प्रणाम स्तुति ज्ञान से श्रीगणेश पूजा होवे गुण दूजा
श्री वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ:। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ श्री गणेश घुमावदार सूँड़, बड़ी काया व करोड़ों सूर्यों की प्रभा ज्योत्स्ना वाले, मेरा प्रत्येक कार्य सदा निर्विघ्न करो। भारतीय परम्परा है कि कोई भी कार्य व्यापार से पूजा तक गणेश वंदना से ही प्रारम्भ होता है। यह एक रीति की तरह निभाया जाता है। इसका अर्थ बहुत ही गहरा व अर्थपूर्ण है। जिसको समझना व समझाना विशेषकर नौजवान पीढ़ी को अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि इससे उन्हें हमारी संस्कृति और उसके वेदपूर्ण विज्ञान की सही पहचान होगी। देवी-देवताओं के स्वरूप व पूजा विधि में छुपी फिलॉसफी दर्शन व संदेश समझकर पूजा करने से ही पूजा पूर्णता को प्राप्त होती है। गणेश जी की घुमावदार सूँड़ कुंडलिनी शक्ति जगाने का प्रतीक है। लम्बे बड़े-बड़े कान दूरी तक दूसरों की बात आत्मसात् कर ध्यान देने का संकेत हैं। बड़ा पेट अपने मन की बात पूरी होने तक अंदर रखने की प्रेरणा…