तत्व ज्ञान

जीवन के ज्ञान से अनभिज्ञ होना भी अज्ञान है।
अपने आपको ज्ञानी समझने वाला जानने वाला
सबसे बड़ा अज्ञानी हो जाता है।
ज्ञान को विज्ञान से जानने वाला ही वेद होता है।
उसे जीने वाला संवेद होता है।
संवेद से पूर्ण संवेदनाओं का मर्मज्ञ होता है।
प्रकृति की संवेदनशीलता से जुड़कर
प्रकृति रूप हो जीवन्त होता है।
यही है तत्व ज्ञान।
यही है जीवन का सरलतम और गहनतम रहस्य।
सत्य सरलतम है यदि स्वयं सत्य होने का
पुरुषार्थ करने का दृढ़निश्चय कर लिया जाए।
इससे स्वत: ही सारे रहस्य उजागर हो जाते हैं।
जैसे श्रीकृष्ण ने गीता में कहा – मेरे पास आओ।
मैं पूर्ण हूँ

  • प्रणाम मीना ऊँ

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