युगों का खेला
देखूँ मायावी मेला
सत्य भाव संकल्प बन जाते
सत्य भाव संकल्प बन जाते
समय रथ कालचक्र पहिए
ध्यान की रास विचार घोड़े
सत्य की ओर ही तो दौड़े
जहाँ पहुँची हूँ
जहाँ पहुँचा है मेरा मन
वहाँ से तो केवल दृष्टा बन
बस देखना ही होता है
हर पल की होनी के प्रति
पूर्ण चैतन्य
सदा चैतन्य
सत् चित् आनन्द का मूर्तरूप धरे
ऊर्जा की उर्मियाँ
ज्ञान की रश्मियाँ
भृकुटि की प्रत्यंचा पर सवार
भृकुटि की प्रत्यंचा पर सवार
दृष्टि के तीर से
वहाँ ही तो भेजनी होती हैं
जहाँ जूझ रही पूर्णता की गति
सत्य की मति से
झूठ औ’ अपूर्णता की अति से
सशरीर सारथी बन उतरना होता है
खुले मैदान में तब ही
जब हो जाते अर्जुन तैयार कहीं
करने को हर कुरूपता का संहार
रचने को
सत्यम् शिवम् सुंदरम् संसार
सत्यम् शिवम् सुंदरम्
संसार
यही सत्य है
यहीं सत्य है
- प्रणाम मीना ऊँ