‘हे सखी’

‘हे सखी’

हे पावन प्रणाम आओ !
भय का वातावरण बना है धर्म कार्य कैसे हो बोलो।
ज्ञान-ध्यान-तप नहीं सुहाता है प्रकृति पुत्री अब आँखें खोलो
पूजा-पाठ नहीं कर पाते आकर मन को समझा जाओ,
हे पावन प्रणाम आओ!
उग्रवाद आतंकवाद अब पैर जमाए खड़ा हुआ है।
लूटपाट अन्याय चोरी करने में अड़ा हुआ है।
स्वाध्याय कैसे कर पाए आकर कोई मार्ग दिखाओ,
हे पावन प्रणाम आओ !
उत्तम क्षमा धरें हम कैसे बात-बात में क्रोध सताता।
गुरुजन विनय नहीं हो पाती, सिर पर मान चढ़ा मदमाता
क्षमाशील विनयी बन जावें ऐसी कोई राह सुझाओ,
हे पावन प्रणाम आओ !
आर्जव धर्म नहीं निभ पाता, मन में मायाचार भरा है।
उत्तम शौच गया गंगाजी, अशुचि भाव ने मन जकड़ा है।
कपट मिटे जगे शुचि भावना, ऐसा सुंदर पाठ पढ़ाओ,
हे पावन प्रणाम आओ !
सत्य धर्म छुप गया गुफा में, उत्तम सत्य दिख नहीं पाता
संयम कैसे पले मन में, मन मर्कट वश में नहीं आता
सत्य और संयममय जीवन होवे ऐसे ही बस भाव जगाओ,
हे पावन प्रणाम आओ !
तप की महिमा भूल गए हैं, पूजा-पाठ केवल रहा दिखावा
त्याग प्रदर्शन मात्र रह गया, दान धर्म सब हुआ छलावा
तप और त्यागमय हो जीवन ऐसा कोई उपदेश सुनाओ,
हे पावन प्रणाम आओ !
किंचित भी नहीं मेरा जग में, फिर भी परिग्रह बढ़ता जाता
आत्म-रमण छोड़ निरंतर, विषयों में मन दौड़ा जाता
परिग्रह छोड़ ब्रह्म को समझें, ऐसा कोई संदेश सुनाओ,
हे पावन प्रणाम आओ !
अभयदान दो हे प्रणाम, दशों धर्म को पूर्ण निभावें
सही स्वरूप समझकर उनका आत्म-निरीक्षण करने पावें
तेरा-मेरा छोड़ सभी प्रेमरस डूबें ऐसी कोई तान सुनाओ,
हे पावन प्रणाम आओ !!

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