जाए खूब जान गया है पर उसका समुचित व्यय और उसका हिसाब-किताब रखना एकदम भूल ही गया है। धन-दौलत केहिसाब में खूब पक्का होता जा रहा है वो दौलत जो शान्ति व सन्तुष्टि कभी नहीं खरीद सकती। संसार से बुद्धि से कमाया धन बुद्धि के अनुसार व्यय किया जा सकता है। पर प्रकृति से स्वत: प्राप्त ऊर्जा या जो प्रेम सहयोग व सहायता प्रभु कृपा स्वरूप अन्य मानवों से प्राप्त हो जाती है उसका प्रयोग बुद्धि के स्वार्थी खेलों या अपनी कुप्रवृत्तियों के हिसाब से व्यय करना ही दुखों का कारण बनता है। किसी ने प्रेम दिया ज्ञान दिया या सही मार्ग सुझाया तो उसकी ऊर्जा लेकर अपनी ही मन बुद्धि के रास्ते पर चलने से उस पवित्र प्रेममयी ऊर्जा का अपमान होता है। जो कि प्रकृति को कभी भी मान्य नहीं होता क्योंकि प्रकृति सदा अपने अनेकों…