अपने ही शब्दों में मीना हैं 'मानसपुत्री प्रकृति की' प्रणाम की प्रेरणा
व शक्ति-स्रोत। प्रणाम एक अभियान है जो प्रकृति के नियम सत्य
प्रेम व प्रकाश की स्थापना के लिए कृतसंकल्प है निरंतर विकासशील
परम चेतना की आत्मानुभूति के द्वारा।
मीना गहनतम अंतश्चेतना वाली मन बुद्धि की स्वामिनी हैं जो कि
परा गुह्मज्ञान को ग्रहण करने में सक्षम हैं क्योंकि वो तीनों विधाओं
विचार शब्द व कर्म पर एक रूप हैं । उनकी अभिव्यक्ति प्रयत्नरहित, स्वाभाविक व कवितामयी है । रहस्यवाद की पर्ते खोलती वेद के सत्य
और विज्ञान के तथ्य का योग दार्शनिकता का पुट देकर करती हुई।
दूरियों, रिक्तताओं व अन्तरालों को भरती और जहां कहीं भी अंधकार
है उसे मिटाती हुई। विलक्षण दूरदर्शिता से सम्पन्न। सत्य की स्थापना
के लिए अदम्य साहस से परिपूर्ण आत्मज्ञान से निर्देशित वो उदाहरण
स्वरूप हैं कि जब हमारा ब्रह्माण्डीय युग चेतना से एकत्व हो जाता
है तो हम क्या हो सकते हैं। मानव जीवन को पूर्णता प्रदान करने की
यात्रा को एक आनन्दमय उत्सव बना सकते हैं।
कोई कम कटौती, कोई सिद्धांत नहीं हैं
पंडितों द्वारा निर्धारित कोई पाठ्यक्रम सहायक नहीं है
केवल आप केवल सत्यवादी बनकर स्वयं की मदद कर सकते हैं
‘मनसा - वचन - कर्मण’
‘मान से, वचन से, se कर्म’ की प्राकृत का हिसा बन जा मन - ’सत्यवादी बनो
और तीन विमानों पर समान - मन, वाणी और कर्म।
प्रकृति ओ मानव का हिस्सा बनें! ’
स्वाभाविक रहो!
Will तेरा कल्याण होगा '- आपको वितरित किया जाएगा
Ala प्राकट्य जायसा दीन वाला हो जा ’- प्रकृति की तरह एक दाता बनें
’स्वर्थ-हीना दायक’
स्वफ़िल निबंध दे रहा है
सेल्फ एसेसर दाता
’देना देना देना बन देना '- बस देना, देना, देना, केवल देना
भगवान है प्रकृति
प्रकृति है भगवान
सत्य है