मर्यादा राम की नीति कृष्ण की करे उद्धार

मर्यादा राम की नीति कृष्ण की करे उद्धार

हे मानव !
कलियुग में इन्हीं की महिमा बखान से बेड़ा पार होगा। रावणों का कितना भी बखान कर लो ऊर्जा का हनन ही होता है। रावण व कंस अत्यंत गुणवान, ऐश्वर्यवान, अथाह सैन्यबल प्रधान थे फिर भी उनको महिमामंडित करने की अपेक्षा रामायण में श्रीराम और भागवत में श्रीकृष्ण की छोटी से छोटी बालक्रीड़ा से लेकर उनके महान व्यक्तित्व की सौम्यता, करुणा, कर्त्तव्य परायणता व सत्याचरण के एक-एक क्षण का पूरे विस्तार से वर्णन है। इसी प्रकार सत्यव्रतधारियों के बखान से उनके बताए मार्ग प्रसार से ही कल्याण होता है।

आज का मानव सब तथ्य जानता है फिर भी जागने को तैयार नहीं, कर्म को तत्पर नहीं क्योंकि कलियुग के मशीनी दिमाग यही सोचते रह जाते हैं कि क्या लाभ होगा चेतना जगाकर? पहले युगों में कलम की शक्ति से सैलाब उमड़ पड़ते थे। जान तक न्यौछावर करने को उद्यत हो उठते थे लोग। वैसे भी यह प्रकृति का नियम है कि पहले प्रयुक्त हुई कोई भी विधि काम नहीं आती न ही कोई बना बनाया तकनीकी फार्मूला। क्योंकि कोई भी अभियान या क्रांति जिस सीढ़ी से परवान चढ़ती है उसका आधार सदा किसी एक सत्य साधक की तपस्या ही होता है। जिसका स्वरूप समय की मांग के अनुसार बदलता ही है, कुछ छूटता है, कुछ जुड़ता है।

युग चाहे जो भी हो मगर रास्ता सदा एक ही होता है जहाँ कहीं ज़रा सा भी सत्य नजर आए तो सारा अहम् त्यागकर उसके साथ जुड़कर सच की लाइन बड़ी की जाए झूठ की लाइन छोटी करने को। क्योंकि अब समय आ गया है जब झूठ ही झूठ को मारेगा। सत्य का कर्म केवल इतना है कि अपने सत्य पर टिका रहकर इतना तेज बढ़ा ले कि पारे की तरह पारदर्शी हो जाए और अन्य सत्यमय पारों में घुलकर अपना आकार इतना बड़ा कर ले कि झूठ की चुटकी में न आ सके।

त्रेता में अवतारी राम और ज्ञानी रावण के युद्ध में कम बुद्धि वाले मगर सत्य का साथ देने वाले प्रेममय वानर व रीछ ही काम आए। द्वापर युग के आते-आते महाभारत के समय श्रीकृष्ण ने भी यह जान लिया कि लातों के भूत बातों से नहीं मानेंगे। सारी सेना विपक्ष को देकर भी सत्य के पक्षधर होकर विजय पाई।

वही सत्य की नीति मर्यादित आचरण की रीति व गीता का ज्ञान अन्याय को सहना भी अन्याय है, भारत को आज़ाद कराने में तो काम आया मगर कर्त्तव्यों व अधिकारों का भेद न समझा पाया। आज़ादी का नशा और सारा ज्ञान, वाक्चातुर्य द्वारा स्वार्थसिद्धि व भोगविलास को उचित ठहराने में ही रम गया है और अब असत्य का राक्षस रामचरित मानस की मर्यादित व कृष्ण गीता की प्रतिपादित सत्य, धर्म, कर्म की उच्चतम वैदिक संस्कृति को लीलता, निगलता जा रहा है।

हे मानव ! अब तो जाग पुरुषोत्तम राम की मर्यादा व त्याग, योगेश्वर कृष्ण का कर्त्तव्य कर्म वाला मार्ग अपनाकर अपना व मानवता का उद्धार करने का पुरुषार्थ कर। सत्य के लिए कर्मरत होना ही होगा। बहुत हो गया ज्ञान बटोरना व बघारना। यही है कलियुग का धर्म, द्वापर के अंत में नारद मुनि ने भी यही कहा कि कलियुग में सोलह शब्दीय राम-कृष्ण मंत्र ही पार लाएगा। इसका सही तात्पर्य समझें-मंत्र रटने से कुछ नहीं होगा। श्रीराम व श्रीकृष्ण के दर्शाए मार्ग पर चलकर उनके दर्शन से जुड़कर ही कल्याण का मार्ग प्रशस्त होगा।
यही सत्य है !!

  • प्रणाम मीना ऊँ

प्रातिक्रिया दे