मीना अवतारों की शृंखला से जुड़ी
उसी माला में पिरोई
ईश्वर मत्स्यावतार से
कल्कि तक का सफर
मेरा सफर
यह शरीर धारण करती है
अवतार चेतना
जहाँ तक उसे पहुँचाना होता है
पहुँचाकर
दूसरा शरीर धर लेगी
दूसरा शरीर धर लेगी
बदल लेगी अवतार चेतना
स्वत: ही पुराने कपड़ों की तरह
ये नश्वर शरीर
पर सदा ही मार्गदर्शन देती
सारी सृष्टि का खेल सारा का सारा
सम्पूर्णता से दिखाती बताती
सम्पूर्णता से दिखाती बताती
नित निरंतर क्षण-क्षण
संदेश औ’ निर्देश देती
अंतर्वाणी सुनाती
विधान जुटाती
पुराने में नया जोड़ सत्यता का भान कराती
हजारों विधाओं से लुभाती-रिझाती
समय का संकेत बताती कि अबकी
न जाना चूक ओ मानव
क्योंकि युगों-युगों से बताया है
तुम्हें बता ही तो दिया है
क्या होती है अवतार चेतना की बात
उसका रूप औ’ स्वरूप
तो भई न जाना भूल
समझ लो यह ज्ञान अनूप
आज ही अभी बस अभी
कल गया वक्त होऊँगी की
समझ से परे होऊँ गी
ईश्वर
यही सत्य है
यहीं सत्य है
- प्रणाम मीना ऊँ