दिमाग को एक तरफ रक्खे

जब हमारा मन भ्रमण करता है तो हम मनुष्यों को मनोरंजन लगता है, दिवास्वनमनोरंजक हो सकता है… और कई बार हमें एहसास भी नहीं होता कि यह हो रहा है।और हम इसे बढ़ाते जाते हैं… “उसने यह कहा', “मैं बदले में यह करूंगा' और विचारघूमते रहते हैं, कभी छोड़कर नहीं जाते। स्वामी विवेकानंद ने कहा कि मन एक बेचैनबंदर की तरह है जिसने शराब की सैकड़ों बोतलों का सेवन किया है और उसके ऊपरकई बिच्छुओं ने डंक मारा है… बस कल्पना करें कि वह कैसा व्यवहार करेगा। यही एक बेचैन दिमाग की स्थिति है। गीता में अर्जुन कहते हैं कि मन की गति को मापना बहुत कठिन है। कोई भी मन काप्रबंधन कैसे कर सकता है? जिसका श्रीकृष्ण जवाब देते हैं, निश्चय ही यह कठिन है। मुझे पता है… लेकिन इसे अभ्यास से दूर किया जा सकता है। अपने मन को “हरि नाम' का पथ्य दे दें।” जिस क्षण यह…

आंतरिक शुद्धिकरण

सभी में एक नकारात्मक धारा होती है जो उनसे मूर्खताएं करवाती है। इस अंधकारमय तत्व के प्रति सचेत रहें । चेतन प्रयास करें, इसे बाहर फेंकने के लिए साधना करें। अंधेरे तत्व से प्रभावित होकर आचरण ना करने के बारे में सोचना अपने अंतर से इसेजड़ समेत उखाड़ना नहीं है। बस अपने आप को ध्यान से देखें कि कभी-कभी आपकीभावनाओं और विचारों में बहुत उदारता होती है और किसी समय निरीक्षण करें कि दूसरों की कमजोरियों को गलत शब्दों और अनाचारों को आप इंगित करते हैं। ये दोनों पूर्णतया विरोधाभासी व्यवहार और लक्षण हैं। जब आध्यात्मिक निर्बलता के समय, भीतर नकारात्मकता होती है तो बस यह स्वीकार करने की हिम्मत होनी चाहिए कि यह मेरा सत्य नहीं है। लगातार ऐसा करने से यह लक्षण निकल जाएगा। हमेशा परमात्मा के लिए आंतरिकआकांक्षा और ईश्वरीय कार्य के प्रति सचेत रहें। जब कोई अपने लक्षणों और ओड़े हुए व्यक्तित्व, जो कि अहम्‌ की…