मानव की चतुराई

अपनी ही ज्ञान ध्यान चिन्तन मनन की सतत् साधना से यदि आप सत्य को जान व समझ गए हैं तो पहले तो एक वाक्य सुनने को मिलेगा कि आप तो बहुत पहुंचे हुए हैं। समझ नहीं आता कि व्यंग्य है या प्रशंसा। उस पर हर ऐरा गैरा सबूत माँगता है और यदि आपने कुछ सबूत दे भी दिया तो वो भी आपको माने या न माने उसकी मर्जी। सबूत मांगने वाले यह नहीं समझते कि सबूत स्वयं को मनवाने के लिए नहीं है केवल यह बताने के लिए है कि सबका उद्देश्य सत्य को जानना होना चाहिए।

पर ये सब कुछ प्रमाण मांगना परीक्षाएं आदि लेना इसलिए कि या तो आपको नकार सकें या यह जाँच सकें कि आपमें कितनी शक्ति है उसी के अनुसार आपका लाभ उठाया जा सके। इतना चतुर है मानव कि यदि आप उसकी सांसारी इच्छाएँ पूरी कर सकें अपने दर्शनों व आशीर्वादों से उन्हें सफलता धन दौलत स्वास्थ्य प्रसन्नता आदि सब कुछ दे सकें तो आप बहुत पहुंचे हुए बड़े महान ज्ञानी ध्यानी हैं। ज़रा सी भी समस्या हुई तो चलो गुरुजी हैं न उनकी शक्ति से सब ठीक हो जाएगा। अपने ऊपर काम करने की ज़हमत कौन उठाए।

गुरु को भी कभी कोई मानवीय मानसिक या शारीरिक जरूरत हो सकती है इससे बेखबर केवल जब तक गुरु में जान बाकी है उनका गुणगान करके उनका लाभ उठाए जाओ। हाँ कुछ पाप भी धुल जाएँऔर कालेधन का भी कुछ उपयोग हो जाए तो चलो कुछ चढ़ावा भी चढ़ा दें।

क्या हुआ ओशो, श्री महेश योगी या श्री सत्यसाईं का तीनों ही भगवान कहाए पर अन्त समय कैसी रहस्यमयी मृत्यु को प्राप्त हुए सब जानते हैं। शिष्यों की कैद में दुनिया से दूर, चारों ओर से घेरा लगाए बैठे लोगों ने जितना निचोड़ना था निचोड़ लिया। ज्ञान ध्यान सम्पत्ति सब कुछ खूब लाभ उठा लिया। उसके बाद यही रस्साकशी कि सारी जमापूंजी अकूत सम्पदा व जमीन जायदाद का साम्राज्य किसका हो। इसी संघर्ष में लिप्त शिष्यों का जमावड़ा, बाद में उनकी तस्वीर लगा समाधि बना मंदिर में सजा पीढ़ी दर पीढ़ी मौज उड़ाते रहो।

गुरु व तमाशा लगाने वाले में कोई अन्तर नहीं रहने देता मानव। गुरु सबको खुश करे आनन्द दे सबका मनोरंजन करे और कमाई कोई और ले जाए। जो गुरु कर्म का रास्ता बताए सच का शीशा दिखाए दे उसके पास कौन आएगा कौन धन खर्चेगा।

इतने गुरु स्वामी हो गए हैं और आजकल तो भरमार है पर कौन उनकी बताई राह पर चलता है बल्कि गुरु को ही अपनी मनमर्जी से चलाना चाहते हैं। जितना बड़ा गुरु उतनी बड़ी मांग स्वास्थ्य धन दुकान नौकरी रिश्ते नाते सब कुछ ठीक हो जाएं खूब सफलता मिल जाए आदि-आदि जो जितना बड़ा चमत्कार दिखा दे उतना ही बड़ा गुरु।

हे मानव! कभी सोचा कि अधिकतर सत्यमय गुरुओं को क्यों ज़हर फाँसी या गोली दी क्यों अमानवीयपरीक्षाएँ व कष्ट दिए, केवल इसलिए कि उनकी सोचने की विधि तुमसे भिन्न रही। तुम्हें सत्यमार्ग दिखाकर तुम्हारी अपूर्णता की ओर इंगित किया। मानव अपने ऊपर कर्म करने की साधना से बचना चाहता है। अपने कष्टों व दुखों को तपस्या न मानकर कहीं बाहर से उनका निराकरण हो जाए या कोई ऐसा उपाय पता लग जाए जिससे कुछ भी सहना न पड़े। जो सहनशीलता व विवेक जगाने आयी है उसी पीड़ा या कष्ट से छुटकारा मिल जाए।

मानव यह नहीं जानता कि यह विधि के विधान का अटल सत्य है कि जीवन की संध्या में, जीवन में आए कर्मों को भरपूर न जीकर, कुछ और जो भी कर्म बना लिए, वो अवश्य ही रंग लाते हैं तब मानव प्रश्न ही करता रह जाता है कि मेरे साथ ही ऐसा क्यों हो रहा है। जीवन का चक्रव्यूह तोड़कर निकलने में ही उत्थान व कल्याण है बचने में उसी में घूमते रहना होता है।

महामहिम ओशो महेशयोगी व सत्यसाईं का अन्त इतना रहस्यमय और उदास सा क्यों हुआ। जिन्होंने बताया जीवन उल्लासपूर्ण उत्सव बनाओ वो ही कैसे अन्त समय एकदम अकेले कैदी जैसी स्थिति में रहे। श्री महेशयोगी वैदिक ज्ञान व ध्यान के प्रणेता अपना ज्ञान ध्यान विदेशों में भुनाने गए। दुर्ग जैसे आश्रम में अपना ही सिक्का सोने का चलाया क्या हुआ अपना कोई भी उत्तराधिकारी अपने जैसा न बनाया सब सम्पति तथाकथित विदेशी शिष्यों ने हथिया ली। वैदिक ज्ञान का सही उपयोग न हो पाया।

श्री ओशो ने मुक्त व्यवहार का आनन्द बताया व शब्दब्रह्म की पवित्रता व सत्यता से खूब खेले। लोगों की मानसिकता घुमाने की दार्शनिक सिद्घि का भरपूर प्रयोग किया। जैसे भी चाहो हर उच्छृंखलता की वकालत कर लो।

श्री सत्य साईं ने शरीर के प्राकृतिक धर्म से छेड़छाड़ कर शिवलिंग उगलना आदि चमत्कार दिखाकर सम्पन्नों को रिझाकर खूब वैभव बटोरा ठीक है समुचित रूप से लगाया भी परन्तु तरीका वही रहा सामर्थ्यवानों को आकर्षित करना और उन पर विशेष अनुकम्पा अन्त में भी वही विशेष वर्गीय ही विशेष दर्शन कर पाए।

तो अन्त समय, जीवन जैसे जीया होता है वैसा ही संकुचित हो सिमट आता है और सत्य ज्ञानी इस सत्य का प्रत्यक्ष दर्शन कर पाता है। अन्त समय प्रत्येक को सत्य का भान हो जाता है लेकिन उसे व्यक्त करने को वह शेष नहीं रहता। पर वह अंतिम भाव जो कि मृत्यु के समय का अनुभूत सत्य होता है वही अगले उत्थान की कड़ी बनता है यही है काल का सत्य।
यही सत्य है
यहीं सत्य है

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