हम कहाँ जा रहे हैं ये क्या हो रहा है?

बेचो बेचो सब कुछ बेचो जो भी हत्थे चढ़े बस बेचो
बिक गया जो वो खरीदार नहीं हो सकता
बन गया जो व्यवसाय वो खेल नहीं हो सकता


एक समय गुलाम बिका करते थे। अभी भी लड़के लड़कियों की खरीद फरोख्त की बातें सुनाई पड़ती ही रहती हैं। पर बुद्धिजीवियों ने कभी भी इसे उचित नहीं ठहराया। सदा मानव अधिकारों का हनन व समाज का कोढ़ बताया। इतने आलोचक व समाजसेवियों के जत्थे होने पर भी समाज दो वर्गों में सिमट गया है। एक बेचने वाले दूसरे खरीदने वाले।

हर वो चीज़ जो कम से कम श्रम और समय में कमाई का रास्ता सुझाती है वो बिक रही है। तकनीक से लेकर बुद्धि तकï, जमीनों से लेकर रेल की पटरियों के बीच की जगह तक, मादक द्रव्यों से लेकर गुर्दों तक। भिखारी तक अपने बैठने की जगह या क्षेत्र, ठेकों व नीलामी पर उठा रहे हैं।

दुनिया में मेहनत ईमानदारी मर्यादा संस्कृति व धर्म आदि के सीधे सरल मार्ग पर चलने का ठेका केवल शहीदी मध्यम वर्गियों के हिस्से में आया है। वैसे सत्य तो यह है इन्हीं के बल पर मानवीय मूल्य व भारतीय संस्कृति सुरक्षित है। निम्नस्तरीय जनता व उच्च स्तरीय राजाओं जैसे रईसों में सब भोग चलता है सब कुछ बिकता बिकाता है और भरपूर मज़ा लिया जाता है।

इसका ताजा उहाहरण है क्रिकेट खिलाड़ियों की नीलामी। अभी तक खेलों पर ही बोलियाँ लगाकर करोड़ों अरबों के वारे न्यारे हो रहे थे। अब खिलाड़ी भी उस सामान की तरह बिक रहे हैं जिसे रईस अपनी शान बघारने के लिए पैसे के बल पर हथिया कर प्रदर्शन हेतु रखते हैं। कैसी व्यापारिकता व्याप्त हो गई है मानव मूल्य गए भाड़ में। सारी की सारी व्यवस्था सट्टेबाजी में बदलती जा रही है। सारे राजनेता प्रबुद्ध नागरिक जागरूक पत्रकार व सतर्क सामाजिक कार्यकर्ता मौन साधे हैं और दृश्य मीडिया पूरी नीलामी को चटपटा बना परोस रहा है। कुर्सी के लिए बिना बात लड़ते-झगड़ते एक दूसरे पर छोटी-छोटी बातों पर कीचड़ उछालने वाले नेता भी इस खरीद बेच के घिनौने कर्म का भरपूर आनन्द लेते हैं। किसी को रत्ती भर भी न चिन्ता है न फर्क ही पड़ता कि यह कौन सी दशा व दिशा में हम देश को ले जा रहे हैं। यह कैसा उदाहरण हम नौजवान भारतीय पीढ़ी के सामने रख रहे हैं।

खुलेआम बिक रहे मानव खुलकर नाच रहे भ्रष्टाचार के दानव
पैसा फेंक तमाशा देख भाड़ में जाए भारत देश


कहाँ छुप जाते हैं ऐसे घृणित धन प्रदर्शन के समय भारतीय संस्कृति की दुहाई देकर सरकार से बड़ी-बड़ी धन राशियाँउगाहने वाले बड़ी-बड़ी संस्थाएँचलाने वाले तथाकथित समाज सुधारक गुरुस्वामी।

शरीर के अन्दर के अंग बेचने वाले यदि गुनाहगार हैं तो पूरा का पूरा मानव शरीर बेचने वालों को क्या नाम दोगे- सामाजिक सितारे! इस व्यापारिक मानसिकता के चलते वो दिन दूर नहीं जब धन व साधन सम्पन्न लोग मानवों को बचपन में ही खरीद कर उन्हें पूरे आराम से अच्छे वातावरण के घरों, दरबों में अच्छा भोजन व समुचित स्वास्थ्य सुविधा देकर कुत्तों की तरह पालेंगे जब चाहा पुचकारा प्रदर्शन किया फिर वही सीमित दायरे में लालन पालन।

ऐसा सब केवल इसलिए कि जब भी उन्हें किसी अंग की जरूरत हो तो उनसे मनचाहा स्वस्थ अंग वसूल सकें और इस खेल का प्रचलन इस आशा में और भी बढ़ जायगा कि जरूरी नहीं कि पलने वाले को अंग देना ही पड़े शायद वो अवसर न ही आए और अगर देना भी पड़े तो क्या पैसे की चिन्ता से मुक्त भरपूर ऐशो आराम तो मिलेगा। कमी नहीं कर्महीनों की। सारा खेल जुए और सट्टे की तरह ‘अगर’ शब्द पर निर्भर। अमीरों का पद का प्रतीक, Status Symbol, कितने बलि के बकरे, Guinea pig,- मानव पाले हैं अतिरिक्त पहिए, Stepny, की तरह अपने को सुरक्षित मान निश्चिन्त होने की सुखानुभूति के लिए।

यह दृश्य भी दूर नहीं क्योंकि इसका बीज तो पड़ ही चुका है जो कि अवश्य ही पनपेगा यदि भारत के सोए हुए कर्णधारों की समय रहते आंखें न खुलीं तो। ओ भारतीयों लार्ड मैकाले की रिपोर्ट को याद करो मनन कर चिन्तन कर कर्म को उद्यत होओ। अब तो आशा की एक ही किरण प्राकृतिक नियम वाली समझ आती है कि मानव का जितना अधिक पतन होगा उतना ही उत्थान भी अवश्य ही होगा। जागेगा अवश्य नई पीढ़ी का आत्मसम्मान व स्वाभिमान। जो हो रहा है वो पतन का अंतिम दौर ही है जिसमें हमें यह भी देखना होगा कुछ सीखने समझने हेतु। सुना था खिलाड़ियों कलाकारों व लेखकों के लिए उनका स्वाभिमान ही सत्य होता है पर यह कैसी विडम्बना
है हंस-हंस के बिक रहा है खिलाड़ियों कलाकारों का मान-सम्मान स्वाभिमान।
सिक्कों में तुलता ज़मीर
कैसे-कैसे खेल खेलता अमीर
कहीं तो इस पतन का अन्त चाहिए
बहुत हो गया अब सत्य का सूर्य
उगना ही चाहिए।


ऐसा सूर्य जो समस्त विकृत सोच को भस्म कर दे। क्योंकि अब सब विकृतियों व अपूर्णताओं को युद्ध स्तर पर कर्म कर भस्म करने का समय आ पहुंचा है। इसी पर आधारित है प्रणाम अभियान।
यही है समय की पुकार
प्रणाम की चिन्तन धार
कर रही ऐसी पीढ़ी तैयार
जो करेगी अपूर्णता पर वार
सत्य प्रेम कर्म व प्रकाश को बना आधार
प्राकृतिक नियमों व मानवीय मूल्यों का रचेगी संसार

यही है सत्य
यहीं है सत्य !!

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