प्रकृति की क्रूरता और प्रीत
हे मानव !ये ज्ञान जान, प्रेम और क्रूरता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। प्रकृति का नियम है जैसा देती है वैसा ही ले लेती है। पाँच तत्वों से पुतला रचा अंत में वैसा ही कर अपने में ही मिला लिया। प्रकृति जड़ चेतन सबको एक-सा ही प्रेम करती है अपने ही ध्येय के लिए। उसका ध्येय है सतत् प्रगति और जब इस ध्येय में व्यवधान देखती है तो अपने तांडव, भूचाल, ज्वालामुखी, बाढ़, आँधी-तूफान आदि पाँच तत्वों का ही सहारा ले विनाश कर देती है। सब कुछ लयबद्ध होकर इसी नियम से संचालित है। प्रकृति के प्रेम को लौटाना इतना जरूरी नहीं जितना आगे बांट देना ही गति है। चाँद उतनी ही रोशनी ले पाता है जितनी उसकी नियति है और रोज़ लेकर बांट देता है। नहीं मिला प्रकाश तो भी चिंता नहीं, अपने में मग्न धरती के चक्कर लगाता ही रहता है तभी तो टिका है। पर…