सत्य के प्रत्यक्ष प्रमाण सा प्रतीक प्रणाम का

प्रतीकों की अपनी एक अनोखी है दुनिया जो कि कुछ विशेष चिह्नों, बिन्दुओं, रेखाओं व रंगों में पूरा ग्रंथ समाए हुए होती है। प्रतीक एक सोच या विशेष विचारधारा की उत्पत्ति होते हैं। जो दिमाग से सोचकर या विशेष कला की विद्या ध्यान में रखकर नहीं बनाए जा सकते। यह अपने अंतर के सत्यभाव से प्रस्फुटित होते हैं।

यह अपने आपमें पूरा संदेश लिए होते हैं जिसे वे ही समझ पाते हैं जो उस प्रतीक वाली विचारधारा के प्रवाह से जुड़े होते हैं। इनका प्रभाव सम्पूर्ण होता है जैसे गदा देख हनुमान या भीम का विचार आता है। सुदर्शन चक्र विष्णु की पूर्ण शक्ति का प्रतीक है और श्रीकृष्ण के अमोघ आयुध का ध्यान कराता है। बाण से राम का और त्रिशूल से दुर्गा का, डमरू से शिव का स्मरण हो आता है। चूहे से श्रीगणेश का इस प्रकार अनेकों प्रतीक हैं।

इसके साथ-साथ देवी-देवताओं के विशेष स्वरूप, अन्य प्रतीकों के साथ, अपने आप में पूर्ण ज्ञान समाए हुए हैं। जिन्हें पूरा का पूरा समझने के लिए उसे जानकर साधना में परिवर्तित कर तत्व जानने के लिए, विवेक, तत्बुद्धि व पूर्ण कर्म चाहिए। आंतरिक व बाह्य साधना का पूरा ज्ञान-विज्ञान इन प्रतीकों व मूर्तियों के आकार व स्वरूप में निबद्ध है। जिसे सिर्फ दिव्य दृष्टि वाले ज्ञानी या सच्चे साधक ही बांच सकते हैं। जैसे श्रीकृष्ण का विराट रूप केवल अर्जुन व संजय ही दिव्य दृष्टि के कारण देख पाए।

कितने विवेकी थे हमारे ज्ञानी महात्मा दिव्य पुरुष जिन्होंने मानव जीवन के रहस्य को, उसके प्रकृति व ब्रह्माण्ड से सम्बन्ध के विज्ञान को गहन कुशलता व बड़ी चतुराई से इन देवी-देवताओं की प्रतीकात्मक प्रतिमाओं और द्विअर्थी गाथाओं में सुरक्षित कर दिया। पढ़ा-सुना ज्ञान तो सब इधर-उधर हो सकता है उसको बदलकर मनमाना प्रयोग किया जा सकता है। स्वार्थमयी बुद्धि से तोड़ा-मरोड़ा जा सकता है। पर इनमें निहित सच्चा ज्ञान, सच्चिदानंद द्वारा चुना सत्य मानव ही जान सकता है और यह ज्ञान की धारा सच्चे साधक की ओर ही बहेगी क्योंकि सत्य ही सत्य तक पहुँचता है यही सत्य है।

हमारी भारतीय संस्कृति से जुड़ी धार्मिक पुस्तकों में कहीं न कहीं यह शब्द जरूर आते हैं कि यह गुप्त रहस्य है अत्यन्त गोपनीय है सिर्फ सुपात्र को ही देना है। यह ऐसे ही नहीं कहा गया। क्योंकि प्रतीकात्मक भाषा व प्रतीकों में सौंदर्य और सत्य बिना माँ सरस्वती की कृपा के असंभव है।

प्रणाम के प्रतीक में सुदर्शन चक्र, मोरपंख, शंख, कमल व सर्वव्यापी ऊँ सूर्य बिन्दु के साथ इसी परमकृपा का प्रत्यक्ष प्रमाण है। और इसको रंगों सहित पूर्ण रूप भी प्रणाम की मानसपुत्री अनुभूति ने दिया है। भारतीय संस्कृति में सम्पूर्ण मानव विष्णु का अवतार स्वरूप होता है जो कि पूर्णता के प्रतीक हैं। उनके दो दैवीय और दो मानवीय हाथों में चार ब्रह्मास्त्र हैं। दैवीय हाथों में चक्र व कमल मानवीय हाथों में गदा और शंख हैं। जो इनके गुणों को धारण करता है वही पूर्ण युगदृष्टा होता है। इन गुणों को धारण करने वाला मानव अवतार स्वरूप होता है। इनके दिव्य गुण इस प्रकार हैं:-

सुदर्शन चक्र- पूर्ण सत्यता से उत्पन्न ब्रह्मतेज का प्रतीक। जिसने मनसा वाचा कर्मणा-मन वचन कर्म तीनों को सत्य से साध लिया हो अर्थात जो सोचता हो वही बोलता भी हो और करता भी हो तो उसमें इतनी शक्ति आ जाती है कि जिधर अँगुली उठा दे या मन की ध्यान शक्ति का बाण छोड़ दे उधर अपूर्णता नष्ट होगी ही। सुदर्शन चक्र सर्वशक्तिमान तेजस्विता का प्रतीक है, जिसके दर्शन भी सौंदर्यमय हैं इसका प्रयोग बार-बार नहीं किया जाता। जब अपूर्णता अपनी चरमसीमा पर पहुँचती है तभी वार होता है। यही इसका सौंदर्यपूर्ण आनन्द है। अपूर्णता की कुरूपता बढ़ते हुए देखना और फिर समयानुसार सद्बुद्धि ज्ञान और विवेक से इसका प्रयोग करना। यह वही मानव कर सकता है जो वेद-विज्ञान और विद्या-ज्ञान से परिपूर्ण हो।

कमल- पूर्ण निर्लिप्तता का और पूरे के पूरे सहस्र विष्णु गुण जिसने अपने में पा लिए हों, जगा लिए हों उसका प्रतीक है। जो सब कला सम्पूर्ण हो उसका सहस्रार चक्र पूरा विकसित होकर खुल और खिल जाता है। फलस्वरूप वह प्रकृति की अनन्त शक्तियों से जुड़ जाता है। तब प्रकृति ज्ञान-ध्यान, वेद-विज्ञान सब विधाओं का सार सम्पूर्णता से प्रदान करती है।

शंख- संतुलित ऊर्जाओं का प्रतीक है। जिस व्यक्ति की ऊर्जाएं संतुलित हों वह जो भी आवाज़ या शब्द बोलेगा वह निर्दिष्ट स्थान पर पहुँच ही जाएगा। नकारात्मक शक्तियों को काट देगा। इसलिए पूजा की सूचना हो या युद्ध की घोषणा, शंखनाद किया जाता है। ज्ञान, प्रकाश की ऊर्जा तरंगें जो सीधी चलती हैं उनसे आता है। भावनाओं का उद्वेग चक्रवत (स्पाइरल) आकार में प्रवाहित होता है शंख की रचना चक्रवत ऊर्जा तरंगों से होती है। जहां सीधा प्रकाश नहीं पहुँच पाता वहाँ चक्रवत तरंगें पहुँच जाती हैं। यही है शंख की विशेषता जो भाव डालकर फूँको उसकी गूँज से ही वह संदेश चारों ओर जल थल और आकाश में फैल जाता है।

मोरपंख- संसार रंगों का खेल है सब रंग अपने में सुंदर व व्यापक अर्थ लिए हुए हैं। मोरपंख सब रंगों को सुंदरता से धारण करता है। हमें भी प्रकृति के सब रंगों और लीलाओं को प्यार करना है। अपनी भावनाओं का सुंदरता से प्रदर्शन करना है। प्रकृति में तो सभी कुछ है हम क्या धारण करते हैं यही हमारी विशिष्टता है। ब्रह्माण्ड में सैकड़ों ग्रह हैं पर सिर्फ हमारी पृथ्वी ही सही मात्रा में पाँचों तत्वों को धारण कर इतनी सुंदर रचना रच लेती है। मोरपंख में रंगों का समन्वय अनूठा व अनोखा है जैसे प्रकृति हमें हजार आँखों से निहार रही है।

ऊँ प्रणव- इस प्रणव में तो सम्पूर्णता ही है ना कुछ कम, ना कुछ ज्यादा। इसकी स्तुति में बस यही कहना है कि यह पूर्ण है, प्रत्यक्ष है, प्रमाण है, सृष्टि होने का। इसी ऊँ सूत्र से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड और उसकी कृतियाँ बँधी हैं। इसी सूत्र ऊँ को साधकर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड से जुड़ा जा सकता है।

प्रणाम का प्रतीक अपने आप में वह संदेश लिए है जो संभवामि युगे युगे है। यही सत्य है प्रणाम का। गदा जो कि विष्णु जी के चौथे हाथ में है वह शारीरिक शक्ति का प्रतीक है, उसको प्रणाम प्रेम की अनदेखी शक्ति के रूप में देख रहा है क्योंकि अब प्रेम की शक्ति से झूठ पर सत्य की विजय प्राप्त करनी है। झूठ जो दिखाई नहीं दे रहा सत्य जो सुझाई नहीं दे रहा। प्रणाम एक जागरण की लहर उठाने को पूर्ण तत्पर है और इसका विस्तार सम्भव है प्रणव द्वारा, मनन द्वारा, चिंतन द्वारा, कर्म द्वारा।

कर्म कर प्रेम कर सत्यमय हो जा गीता ज्ञान से सुदर्शन चक्र चलाना है अपूर्णता पर यही आज का सत्य है। प्रणाम का तथ्य है, कथ्य है।
सत्यमेव जयते

  • प्रणाम मीना ऊँ

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