ज्ञान सागर
रत्नाकर प्रभाकर सुधाकर करे ध्यान उजागर, भरे मन की गागर स्मृति अनन्त सागर, स्मरण की बना मथनी इच्छा की लगा शक्ति बुद्धि की बना डोर, ध्यान का लगा जोर काल का चक्र घुमा पाया अनमोल रत्न ज्ञान का नव निर्माण का, कर्म प्रधान का सत्य विहान का, प्रेम समान का विश्व कल्याण का प्रणाम अभियान का महाप्रयाण की इससे अच्छी तैयारी और क्या होगी पूर्ण होकर ही पूर्ण में विलय होने की पूर्ण हुई ईश्वर कृपा कृपा ही कृपा पूर्ण अनुकम्पा में नतमस्तक है मीना यही है सत्य प्रणाम मीना ऊँ