हर शाख पर उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्तां क्या होगा

होगा वही जो प्रकृति को मंज़ूर होगा और प्रकृति को सिर्फ सत्य, कर्म और प्रेम ही मंज़ूर होता है। सत्य सुकर्म करने का ब्रह्मास्त्र है। सत्यवादी ही निडर होकर सत्कर्म को तत्पर होता है- इतना बढ़े सत्य का तेज। हो सब विकृतियाँ निस्तेज॥ सत्य की तपस्या से अपने अंतर के भगवान को जगाना ही होगा। तुम सब भगवान हो पर जब तक भगवद् गुण प्राप्त कर दिव्यता धारण नहीं करते भगवान के अंशमात्र ही हो। भगवान, ईश्वर, अल्लाह, प्रभु के बच्चे ही हो। जैसे आदमी का बच्चा जब तक बड़ा होकर आदमी के गुण नहीं पा लेता बच्चा ही कहलाता है। प्रकृति ने सबको दिव्यता जगाने की क्षमता दी है यही प्रभु कृपा है। सब कुछ त्याग कर ही मोक्ष मिलेगा यह धारणा सही नहीं है। मोक्ष का अर्थ है, मुक्ति व आज़ादी हर उस चीज से जो दुख का कारण है और आंतरिक आध्यात्मिक उन्नति में बाधक है। अपने…

गणतंत्र का मंत्र

हर वर्ष गणतंत्र दिवस बड़ी भव्यता से अपार धन व्यय कर मनाया जाता है जबकि सादगी राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी का संदेश है। भारत के सच्चे सपूतों के बलिदान और युगदृष्टाओं की चेतावनी का ध्यान रखकर यदि सही राह न अपनाई तो कैसे बात बनेगी। गणतंत्र का सच्चा अर्थ समझकर उसका उपयोग भारतीयों की सोई देशभक्ति को जगाने में करने में ही इस दिवस की सार्थकता निहित है। जिस प्रकार सृष्टि की सुव्यवस्था तंत्र-यंत्र-मंत्र में निबद्ध है। उसी प्रकार भारतीय जनगण देश के कोने-कोने तक फैला तंत्र की भांति है जैसे शरीर के अंदर सारे अवयव व नाड़ी तंत्र का पूरा जाल। इसे भारत सरकार रूपी यंत्र समेटे हुए संपुटित किए हुए है और मंत्र है भारत का संविधान जो व्यवस्थित संचालन के लिए शक्ति बीज है। जब शरीर में कहीं भी विकार या विषाक्त कीटाणु पनपते हैं तो उसका तत्काल उपचार अत्यावश्यक होता है अन्यथा पूरा शरीर रोगग्रस्त हो जाएगा।…

निष्क्रिय अर्जुन दिशाहीन देखे माँ भारती वस्त्रविहीन

यह कैसी विडंबना है कि अर्जुन को तो, बिना किसी मंदिर के, खुले मैदान में ही, श्रीकृष्ण की वाणी जो सिर्फ एक बार ही बोली गई, ऐसी एक ही गीता ने जगा दिया। और आज जबकि लाखों गीताएं पढ़ी-सुनी जा रही हैं हजारों कृष्ण मंदिर हैं फिर भी कर्म के लिए तत्पर जागरण की लहर उछाल क्यों नहीं लेती। शायद अर्जुन भ्रमित है, क्योंकि उदाहरण स्वरूप कहाँ हैं? जो सत्य उदाहरण स्वरूप हैं भी, उनका दर्शन व प्रवेश भयभीत कर देता है असत्य का दुर्ग अपने चारों ओर बनाए हुए बैठे कर्महीनों को। आज के अर्जुन को अपने प्रश्नों के उत्तर आज के संदर्भ में चाहिए। उसे पढ़ी-पढ़ाई बात नहीं चाहिए। बातों का, ज्ञान का व अहंकार का विस्तार नहीं चाहिए। उदाहरण चाहिए गीता पढ़ाने वालों को भी उदाहरणस्वरूप बनना ही होगा। जागो भारतीयों जागो, पद और राजशक्ति के मद में चूर आपसी फूट में पड़कर, सत्य को दबाकर, तुम…

कन्हाई की तन्हाई प्रणाम हृदय समाई

कन्हाई का तो बस अब एक ही प्रश्न है क्या हर युग में बार-बार विराट रूप दिखाना ही पड़ेगा तभी पहचानेगा अर्जुन श्रीकृष्ण के स्वरूप को। क्या कोई अर्जुन, इतना जो ज्ञान फैला हुआ है चारों ओर, उससे ज्ञान चक्षु खोलकर दिव्य दृष्टि पाकर, स्वत: अपने आप ही उस स्वरूप को पहचान नहीं पाएगा जो राह सुझाता है, सत्य मार्ग बताता है। कौन समझता है कन्हैया का दर्द, माधव मोहन का मर्म। जिस बाल सखा अर्जुन को गीता ज्ञान देकर विक्षोभ से मुक्ति दिलाकर विजय का मार्ग प्रशस्त किया। अधर्म पर धर्म की जीत स्थापना में पूर्ण सहयोग दिया। रथ हाँका सारथी बनकर उसने भी कहाँ मुड़कर देखा कि कैसी कैसी स्थितियों से गुजरे मधुसूदन गांधारी का विषाक्त श्राप धारण कर। यही तो विडंबना है प्रभु की सदा स्वयं ही शापित होते रहते हैं कभी भी श्राप देते नहीं। ऋषियों-मुनियों व पहुँचे हुए मानवों से हुई गलतियों के सुधार हेतु…

सत्य के प्रत्यक्ष प्रमाण सा प्रतीक प्रणाम का

प्रतीकों की अपनी एक अनोखी है दुनिया जो कि कुछ विशेष चिह्नों, बिन्दुओं, रेखाओं व रंगों में पूरा ग्रंथ समाए हुए होती है। प्रतीक एक सोच या विशेष विचारधारा की उत्पत्ति होते हैं। जो दिमाग से सोचकर या विशेष कला की विद्या ध्यान में रखकर नहीं बनाए जा सकते। यह अपने अंतर के सत्यभाव से प्रस्फुटित होते हैं। यह अपने आपमें पूरा संदेश लिए होते हैं जिसे वे ही समझ पाते हैं जो उस प्रतीक वाली विचारधारा के प्रवाह से जुड़े होते हैं। इनका प्रभाव सम्पूर्ण होता है जैसे गदा देख हनुमान या भीम का विचार आता है। सुदर्शन चक्र विष्णु की पूर्ण शक्ति का प्रतीक है और श्रीकृष्ण के अमोघ आयुध का ध्यान कराता है। बाण से राम का और त्रिशूल से दुर्गा का, डमरू से शिव का स्मरण हो आता है। चूहे से श्रीगणेश का इस प्रकार अनेकों प्रतीक हैं। इसके साथ-साथ देवी-देवताओं के विशेष स्वरूप, अन्य प्रतीकों…

हवन यज्ञ का विज्ञान प्रणाम बताए विधान-2

पिछले अध्याय में हवन की तैयारी बताई। उसके बाद हथेली के अमृतकुंड में जल भर कर दो उंगलियों से उसे छूकर शरीर की सब कर्मेन्द्रियों व ज्ञानेन्द्रियों को जल लगाकर प्रार्थना की जाती है कि वह सदा शुभ व मंगलमय देखें, सुनें व स्वस्थ, बलिष्ठ, पुष्ट हों। तत्पश्चात अग्निकुंड में कपूर से व घी में डुबोई लकड़ियों से अग्नि प्रज्वलित की जाती है। यह मानव शरीर भी इस लकड़ी के समान घी-पौष्टिकता का प्रतीक-ग्रहण कर पुष्ट होकर दूसरों के काम आए। दूसरों की ज्योति जलाने में अपना जीवन होम कर सकूँ, जला सकूँ यही प्रतीकात्मक भाव है। इसके बाद थोड़ी-थोड़ी देर बाद मंत्रोच्चार के साथ घी व सामग्री डालते रहते हैं। जितनी बार स्वाहा बोलो उतनी बार अपने शरीर व मन के विकारों को भी बीन बीन कर अग्नि देव को भस्म करने के लिए अर्पण करना है। यह एक मनोवैज्ञानिक पद्धति है अपनी कुंठाओं से मुक्ति पाने की। अग्निदेव…

हवन यज्ञ का विज्ञान प्रणाम बताए विधान-1

हवन अपने अंतर्मन के सभी विकारों को भस्म करने की वैदिक प्रक्रिया है। इस पद्धति में सभी उपचार पद्धतियाँ बहुत ही सुंदर रूप में समाई हुई हैं। मनोचिकित्सा, एक्यूप्रेशर, स्पर्श चिकित्सा, ध्यान, ज्ञान, प्रार्थना, भक्ति, विवेक, संयम, व्यवस्था इत्यादि का अद्भुत संयोजन है। विचारों और प्रक्रियाओं का बहुत ही सौंदर्यमय तालमेल है। सत्य, प्रणाम की प्रमुखता है और हवन उसी का संदेशवाहक व प्रमाण है। सत्य की सच्ची साधना है जो सोचो वही बोलो वही करो। मनसा-वाचा-कर्मणा सत्यमय होना। इसकी साधना का बहुत ही रुचिकर रूप है हवन। सत्य को समझने, सत्यरूप सच्चिदानंद से एकाकार होने की वैदिक पद्धति है हवन। हवन मन, शरीर व आत्मा के पूर्ण स्वास्थ्य की सीढ़ी है। मन व शरीर के सब विकार भस्म कर वातावरण शुद्ध कर आत्मशक्ति जागृत करने का उपाय है। हवन में जो भी सामग्री प्रयोग होती है, वह सब प्राकृतिक सम्पदा वाली होती है, उनसे आयुर्वेदिक लाभ भी मिलता है।…

हे माँ लक्ष्मी कर प्रकाश समृद्धि प्रेम वृद्धि का

हे माँ लक्ष्मी कर प्रकाश समृद्धि प्रेम वृद्धि का जहाँ दीपावली पर्व श्रीगणेश की विघ्नहारी सूरत और महालक्ष्मी की भव्य मूरत मन में साकार करता है वहीं मन-मस्तिष्क में पचास वर्ष पुरानी दीवाली की कसक भी मन में जगाता है। श्री लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों दीयों व खील-बताशों के अलावा कुछ भी बाजार से नहीं आता था। बरसात से बेरंग हुए घरों की लिपाई-पुताई महीनाभर पहले शुरू हो जाती थी। सफाई-सजावट सब घर के सदस्य मिलजुलकर करते। वो रोली, आलते व गेरू से दरो-दीवार पर कमल, शंख, सतिया व लक्ष्मीजी के चरण कमल आदि शुभ-चिह्नï बनाना। आँगन में तुलसी का चौबारा सजाना। छोटे-बड़े मिट्टी के कलशों को रंगों वजरी गोटे से सजाना। रंगीन कागज व पन्नियाँ काट-काटकर आटे की लेई से चिपकाकर झाड़-फानूस तोरण झंडियों की लहरियाँ बनाना। नए-नए पकवान बनाना सीखना पड़ोस की चाची, ताई व अम्मा से। नए-नए कपड़े बनाना- सब कुछ एक पवित्र पर्व के सौंदर्यमय भावपूर्ण आयोजन…

लयात्मक संतुलन प्रकृति का पूजन शिव का

ब्रह्मा-विष्णु-महेश की त्रिमूर्ति ब्रह्माण्डीय कालचक्र के कृतित्व, उसकी पूर्णता और संहार का सार तत्व है। मानव शरीर यंत्र का ज्ञान, मंत्र की ऊर्जाओं का भान और शरीर के अंदर फैली नाड़ियों के जाल का उनके उद्गम संगम और विलय के तंत्र का ज्ञान, सब कुछ ध्यान-योग की अद्ïभुत क्षमता से जानकर विश्व को देना ही श्री शिव की महानतम देन है। उनका सर्वस्व स्वरूप यही स्थापित करता है कि मानव शरीर ब्रह्माण्ड की संरचना प्रक्रिया का ही प्रतिरूप है। प्रकृति से योग के कारण वह प्रकृति के प्रत्येक उद्वेग को आत्मसात् कर लेते हैं। जब शिव तांडव करते हैं तो सृष्टि का संहार होता है पुनर्निमाण के लिए। जब अपूर्णता प्रकृति के नियमों को नकारकर चरम सीमा पर पहुँच जाती है, तो प्रकृति ऊर्जाओं को पुनर्व्यवस्थित करने लगती है, इस उथल-पुथल से प्रकृति की ऊर्जा से सदा ही संचालित शिव का शरीर स्वत: ही तांडव की प्रक्रिया में आकर दुनिया…

प्रणाम माँ सरस्वती कर प्रकाश, दे सन्मति

सरस्वती नमस्तुभ्यम् वरदे कामरूपिणीम् विश्वरूपी विशालाक्षी विद्या ज्ञान प्रदायने। हे माँ सरस्वती नमन वंदन, कामरूप सृष्टि उत्पत्ति की समग्रता में व्याप्त विश्वरूपिणी, सर्व विद्यमान, दूरदर्शिता से परिपूर्ण विशाल नेत्रों वाली विद्या और ज्ञान का वर दें। ब्रह्मा की सृष्टि को पूर्णता तक ले जाने का मार्ग सब प्रकार की विद्याओं और कलाओं से प्रशस्त करने वाली देवी शारदे सदा ही वंदनीय हैं। दिन के आठों पहर में एक बार प्रत्येक मानव की वाणी में सरस्वती अवश्य ही प्रकट होती है। पर संसार में लिप्त मानव बुद्धि उसे समझ ही नहीं पाती। कई बार अनुभव तो सबको होते हैं कि किसी ने कुछ कहा और वह सच हो जाता है पर इस क्षमता को पूर्णता देना ताकि वाणी में सदा ही कमलासना का वास रहे यह केवल कस्तूरीयुक्त माँ सरस्वती की सतत् साधना व आराधना से ही सम्भव है। इनका वाहन हंस है। हंस की विशेषता है कि अगर दूध और…