हे मानव ! जान यह ज्ञान विज्ञान। सम्पूर्ण धरा प्रकृति की एक प्रयोगशाला ही तो है। मानव पुतला है और प्रकृति अन्तरिक्षीय परम बोधि-वैज्ञानिक, Cosmic Supreme Intelligence – Scientist, की कारण कर्ता है। जिसे सबसे अच्छा निष्कर्ष ही चाहिए। सत्यम शिवम सुंदरम चाहिए। एक सर्वोत्कृष्ट रोबोट या अंतरिक्ष यान की भांति मानव अपने होने न होने का व उत्थान की सभी संभावनाएं धरती पर खोजने आया है।
परमस्रोत की प्राणशक्ति से संचालित व निर्देशित प्रकृति के विशेष कर्म हेतु ही इस धरती पर मानव जीव है। वो विशेष कर्म है सशक्त सौन्दर्यमय व पूर्णता-उत्कृष्टता की ओर निरंतर उत्थान और मानव की सभी क्षमताओं का पूर्ण विकास। इसी कारण प्राकृतिक रूप से निरंतर उत्पत्ति और विनष्टि होती रहती है।
मानव क्या है… प्रकृति द्वारा धरती पर स्थापित पुतला जो कि आगे की उत्पत्ति व उत्थान के लिए सूचनाएं व डाटा संग्रह करने हेतु। जितनी चाबी भरी राम ने उतना चले खिलौना जब यह ध्येय पूरा हो जाता है तो मानव मृत्यु को प्राप्त होता है। जिसका जितना उत्थान या पतन होता है वो वैसी ही सूचनाएं एकत्र कर पाता है।
इस धरती पर जीवन का खेल अपने गुनों के अनुसार खेल-खेलकर प्राप्त किया अंतिम विचार सूचना या भाव जो कि मानव के उत्थान के अनुरूप ही होता है। वो भाव विचार या सूचना उसी से सम्बन्धित, corresponding, अंतरिक्ष क्षेत्र में भेज दी जाती है।
पुन: जीवन इसी सूचना के आधार पर होता है और उसी से आगे का खेल प्रारम्भ होता है। यह चक्र लगातार चलता रहता है। आत्मा-प्राण ऊर्जा इसी भाव की वाहक है, शरीर छोड़ने के बाद।
अंतरिक्षीय क्षेत्र, plane, सात हैं जिनकी कोई बंधी बंधाई सीमा रेखा नहीं होती, जैसे कि समुद्र में पानी कुछ-कुछ गहराई के तल पर बदला सा होता है मगर एकदम सटीक भाग नहीं होते जो कि भिन्न-भिन्न उर्मियों, frequency, से स्पन्दित हैं। इनका सीधा सम्बन्ध उत्थान के सोपानों से है।
प्रणाम यह सत्य जानता है- सब कुछ समझ पाया है वेद गीता और अन्य प्राचीन शास्त्रों के रचयिता ऋषि वैज्ञानिकों के चिंतन मनन व ध्यान की विधि से। केवल पढ़कर नहीं उनके अनुसार जीकर।
कृष्ण विवर, Black hole, अगली सृष्टि के लिए सूचना बीज रूप में विद्यमान या संजोए रखता है। जैसे सप्तऋषि, सितारे समस्त ज्ञान को संजोए रखते हैं और ध्यान की पराकाष्ठा वाले सुपात्र को ही उपलब्ध कराने के माध्यम बनते हैं।
सबसे उन्नत सातवां क्षेत्र- मानव की सर्वोन्नत स्थिति का द्योतक है व सत्यम लोक कहलाता है यही अवतार का क्षेत्र है। इस अवस्था की प्राप्ति हेतु अपनी सभी क्षमताओं और संवेदनाओं को पूर्णतया विकसित करना होता है। अपनी सभी विधाओं का विकास मानव बुद्धि की पकड़ से परे करना होता है क्योंकि विकास की सीमा अपरिमित है। The sky is the limit.
मूलाधार चार दल कमल से सहस्रार, सहस्रदल कमल तक की यात्रा पूर्ण करनी है। मानव को पूर्ण मानव होना है। यही प्रणाम का कर्म है धर्म है। मानव पूर्ण होकर ही पूर्ण में मिले न कि बस पूरा हो जाए मृत्यु को प्राप्त हो जाए। प्रणाम पूर्णता का मार्ग बताता है, पूर्णता क्या है यह बताता है। पूर्ण हुए या नहीं यह प्रकृति की, ब्रह्माण्ड की परमबोधि पर छोड़ दो। उसे तुम्हारी क्षमता पता है, तुम्हारा मिशन पता है, तुम्हें धरती पर क्यों भेजा सब पता है।
तुम्हारा कर्म है केवल पूर्ण सत्यता से पूर्ण कर्म से पूर्ण प्रेम से पूर्ण चैतन्यता से जीवन जीवंत होकर जीना जो पार्ट मिला पूर्णता से खेलना, यही जीवन है।
यही सत्य है
यहीं सत्य है
- प्रणाम मीना ऊँ