सच्चा गुरु और सही नेता

हे मानव ! सच्चे गुरु और सही नेता के गुण जान। सच्चे गुरु और सही नेता वर्णरहित और वर्गरहित होते हैं। सच्चे युगदृष्टा का, सच्चे मार्गदर्शक का व सच्चे गुरु का न तो कोई वर्ण होता है न ही वर्ग-‘न होय वर्ग न होय वर्ण सांचा गुरु सोई’ न ब्राह्मण न क्षत्रिय न वैश्य न शूद्र कोई भी वर्ण नहीं। न बुद्ध न हिन्दू न सिख न मुसलमान न ईसाई न कोई सम्प्रदाय न कोई संगठन कोई भी वर्ग नहीं।

सच्चा गुरु और सच्चा नेता केवल एक उत्कृष्ट मानव होता है सिर्फ एक आत्मबली, आत्मवान होता है। आत्मबली आत्मवान व श्रेष्ठ मानव ही गणनायक होता है। जिसका ज्ञान-ध्यान सदा सुपात्र की ओर ही प्रवाहित होता है और उसका कर्म सदा परम उद्देश्य हेतु परम चेतना, Supreme Consciousness, से संयुक्त हो निर्देशित होकर संचालित होता है और युगचेतना को ही समर्पित होता है।

सच्चा गुरु केवल दो ही गुणों का पुंज होता है-एक है आत्मिकता और दूसरा आत्मीयता। दोनों ही ईश्वरीय शाश्वत परा गुण हैं। आत्मिकता, soulful आत्मगुण से परिपूर्ण और आत्मीयता, स्वार्थरहित अपनत्व एकत्व स्वत: स्फूर्त स्नेह। ये दोनों शब्द ही ऐसे शब्द हैं जो कभी भी अपना स्वभाव स्वरूप गुण अर्थ तत्व नहीं बदलते। दोनों शब्दों का अर्थ भाव गुण व महत्व सदा एक समान रहता है। इनका सत्य एक ही रहता है जो कभी भी किसी भी स्थिति दशा या दिशा में परिवर्तनशील नहीं है। दिव्यता परिलक्षित होती है इन गुणों को धारण किए मानव में।

धार्मिकता नैतिकता राजनैतिकता आदि सांसारिक नश्वर अपरा गुण हैं। समयानुसार इनका गुण धर्म अर्थ महत्व व स्वरूप बदलता रहता है और आज के समय में तो ये शब्द कभी-कभी अपशब्द जैसे लगने लगते हैं। राजनेता हैं धार्मिक हैं बहुत पहुँचे हुए हैं, बड़े अध्यक्ष पद पर हैं, बहुत बड़ी संस्था चलाते हैं आदि-आदि। कौन कहाँ-कहाँ जुगाड़ कर रहा है, सभी जानते हैं पर फिर भी गद्दी को सलाम वाली संस्कृति ही छाई है। सभी मतलब साधने के लिए अपने बनाए चक्रव्यूहों में ही घूमते रहते हैं। जबकि इस सत्य का शाब्दिक ज्ञान तो सब जानते हैं कि सब असत्य है नश्वर है और अन्तत: सत्य ही जीतता है पर फिर भी अधिकतर मानव झूठ पाखंड ढोंग व स्वार्थी महत्वाकांक्षाओं में लिप्त रहते हैं। इसी असत्य की धारा में बहते रहते हैं और गंगा-धारा में डुबकियाँ मार पापों को धोने का उपक्रम करते रहते हैं। धार्मिक गुरुओं से आशीर्वाद और राजनेताओं से कृपादृष्टि मांग-मांग कर सुखों की कामना केवल अपने ही कल्याण हेतु करते ही रहते हैं। चाहे कुछ दान-दक्षिणा, जिसे आजकल रिश्वत नहीं सुविधा-शुल्क कहा जाने लगा है ही क्यों न देनी पड़े। सब कुछ व्यापारिक लेन-देन सा चलता रहता है। भेड़चाल जैसा…

पर इन सबको भी नमन सहित प्रणाम क्योंकि इन सबके होने से ही तो यह ज्ञान आता है कि ‘क्या नहीं करना चाहिए’ कहाँ-कहाँ मानव अधोगति को प्राप्त होता है। अवांछनीय कर्मों में लिप्त होता है फिर भाग्य को दोष देता है तो उदाहरण सामने होने पर सबक अच्छी तरह समझ आ जाता है, नहीं तो पता ही न लगे कि क्या सही है, क्या गलत। सही गुरु या मार्गदर्शक नेता का चुनाव अन्तरात्मा की सत्यमयी पुकार पर निर्भर है। जुगाड़ू मानव क्या नेतृत्व देगा… तो धन्यवाद सभी इतनी मुखरित विद्रूपताओं कुरूपताओं और विकृतियों का जो सत्य सौन्दर्य और सत्य आनन्द, सत्यानन्द का महत्व बताएँ, सही अर्थ समझाएँ।

अरे मानव! चेत, सच्चा गुरु तो तेरे अन्तर में ही है अगर उसे नहीं सुन पाता तो वो तेरी अपनी ही अक्षमता है। पर परमचेतना अत्यंत कृपालु है, अपने ऊपर सत्यता से हर निश्चय से व पूरी आस्था से काम करना प्रारम्भ कर तो सही वो परम चेतना स्वत: ही कोई न कोई गुरुस्वरूप माध्यम भी देगी और सही परिस्थितियाँ भी प्रवाहित करेगी। यही तो है सबसे अद्भुत चमत्कारों का रहस्य जिनकी अनुभूति केवल सत्यनिष्ठा मानव ही कर पाता है। तो आओ, सत्य प्रेम कर्म व प्रकाश के माना मार्ग पर चलकर सत्यात्मा का अवतरण कर मानव जीवन को सार्थक करें।

यही सत्य है
यहीं सत्य है

  • प्रणाम मीना ऊँ

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