प्रकृति की क्रूरता और प्रीत

प्रकृति की क्रूरता और प्रीत

हे मानव !
ये ज्ञान जान, प्रेम और क्रूरता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। प्रकृति का नियम है जैसा देती है वैसा ही ले लेती है। पाँच तत्वों से पुतला रचा अंत में वैसा ही कर अपने में ही मिला लिया। प्रकृति जड़ चेतन सबको एक-सा ही प्रेम करती है अपने ही ध्येय के लिए। उसका ध्येय है सतत् प्रगति और जब इस ध्येय में व्यवधान देखती है तो अपने तांडव, भूचाल, ज्वालामुखी, बाढ़, आँधी-तूफान आदि पाँच तत्वों का ही सहारा ले विनाश कर देती है। सब कुछ लयबद्ध होकर इसी नियम से संचालित है।

प्रकृति के प्रेम को लौटाना इतना जरूरी नहीं जितना आगे बांट देना ही गति है। चाँद उतनी ही रोशनी ले पाता है जितनी उसकी नियति है और रोज़ लेकर बांट देता है। नहीं मिला प्रकाश तो भी चिंता नहीं, अपने में मग्न धरती के चक्कर लगाता ही रहता है तभी तो टिका है। पर इंसान को प्रेम चाहिए, नहीं मिलता तो बुद्धि से युक्तियाँ ढूँढ़ता ही रहता है। पर क्या कभी सोचता है कि जितना पाया उसे आगे कितना बांटा। बांटना तो दूर जिससे पाया उसी को चोट पहुँचाता है। यदि प्यार लौटा न पाओ तो कोई बात नहीं चाँद कभी भी सूर्य का दिया प्रकाश लौटा नहीं सकता पर फिर भी पूर्ण समर्पण में धरती के साथ उसकी परिक्रमा करता ही रहता है।

प्रेम की इच्छा रखना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। पर प्रकृति माँ का अपना ही विधान है जिसके अनुसार प्रेम या क्रूरता मिलती है मानव को, उसके ही विकास और उत्थान के हेतु। क्रूरता से भी मानव को कुछ सिखाकर अपनी सतत् प्रगति का ही कर्म निभाना है। प्रेम देकर भी तुम्हें संतुष्टï कर अपना ही कर्म, प्रेम का प्रसार करवाना है। दोनों ही प्रकृति के विधान की शक्तियां हैं। मानव की क्षमताओं का पूर्ण उपयोग करने के लिए। मानव अगर क्रूरता से कुंठाग्रस्त हो गया, भयत्रस्त हो गया तो आगे प्रगति रुक जाएगी। ऐसे ही अगर प्रेम में ही रम गया लिप्त हो गया तो निष्क्रिय व चालू चतुर होकर काम से ही गया और प्रगति भी अवरुद्ध हो जाएगी।

प्रकृति द्वारा क्रूरता मिलती है लेखक, कवि, युगदृष्टा व दार्शनिक बनने की क्षमता वाले मानवों को दुनिया को रास्ता बताने व मार्गदर्शन के लिए जगद्गुरु बनने को। प्रेम मिलता है संत, सूफी, सेवामूर्ति व मानवहित में कर्म करने के लिए। क्रूरता से शिक्षा ले शक्ति पाकर महात्मा सहनशीलता का पाठ पढ़ाने वाले प्रकाश का प्रसार करते हैं और प्रेम से सीख सुहृदयजन सौहार्द के प्रकाश का प्रसार करते हैं।

जो प्रकृति की इस रीत क्रूरता व प्रेम में भेद न मानें इसका तत्वज्ञान जानकर इसका गूढ़ रहस्य समझ जाते हैं वो स्थितप्रज्ञ व समबुद्धि होकर सत्य, प्रेम व कर्म का मार्ग दिखाने वाले अवतार हो जाते हैं। ऐसे मानवों के सत्संग से ही कल्याण होता है।

  • प्रणाम मीना ऊँ

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