प्रतीकों की भाषा

प्रतीकों की अपनी एक अनोखी दुनिया होती है। वे विभिन्न रूपों जैसे लाइनों, डॉट्स रंगों आदि के माध्यम से बोलते हैं और संपूर्ण शास्त्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये सहज स्फूर्त भाव हैं और आंतरिक सत्य और भावनाओं को व्यक्त करने के लिए बनाए गए हैं। चूंकि ये शक्तिवान हैं और पूर्ण आंतरिक अभिव्यक्ति हैं, केवल वे ही व्यक्ति जो दृश्य निरूपण के प्रति संवेदनशील हैं, इनसे संयुक्त हो इनका रहस्य बता सकते हैं। उदाहरण के लिए प्रतीकों में तात्कालिक संकेत होते हैं, जैसे गदा देखने के बाद हनुमान जी या भीम की याद आती है, सुदर्शन चक्र हमें विष्णु और श्रीकृष्ण की शक्ति और अजेयता की याद दिलाता है। धनुष बाण श्री राम का, त्रिशूल दुर्गा का, डमरू शिव का और चूहा हमें कृपालु गणेश जैसे ये विभिन्न प्रतीक हैं और विभिन्न प्रकार के देवता और उनके दिव्य गुणों का पूरी तरह से उनके माध्यम से प्रतिनिधित्व किया जाता…

पांच बिंदु सदा याद रखने के लिए

1. कृतज्ञता और कृपा के लिए प्रार्थना करेंआज मैं दिव्य अनुग्रह की आकांक्षा करूंगा और कृतज्ञता में जीऊंगा। सार्वभौमिक ब्रह्मांडीय ऊर्जा का एक योग्य माध्यम होने के लिए प्रार्थना करें जो संपूर्ण और पूर्ण रूप से उपचार करता है। 2. प्रत्येक क्षण को पूर्णता से जीयोआज मैं कर्तापन की भावना में नहीं रहूंगा और न ही किन्हीं वस्तुओं और स्थितियों की चिंता करूंगा। अपनी समस्त क्षमताओं के अनुसार हर क्षण को जीएं, बाकी सब प्रकृति के नियमों अनुसार ही होगा। 3. ऊर्जा का संतुलन - तालमेल और सामंजस्य हेतु आज मैं तीव्र भावनात्मक उद्वेगों और क्रोध में अपनी ऊर्जा को क्षीण नहीं करूंगा। तीव्र उद्वेग और क्रोध नियंत्रण से बाहर महसूस करने का परिणाम हैं। यदि आप यह अनुभव कर रहे हैं तो अपने को दोषी ना माने, पर अपनी प्रतिक्रियाओं से अवगत रहें। अपने अवगुणों को देखने और अवचेतन आघात, दुर्बलताओं अपराधबोध और भय के कारण उत्पन्न भावनाओं को…