हे मानव !
सत्य की शरण में आ। त्याग अहम् दे सत्य का साथ। सत्य की विडम्बना यही है झूठ तो झूठ का साथ देने को झट से तैयार हो जाता है और सारे क्रियाकलाप व काले धंधे सिर्फ वचनों और इशारों से ही विश्वसनीयता से सम्पन्न कर लेता है पर सत्य अकेला रह जाता है। अपने सत्य और अहम् ब्रह्मास्मि के मंदिर में बंद या फिर विवादों के अखाड़ों में अपने सत्य को औरों के सत्य से ऊंचा और सही प्रमाणित करने के फेर में बड़े-बड़े दार्शनिक शब्दों के दाँव-पेंच लड़ाता रहता है। समय की पुकार पर कर्म करने से विमुख हो जाता है। ऊर्जा हनन, अपने सत्य को मनवाने में कर देता है।
दूसरे की लाइन मिटाकर अपनी बड़ी करने का कोई भी औचित्य है ही नहीं। एकलव्य का अँगूठा काटने वाले भी न रहे। सत्य धर्म से राज धर्म व त्यागमयी कर्ताभाव वाली प्रतिज्ञा को अधिक महत्व देने वाले भीष्म पितामह जैसे विवेकी योगी को भी शर-शैय्या पर लेटना पड़ा और अंत में सत्य की ही शरण लेनी पड़ी।
तो हे मानव ! सत्य हमेशा सत्य की सत्ता स्वीकार कर उसी के हेतु कर्म करने को तत्पर मानवों का साथ देता है। सत्यता से व सत्य योग्यता से लोगों को हमेशा भय ही लगता रहता है। यह नहीं जानते हैं कि जब तक सत्य व सत्य योग्यता को सही सम्मान व स्थान नहीं देंगे तो प्रकृति के काम में बाधा डालने वाले असुर ही रहेंगे। जो क्षमता तथा योग्यता किसी व्यक्ति विशेष को प्राप्त हो जाती है तो वो प्रकृति की ही अनुकम्पा होती है उसे दबाने तथा नकारने की चेष्टा आखिर क्यों?
सत्य तो सबसे अधिक उदार है वह सबका कल्याण चाहता है और इसी हेतु अपने को प्रस्तुत करता है। पर लोग डरते हैं कि कहीं अपना ही कुछ स्वार्थ तो सिद्ध करने नहीं आया। एक प्रश्न बड़ा ज्वलन्त है कि भारत में इतनी योग्यताएँ, प्रतिभाएँ व दैवीय शक्तियाँ होने के उपरांत भी इतनी कुव्यवस्था क्यों है? दूसरों की योग्यता की सीढ़ी से चढ़ आए लोग ही सुपात्र को सामने नहीं आने देना चाहते। इस प्रकार शीर्ष पर आए लोगों का अंत सुखद हो ही नहीं सकता। जो सत्य क्षमतावान का उपयोग निजी स्वार्थों के लिए करते हैं वही देश के अहित का मूल कारण है। समय की दृष्टि में उनका अपराध अक्षम्य है।
जो कर्मठ योगी शीर्ष पर अपनी ही योग्यता से व अन्य सहयोगियों का ध्यान रखते हुए पहुँचते हैं वह भय रहित तो होते हैं पर कभी-कभी उनके चारों ओर भी ऐसे चाटुकार होते हैं जो उन तक सत्यता को पहुँचाने नहीं देते। जब तक सत्य योग्यता को नकारा जाएगा, उत्कृष्टता व्याप्त नहीं होगी।
तो हे मानव ! अब समय नहीं समय गंवाने का। सत्य का साथ दो सत्य तुम्हारा साथ देगा। सत्य ही दिव्यता की शक्तियों को पृथ्वी पर अवतरित करने की सम्भावना की पुष्टि करता है। सत्य शक्ति है और क्षमता तथा साहस उसके ब्रह्मास्त्र जो समस्त अपूर्णता को काट कर आनन्द मंगल और उत्थान का मूल कारण हैं सार्वभौम संस्कृति का उद्गम स्रोत हैं।
यही सत्य है
- प्रणाम मीना ऊँ