बस दो दो दो…

क्षमादान जिसमें कुछ भी
अभयदान खर्च नहीं होता
प्रेमदान वही देना
ज्ञानदान सबसे मुश्किल क्यों
अहम् हाथ बढ़ाने ही नहीं देता
ऐसे दान के लिए
अहम् आत्मा की स्वतंत्रता में
सबसे बड़ा बाधक है
दो भई दो वही तो दोगे
जो ऊपर से
मिला है
क्या जाएगा तुम्हारा
सब ग्रंथियाँ स्वत: ही खुल जाएँगी
खुल जाएँगे द्वार मन मस्तिष्क के
यही सत्य है !!

  • प्रणाम मीना ऊँ

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