बहे प्रेम की गंगाधार यही प्रणाम का आधार
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय, ढाई अक्षर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय क्या खूब कहा है कबीरदास जी ने। दुनिया में जिसने सच्चे प्रेम की झलक पा ली, समझो खुदा को पा लिया। क्योंकि सत्य अपनी चरम सीमा को पहुँचकर बस प्रेम ही प्रेम में बदल जाता है। एक ऐसी स्थिति हो जाती है कि सत्य और प्रेम एक ही हो जाते हैं। प्रकृति माँ इसका सर्वोत्तम उदाहरण है। गंगोत्री से बस एक पतली दूधिया धार बही और भागीरथ के अनथक प्रयत्न और प्रयास का उदाहरण बनी। अपने पुरखों के तरण तारण को, उनके अंतिम संस्कार को प्रेमपूर्वक करने का दृढ़संकल्प भागीरथ को इतनी अदम्य शक्ति प्रदान कर गया कि भागीरथ प्रयत्न मुहावरा ही बन गया और वह धारा भी भागीरथी कहलाई। फिर उसमें अलकनंदा की धारा मिल गई तो देव-प्रयाग बन गया। आत्मा से आत्मा का प्रेमपूर्वक संगम प्रयाग जैसा तीर्थ बना देता है।…