प्रणाम मानवता का सेवक : मानवता के गुण तत्व का पोषक
केवल दृष्टामात्र हूँ। युगचेतना से संयुक्त उसी का भाव बीज रोपण करने को तत्पर। भागीदार तभी होती हूँ जब कोई अर्जुन संशय, दुविधा या विषाद काटने या मार्ग सुझाने हेतु प्रश्न करता है। प्रत्येक सत्य, प्रेम व कर्मयोगी की सहयोगी हूँ। आज दृष्टा बन देख रही हूँ संगम होने वाला है प्रयागराज जैसा। युवा पीढ़ी सब जानती है, जान रही है और विकृतियों को दूर करने के लिए गंगा धार है। चिन्तन, समाधान व सही मार्गदर्शन को उद्यत सभी प्रबुद्धजन अदृश्य सरस्वती धारा के स्वरूप हैं और पतित-पावनी, मोक्षदायिनी यमुना की प्रतीक नारियों की अद्भुत सहभागिता इसी शुभ संगम का संकेत ही तो है। इन तीनों का, प्रबुद्ध देशप्रेमियों के सही चिन्तन व दिशा निर्देश का, कर्मठ युवा ऊर्जा का व तेजोमयी मातृशक्ति का समुचित समन्वय हो जाए तो नवयुग का सुप्रभात दूर कहाँ। आज आध्यात्म व राजनीति शब्द सुनते ही भवें टेढ़ी हो जाती हैं, नाक सिकुड़ने लगती है।…