वाणी बने गीता
गीता को कहते हैं कि स्वयं भगवान के मुख से निकली वाणी है। यह सत्य इसलिए है कि उसमें न तो प्रवचन है न कोई उदाहरण है न कोई रुचिकर कहानियाँ। बस प्रश्नों के सीधे-सीधे सटीक उत्तर हैं जो श्रीकृष्ण ने जि़न्दगी से सीखकर बताए हैं। वो जि़न्दगी जो वेदों व उपनिषदों के ज्ञान पर आधारित थी। तो आज सबको समझना जरूरी है कि अगर गीता के अनुसार जीवन जिया जाए तभी तो कुछ और प्रश्न बनेंगे और उन्हीं के उत्तरों से गीता में भी कुछ जुड़ जाएगा आज की गीता बनने के लिए। अभी तो लोग पाँच हजार साल बाद भी गीता ही नहीं समझ पा रहे हैं और जो थोड़ा-बहुत समझे भी तो उसके अनुसार जी ही नहीं रहे तो बात आगे कैसे बढ़ेगी। गीता को पूरा समझने व जानने के बाद कुछ और समझने-बूझने को बाकी रह ही नहीं जाता। गीता तो सही जीवन जीने का विज्ञान…