उड़ चल मीन मना

उड़ चल मीन मना
उड़ जाएगा हंस अकेला
हे मन मनमोहन
अब कहीं और ले चल
हो गये भारी-भारी से
कुछ कठिन-कठिन से पल
कितना पुकारा ओ मानव अब तो
संभल… संभल
पर बस मैं ही मैं का राग
मेरा ये ठीक हो जाए
मेरा वो ठीक हो जाए
कुछ भी ऐसा हो जाए
जिससे मुझे बस मुझे ही मुझे
कैसे भी चैन व आराम मिल जाए
सारा जीवन सुखी हो जाए
यही हाहाकार सब ओर
गहरा अज्ञान अंधकार छाया है
ओ कृष्ण ओ प्रभु मेरे ओ मेरे मन
तुमने मुझसे क्या करवाने का
ठहराया है
तुमने मुझसे क्या करवाने का ठहराया है
इतना भ्रमजाल मोहमाया
अहम् भार
अब तू ही सँवार संभाल
या दे दे कुछ कर्मठ सिपाही
औ’ ऐसे सलाहकार
जिससे कम हो कुछ तो
तेरा संकल्प भार
क्यों लेते हो
इतनी कड़ी परीक्षाएँ बारम्बार
वचन तो तुम्हारा था
संभवामि युगे युगे
मैंने क्यों अपना जान मान लिया
तुम्हारा ज्ञान था
या मेरा प्राण था
या संकल्प का आदान-प्रदान था
यही सोच रही
हजारों बार
कब करोगे मुक्त

सारी परीक्षाओं व अपेक्षाओं से
देख रही तोड़-मरोड़
सारी ज्ञानमयी
उक्तियों की
बात बता रहे लोग मुक्तियों की
बिना जाने शब्दों का सत्य
साधना का महत्व
बस भटकन ही भटकन
बुद्धि की अटकन ही अटकन
कोई कैसे समझे ऐसा स्वरूप
मेरा सत्यमय अस्तित्व
जिसके साथ
कालचक्र का साथ
युगचेतना का हाथ
जो जाने
सृष्टिï उत्थान का क्रम औ’ कर्म
यही तो मेरे मन का
मेरे कृष्ण का मर्म
कृष्ण थी कृष्ण हूँ कृष्ण रहूँगी
यही मेरा सार
जगत व्यवहार
यही सत्य है
यहीं सत्य है

  • प्रणाम मीना ऊँ

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