प्रणाम माँ सरस्वती कर प्रकाश, दे सन्मति

सरस्वती नमस्तुभ्यम् वरदे कामरूपिणीम्विश्वरूपी विशालाक्षी विद्या ज्ञान प्रदायने। हे माँ सरस्वती नमन वंदन, कामरूप सृष्टि उत्पत्ति की समग्रता में व्याप्त विश्वरूपिणी, सर्व विद्यमान, दूरदर्शिता से परिपूर्ण विशाल नेत्रों वाली विद्या और ज्ञान का वर दें। ब्रह्म की सृष्टिï को पूर्णता तक ले जाने का मार्ग सब प्रकार की विद्याओं और कलाओं से प्रशस्त करने वाली देवी शारदे सदा ही वंदनीय हैं। दिन के आठों पहर में एक बार प्रत्येक मानव की वाणी में सरस्वती अवश्य ही प्रकट होती है। पर संसार में लिप्त मानव बुद्धि उसे समझ ही नहीं पाती। कई बार अनुभव तो सबको होते हैं कि किसी ने कुछ कहा और वह सच हो जाता है पर इस क्षमता को पूर्णता देना ताकि वाणी में सदा ही कमलासना का वास रहे यह केवल कस्तूरीयुक्त माँ सरस्वती की सतत् साधना व आराधना से ही सम्भव है। इनका वाहन हंस है। हंस की विशेषता है कि अगर दूध और पानी…

सत्य गीता प्रवाहिनी बनेगी प्रणाम वाहिनी

मैं युग चेतना हूँ गीता हूँ सुगीता हूँ वेद हूँ विज्ञान हूँ विधि का विधान हूँ जैसा प्रकृति ने चाहा वही इंसान हूंँ मानसपुत्री प्रकृति की सर्वोत्तम कृति सृष्टिï की वही तो हूँ कर्मयोगी, प्रेमयोगी, सत्ययोगी यही है सत्य, यहीं धरा पर है सत्य जब से सृष्टि बनी तभी से सत्य की स्थापना को ईश्वरीय सत्ता माध्यम ढूँढ़कर अपने प्राकृतिक नियमों के हिसाब से तैयार कर ही लेती है। जो भी साधना करते हैं या सत्य को जानने का पुरुषार्थ करते हैं उन सबको कृपालु परमेश्वर अवश्य ही शक्ति प्रदान करते हैं। पर उसका प्रयोग कौन कैसे करता है यहीं मानव की अहम् बुद्धि गच्चा खा जाती है। अपनी महत्ता बताने को तरह-तरह की युक्तियों की भूलभुलैया में मानव खो जाता है। बिना पूर्ण समर्पण के, बिना युग चेतना से जुड़े शक्ति का प्रवाह कर देता है। एक ही धर्म मानवता का जो वेदों का सत्य है उसकी स्थापना का…

कर कर्म अर्पण उसको कर प्रणाम सबको

जो कुछ भी करो सोचो या बोलो यह समझकर करना है कि सब कुछ वही परम शक्ति करवा रही है और उसका दिया उसी को अर्पित करना है। उस परम तत्व को जिसे चाहे परमेश्वर कहो, कृष्ण कहो, खुदा कहो या राम-रहीम कहो। जिसको हम अपना परम प्रिय मानते हैं उसे हम कभी भी निरर्थक या गंदी वस्तु तो देना ही नहीं चाहेंगे तो अच्छा ही अच्छा अर्पण करना है। हमारा वेद दर्शन तो कण-कण में प्रभु को देखना बताता है मगर एक अच्छे इंसान में हम प्रभु देख नहीं पाते, हर जड़-चेतन में देखना तो दूर की बात रही। कैसे आएगी वह स्थिति जब कण-कण में ईश्वरीय सत्ता की विभूति दिखाई देने लगेगी जो भी सीखा, पढ़ा, गुना हुआ ज्ञान जब हम अपने चित्त को शिष्य और उसे गुरु मान, तपस्या की तरह गुनते हैं, कर्म करते हैं और अनुभव कर सच्चाई तक पहुँचते हैं, तब ऐसी स्थिति का…

सत्य मार्ग प्राकृतिक मार्ग – माना मार्ग

लहू का रंग एक है अमीर क्या गरीब क्या, बने हो एक खा$क से तो दूर क्या करीब क्या ! आओ, सब मिलकर तय करें कि एक मार्ग मानवता का, इंसानियत का ही माना जाए तो क्या यह मंजूर होगा सबको। नई किताब इंसानियत की, नई नीति सरल-सी। नया धर्म जो सब धर्मों का निचोड़ है, सत्य, प्रेम और कर्म, चाहो तो उसे माना मार्ग कह लो। माना का अर्थ है, जो सबको मान्य होगा और मान्य होना चाहिए क्योंकि इसमें बंधन नहीं है, एक मार्ग है एक रास्ता है, जिस पर चलते चलो। चलने का भी आनन्द और पाने का भी आनन्द और पाना-खोना क्या जब सारा सफर ही सुहाना हो जाएगा। जो लोग इंसानियत को नकारते हैं वही लड़ेंगे-मरेंगे कि मेरा धर्म तेरे से बेहतर है। अगर यही रवैया रहा तो अंत में किसी का भी भला नहीं होने वाला। जिनको लड़ने-लड़ाने से मजा आ रहा है उन्हें…

उगा सूर्य प्रणाम का नवयुग के प्रमाण-सा

बढ़ना है सुप्रभात की ओर सत्य प्रेम की पकड़ डोर कालगति का सतत् प्रवाह घूम गया सतयुग की ओर कालचक्र घूमा है। समय करवट ले रहा है तभी धरती डोल रही है। सब उन्नत होते मानवों में आंतरिक बेचैनी-सी व्याप गई है, खालीपन कुछ खोया-सा कुछ अजीब सा सूनापन या तटस्थता-सी छाई है दिलों पर। खोल दो दिलों के ताले, उड़ने दो मन पंछी को आज़ाद। अपने अपने सत्य को स्वीकार कर लो। अपने ही मन की अदालत में मुक्त हो जाओ पाप-पुण्य गलत-सही के संघर्ष की दुविधा से। क्योंकि अब सबको सच्चाई की नई दिशा की ओर बढ़ना ही होगा। सब मानवकृत धर्मों का शोर-शराबा भूलना ही होगा। इंसानियत का धर्म अपनाकर संतुलन पैदा करने की बारी आ गई है। तू बदलेगा, मानव तुझे बदलना ही होगा। बदलाव की घड़ी सिर पर खड़ी है, आ ही पहुँची है। अब तू चाहे या न चाहे तेरी मानसिकता उधर ही चलेगी।…

नवयुग के सुप्रभात-सा प्रणाम अभियान

प्रणाम एक अभियान है मानवता को अपनी सही पहचान बताने का। बाकी कार्य प्रकृति स्वत: ही करा लेगी। अध्यात्म को अपनाया जाता है अच्छा इंसान बनने के लिए। अच्छे इंसान की परिभाषा क्या है? ऐसा इंसान जो तन मन से पूर्ण स्वस्थ हो जिसकी आत्मा आज़ाद हो-सबकी सेवा करने के लिए, सबको प्रेम करने के लिए। अध्यात्म को जीवन में उतारा जाता है ताकि उस परमशक्ति से जुड़कर, शक्ति प्राप्त कर उस शक्ति का प्रयोग मानवता की भलाई में लगाया जाए। प्रवचनों व उपदेशों का भी अपना महत्व है। मगर उसको अपनाकर साधना में परिवर्तन न किया तो प्रगति की गति बहुत धीमी रहती है और तब तक समय बहुत आगे बढ़ जाता है। अब समय है कर्म करने का। क्योंकि रास्ता तो सब मनीषी बता ही गए हैं उस पर चलने की बात है। भारत में इस शक्ति का उदय हो गया है बस बात है उससे जुड़कर सहयोग…

जागो, जगाए प्रणाम : रखो भारत माँ का सम्मान

जागो भारतीयों! रामकृष्ण की धरती, गंगा जमुना की गोदी में पले हिमालय की वेद भूमि वाले मानस पुत्र, पुत्रियों जागो। सम्पूर्ण विश्व का मार्गदर्शन करने वाले सूर्य चंद्र वंशी तुम सदा ही आपसी फूट के कारण लड़ते-मरते रहे। अपनी शक्ति व अपनी अलौकिकता खोते रहे ताकि अन्य जातियां तुम पर राज कर सकें और सारी संस्कृति, सभ्यता और अलौकिक विद्याएं चुरा-चुरा कर बाहर ले जा कर लाभ उठाते रहे। आपसी फूट और राजशक्ति के मद में चूर तुम सदा ही पथभ्रष्टï होते रहे हो। कितने गुरु संत विवेकानंद तुम्हें रास्ता दिखाते रहे, तुम्हें अपनी पहचान बताते रहे। पर तुम अपने लिए बनाए गये स्वर्ग के मोह में अपने और अपने देश के लिए नरक के गड्ढे खोदते ही रहे हो। राजमद में गद्दी के लोभ में सब मनीषियों को उनके ज्ञान को ताक पर रख दिया। गुंडाराज स्थापित कर दिया नतीजा तो भोगना ही होगा। इस भंवर से तभी निकल…

प्रेम

प्रेम की शक्ति पूर्ण पवित्रता में है। प्रेम भगवान है भगवान ही प्रेम है। प्रेम के विकास के सोपान--- हम तभी प्रेम करते हैं जब कोई हमें प्रेम करे।हम स्वत: ही प्रेम करे हैं।हम चाहते हैं कि हमें बदले में प्रेम ही मिले।हम प्रेम करते हैं चाहे कोई हमें बदले में प्रेम करे या न करे।हम यह कामना करते हैं कि हमारे प्रेम की प्रशंसा हो, स्वीकृति हो और पहचान हो।अंतत: हम प्रेम करने के लिए ही प्रेम करते हैं।हम किसी भी मानसिक, शारीरिक, सामाजिक और नैतिक बंधनों, इच्छाओं व आवश्यकताओं से मुक्त हो स्वाभाविक, सरल, पवित्र प्रेम करते हैं। यह सर्वोच्च प्रेम आनंददायी तथा सुखदायी है।पवित्र प्रेम शाश्वत है, मुक्तिदायक है, पमानन्द है।प्रणाम मीना ऊँ

मेरी प्रवृति – आदत

मुझे जीवन में जो कुछ भी भासित होता है और अनुभव होता है, उसे ठीक से पाठ बनाने की आदत है। फिर मैं इन पाठों में जोड़ती रहती हूं। जब भी मुझे कोई अन्य विषय वस्तु मिलती है या मैं स्वयं कुछ अनुभव करती हूं। इसलिए मेरे पास जीवन के कई पहलुओं पर मेरे अपने लिखित पाठों की अपनी लाइब्रेरी है जो मेरे स्वयं के संदर्भ के लिए मेरे मस्तिष्क में है। केवल मैं इसकी सूचकांक संख्या जानती हूं कि इसे कैसे संचालित करना है और अपने ध्यान से सही समय पर सही संदर्भ निकालना है। कभी-कभी मुझे लगता है कि मैं इस आधुनिक युग में एक विलुप्त प्रजाति हूं, क्योंकि कोई भी यह विश्वास नहीं करता है कि इस भौतिकवादी दुनिया में ऐसा कोई व्यक्ति विद्यमान है। मेरे चित्त-मानस को कोई भी कुछ दिनों में नहीं जान सकता। वे मेरे इतनी सारी विधाओं पर आश्चर्य करते हैं। जितना वो…

युद्ध वार और अवतार

युद्ध नकारात्मकता और विनाश हैपर पूर्णता की ओर छंटनी की प्रक्रिया हैअवतार सत्य सनातन धर्म और मानव जीवन के सही आचरण का रक्षक है सत्य धर्मप्रथम मानव अवतार श्रीराम (सूर्यवंशी) ने पाप पर पुण्य की विजय बताने के लिए स्वयं युद्ध लड़ा - 'और फिर भी…' संदेश दिया… केवल आध्यात्मिक रूप से सद्गुणी होने से… पाप को हराया जा सकता है। दूसरे मानव अवतार श्रीकृष्ण ने युद्ध में सक्रिय भाग नहीं लिया, लेकिन अर्जुन को सिखाया। गीता के ज्ञान के द्वारा कैसे सही कर्म के लिए सही अर्थों में लड़ना है सही समय पर सही आचरणतीसरे मानव अवतार बुद्ध ने अहिंसा का रास्ता दिखाया, सम्राट अशोक को सिखाया, आपदा और युद्ध के विनाश के बाद पश्चाताप करने से कोई लाभ नहीं है। इसलिए युद्ध त्याग कर प्रेम अपना। अहिंसा त्याग प्यार प्रेम का मार्ग अपना। दुर्बलों पर जीत के लिए शक्ति का उपयोग न कर। अपने राज्य सीमा के विस्तार…