हे मानव !
यह सत्य अब समझा ही जा सकता है कि प्रकृति वह नहीं देती जो तू चाहता है और मांगता है पर वह अवश्य ही देती है जो तुझे चाहिए और तेरे उत्थान के लिए आवश्यक है। ले ध्यान से सुन वृत्तांत तितली का और गुन गहन ज्ञान की बात। एक बंदे को तितली का एक खोल दिखा जो पूर्ण परिपक्व था। थोड़ी देर में उसमें एक छोटा-सा छिद्र हुआ तितली बाहर निकलने की घड़ी आ पहुँची थी। प्रकृति का अद्भुत करिश्मा अनुभव करने व तितली का बाहर आकर उड़ान भरना देखने के लिए वह वहाँ उत्सुकतापूर्वक बैठ गया।
घंटों तक बार-बार तितली उस छोटे-से छिद्र से बाहर निकलने का प्रयत्न करती रहती फिर अंदर सिकुड़ जाती। उसका लंबा कठिन संघर्ष उससे देखा न गया, दया उपजी और खोल को काट दिया। तब तितली आराम से फुदककर बाहर तो आ गई पर उसका बदन पानी भरा सूजा हुआ, पंख छोटे-छोटे सूखे सिकुड़े-सिमटे हुए।
बंदा देखता रहा कि अब उड़े तब उड़े पर ऐसा कुछ भी न हुआ वह तितली जीवनपर्यंत लड़खड़ाती व लुढ़कती रही। तब बंदे की समझ में प्रकृति का नियम और विज्ञान आया कि अपनी उदारता दिखाने में कर्ता बनकर जो जल्दी उसने दिखाई उसके कारण तितली का जीवन दुर्भाग्यपूर्ण श्राप बनकर ही रह गया। वह छोटे से छिद्र से निकलने का प्राकृतिक संघर्ष अत्यावश्यक था क्योंकि उससे उसके शरीर का अतिरिक्त द्रव्य पदार्थ निचुड़कर पंखों को वह नमी और फैलाव दे पाता जो पंखों को खोलकर उड़ने व शरीर का बोझ उठाने में सहायक होता। दया के नाम पर प्रकृति के कार्यों में व्यवधान डालने का कितना कुरूप व कष्टदायी परिणाम होता है। यही है प्रकृति प्रदत्त संघर्षों का सत्य। इन्हीं संघर्षों से मानव अपने ही पुरुषार्थ से जूझकर, उबरने और आगे उठने की क्षमता से परिपूर्ण है। इस नैसर्गिक प्रतिभा व योग्यता को फलने-फूलने का अवसर न देना भी अकर्मण्यता को बढ़ावा देना है।
हे मानव ! तू प्रभु से शक्ति मांगता है वह तुझे कठिनाइयाँ देता है सशक्त व साहसी बनाने को। तू विवेक व सद्बुद्धि मांगता है वह समस्याएँ व उलझनें देता है सुलझाने को। तू समृद्धि मांगता है उसने दी है बुद्धि व कर्मठता कर्म करने को। तू प्रभु से प्यार मांगता है वह तुझे अपने सब बंदे देता है प्यार बाँटने को। तू उससे वरदान मांगता है वह तुझे अवसर देता है उन्हें साकार करने को।
हमारी पौराणिक कथाओं में प्रभु जब दर्शन देते हैं तो पूछते हैं वर मांग। ओ मूर्ख मानव! क्या प्रभु को ये भी नहीं पता, तुझे क्या चाहिए? वह सर्वज्ञानी तुझी से पूछते हैं कि तेरी बुद्धि क्या मांगने योग्य है। तेरी मांग में ही तेरी सुपात्रता छुपी रहती है। इसी में तेरे भाग्य के विधान का रहस्य छुपा रहता है तो मंगता (भिखारी) न बन, कर्मयोद्धा बन, कोई भी संघर्ष तेरी क्षमता से परे नहीं। यही सत्य है मानव तेरी सत्ता का।
- प्रणाम मीना ऊँ