मूलरूप ज्ञान : वास्तविक ज्ञान
जो ज्ञान ध्यान में प्राप्त होता है उसी का प्रसार ही मानव को उत्थान व ख्याति के उच्चतम स्तरों तक पहुंचाता है। मानव जीवन को श्रेष्ठता प्रदान करता है। संसार से सीखा जाना अभ्यास किया गया ज्ञान व्यवसायिक दृष्टिकोण से अच्छा सिद्ध हो सकता है। परंतु मानव के आध्यात्मिक उत्थान के लिए या मानव को उत्कृष्टता प्रदान कर उत्थान की चरम सीमा तक ले जाने में उसकी उपयोगिता कम ही होती है।
रामायण रटने से या एकदम राम जैसा व्यवहार करने से कोई श्रीराम नहीं बन सकता ना ही गीता गुनने से कोई श्रीकृष्ण ही बन पाएगा। जो बनेगा केवल अपने बलबूते पर अपने ही सत्य की साधना से बनेगा। बड़ी-बड़ी बाते प्रवचन शास्त्रार्थ धरा का धरा ही रह जाएगा। हां भूतकाल के संदर्भ से ज्ञान प्राप्तकर उस पर चिंतन मनन कर भविष्य का मार्ग चुनने में सहायता अवश्य प्राप्त होती है।
ध्यान को आधार मिल जाता है। ध्यान में प्राप्त स्वत: झरित ज्ञान ही मानव को वैज्ञानिक युगदृष्टा युग प्रवर्तक विशिष्ट मानव महात्मा आदि बना देता है। सीखा दोहराया गया या कोई पंथ या मार्ग कदापि नहीं। अनुभूत मौलिक ज्ञान ही वास्तविक उत्थान का कारण बनता है संभवामि युगे-युगे चरितार्थ करता है।