सत्य दिव्य शक्ति है
हे मानव ! सत्य की शरण में आ। त्याग अहम् दे सत्य का साथ। सत्य की विडम्बना यही है झूठ तो झूठ का साथ देने को झट से तैयार हो जाता है और सारे क्रियाकलाप व काले धंधे सिर्फ वचनों और इशारों से ही विश्वसनीयता से सम्पन्न कर लेता है पर सत्य अकेला रह जाता है। अपने सत्य और अहम् ब्रह्मास्मि के मंदिर में बंद या फिर विवादों के अखाड़ों में अपने सत्य को औरों के सत्य से ऊंचा और सही प्रमाणित करने के फेर में बड़े-बड़े दार्शनिक शब्दों के दाँव-पेंच लड़ाता रहता है। समय की पुकार पर कर्म करने से विमुख हो जाता है। ऊर्जा हनन, अपने सत्य को मनवाने में कर देता है। दूसरे की लाइन मिटाकर अपनी बड़ी करने का कोई भी औचित्य है ही नहीं। एकलव्य का अँगूठा काटने वाले भी न रहे। सत्य धर्म से राज धर्म व त्यागमयी कर्ताभाव वाली प्रतिज्ञा को अधिक महत्व…