ज्ञान से तीसरा नेत्र खोलो : तीसरा नेत्र दिव्य चक्षु

हे मानव ! ज्ञान का विस्तार अर्थहीन हो जाता है अपना महत्व समेट लेता है जब मानव तत्व के बिन्दु तक पहुंच जाता है इस बिन्दु तक पहुँचने के लिए ज्ञान बहुत सहायक होता है।

योगियों द्वारा सिखाया जाने वाला योग जीवन पर्यन्त, मृत्यु तक विस्तारित रहता है मोक्ष प्राप्ति हेतु! पर सबसे बड़ा सच है जीते जी इसी मानव शरीर में ही पूर्ण मुक्तावस्था या मोक्ष प्राप्त कर लेना ! मानव को फिर-फिर बार-बार जन्म न लेना पड़े। मोक्ष मिल जाए मुक्ति मिल जाए और जब-जब शरीर नष्ट हो या मृत्यु आए स्वास्थ्य ठीक रहे आजकल यही योग बता रहा है। जब तक शरीर रहे योग क्रियाएँ चलती रहें उसके बाद योग कुछ नहीं कहता। योग का काम आपको वो मोक्ष दिलाना है जिसके बाद क्या होता है उसका कुछ अता-पता ही नहीं।

मोक्ष पाने के बाद का अनुभव क्या होगा उसे न आप बता सकते हैं न तथाकथित योग ही बता सकता है। हाँ सिद्धियों का बात योग अवश्य ही करता है। सबसे बड़ी सिद्धि परम से योग जो वास्तविक मोक्ष का परिणाम है और जीते जी ही प्राप्त है वह तो केवल श्रीकृष्ण द्वारा प्रतिपादित गीता को पूर्णतया जीकर ही जाना जा सकता है। प्रणाम का अनुभव यही है।

पहले यह तो ज्ञान स्पष्ट हो कि क्या है मोक्ष। मोक्ष लेकर क्या करना है या क्या होना है। इसका बड़ा सधा सधाया, रटा रटाया उत्तर है कि जन्म मरण के बार-बार चक्र से छुटकारा मिल जाएगा पर छूट कर क्या होगा जो छूट गए वो कहाँ हैं इन सबका कोई भी प्रमाणिक उत्तर नहीं न ही कोई सटीक मार्ग बता सकता है। सब अपने धर्मों के हिसाब से कल्पनाएँ व प्रतीकात्मकताएँ ही हैं।

इसी जीवन में इसी शरीर में सारे संसारी उद्वेगों से मुक्त होना चेतना का पूरा चक्र घुमा अपने को जानना अपनी सत्य वास्तविकता जानना ही मोक्ष है। पूर्ण निर्लिप्तता पूर्ण मुक्ति पूर्ण आनन्द पूर्ण खालीपन, void, शून्यता चेतना का पूर्ण चक्र तब तुम रोज-रोज नहीं मरते।

जब तुम विषादग्रस्त होते हो तो प्राकृतिक नहीं होते प्रसन्न नहीं होते तो तुम मरते हो। जब तुम खुश होते हो तो पैदा होते हो जन्मते हो। पर जब तुम न दुखी हो न प्रसन्न इन दोनों से ऊपर उठ जाते हो तो सच्चे चित्त के आनन्द में रहते हो सच्चिदानन्द होते हो- यही सच्चा आनन्द, bliss, है न खुशी न गम, न पाप न पुण्य, न शैतान न भगवान, दोनों का पूर्ण सन्तुलन व समन्वय केवल
पूर्ण पूर्णता…. ऊँ।

इसलिए प्रत्येक क्षण को पूर्णता से जीकर आनन्ददायी बनाना है। अपनी सारी क्षमताओं का भरपूर उपयोग पूर्णता से करना है बेहतर होना है अपनी संवेदनाओं व योग्यताओं का विकास करना है।

सांसारिक भोगानन्द में लिप्त हो अपनी ऊर्जाओं का हनन नहीं करना है वो मजा तो क्षणिक है। निरन्तर आनन्द के लिए पूर्णता की आकाँक्षा करो, अवश्य प्राप्ति होगी। तुम्हारा संसार तुम्हारे विचारों की ही उत्पत्ति है। यही सत्य है !!

  • प्रणाम मीना ऊँ

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