सफर तो चला ही आ रहा है मेरा
सदियों से
चलेगा सदियों तक
जब तक चाँद और सूरज
ये धरती ये आसमां
ये सारे के सारे सातों जहाँ
मेरा रथ घुमाएँ ब्रह्मïाण्ड ब्रह्मïाण्ड
और देखूँ मैं
प्रकृति माँ का खेला
बन प्रकृति का अंश
यही तो है मेरा वंश
चले करोड़ों-करोड़ों प्रकाशवर्ष
मीना मनु मानस पुत्री प्रकृति की
चलाए उसी प्रकृति का वंश
सहकर समय दंश
बीतते रहें वर्ष के वर्ष
बस यही धुन होए उत्कर्ष
उत्कर्ष ही उत्कर्ष सदा सहर्ष
यही सत्य है !!
यहीं सत्य है !!
- प्रणाम मीना ऊँ