आत्मज्ञान मुक्ति का मर्म

आत्मिक शक्ति ही शान्ति का आधार है, सतत् साधना ही मुक्ति का द्वार है। एक सत्यमय आत्मवान अपनी युगानुसार प्राप्त दूरदृष्टि Vision, हेतु ही जीवन जीता है और समयानुसार मृत्यु का भी वरण कर लेता है। पर उसकी उस सत्यमयी दूरदृष्टि के उद्यम व पुरुषार्थ का उसके शरीर केसाथ अन्त नहीं हो जाता। उसके शरीरान्त के उपरांत वह दूरदृष्टि हज़ारों आकारों में अवतरित होती है और उसके द्वारा धारण ध्येय को आगे बढ़ाने हेतु यह क्रम चलता रहता है जब तक उसको पूर्णता प्राप्त नहीं हो जाती। यही है सृष्टि का शाश्वत नियम कि उत्थान प्रक्रिया को सदा सत्य व पूर्णता की ओर उन्मुख करना और उसकी पूर्णता हेतु समयानुसार संयोग जुटाते रहना। सारे सांसारिक कर्मों का हिसाब-किताब तो शरीर केसाथ ही समाप्त हो जाता है। बचता है केवल, मानव ने जहाँ तक उन कर्मों के साथ अन्त तक प्रगति उन्नति या उत्थान किया, वही उत्थान वाला भाव बीज या…

अर्धनारीश्वर विपरीत ऊर्जाओं का सौन्दर्यमय समन्वय

इस अद्भुत सत्य को किस प्रकार विद्रूपता का आवरण डालकर गरमागरम बेचने योग्य पदार्थ बनाया जा सकता है, इसका प्रमाण मिला जब कुछ वर्ष पहले अर्धनारीश्वर रूप, Androgyne, पुस्तक विमोचन के बारे में व उस पुस्तक के कुछ उद्धृत अंशों को पढ़ा। जिससे पुस्तक का आशय समझा कुछ हद तक। ऐसा लगा कि भारत की सर्वोच्च वेद-संस्कृति की धज्जियाँ उड़ाने में पाश्चात्य सभ्यता की कुछ कुरीतियों में आकंठ डूबे अधकचरे बुद्धिजीवी सतही व ओछे प्रचार के लोभ में किस हद तक पतन के गर्त में डूब सकते हैं। समलैंगिक विकृत लैंगिकता व अप्राकृतिक विधियों से इंद्रिय तृप्ति सुख लूटने की प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिए प्रतीकात्मक शक्तिरूपों के आत्मानुभूत ज्ञान को घृणित कामवासना के स्तर पर ला पटकते हैं। क्या स्वार्थ सिद्ध करना चाहते हैं ये प्रचार के भूखे, अप्राकृतिक व अनैतिक नर-नारी सम्बन्धों को उत्कृष्ट मानव संरचना का ज्ञान देने वाली प्रतीकात्मकता के साथ जोड़कर। प्रत्येक दिव्य विभूतियों के…

आध्यात्मिक मानव और यांत्रिक समाज Spiritual Man and Digital Society

विज्ञान के उत्थान ने निसंदेह जीवन को अत्यंत सुविधाजनक बनाया है। सम्पर्कों, सूचनाओं और प्रसारों को नए-नए आयाम दिए हैं। बहुत से साधन जुटा दिए हैं पर साथ-साथ कुछ समस्याएं भी खड़ी कर दीं हैं। प्रत्येक वस्तु के विवेकशील उपयोग से सहायता मिलती है और अंधाधुंध विवेकहीन उपयोग से या अनुकरण से हानि की संभावनाएं बहुत बढ़ जाती हैं। इसके लिए यह समझना बहुत जरूरी है कि केवल भौतिकता या भोगवाद ही मानव के सौंदर्यमय सहअस्तित्व के लिए पर्याप्त नहीं। कुछ मुख्य समस्याएं जो आज के मशीनी, याँत्रिक, समाज को ग्रसित कर रही है वह हैं:-निर्भरता : पुरुषार्थ की कमी, कर्महीनता, संवेदनशीलता की कमी, अपना ही सोचना, अपने बनाए हुए चक्रव्यूहों में ही घूमते रहना।असंतुलित स्वास्थ्य : शरीर के प्राकृतिक प्रवाह से छेड़छाड़। तनाव बेचैनी आंखें व त्वचा प्रभावित शरीर का त्रुटिपूर्ण झुकाव या मुड़ाव मानसिक द्वन्द आदि-आदि।भाषा व साहित्य के सौंदर्य में कमी : यहाँ तक कि सही व…

अप्राकृतिक जीवन प्रकृति को कदापि मान्य नहीं, अमान्य शरीर कर्म

आज के युग की समस्याओं से जूझने वाले जुझारू मानवों का नितान्त अभाव। सब ओर आरामतलबी और उदासीनता-सी छाई है कि हमें क्या हमारा काम हो जाए भाड़ में। केवल बौद्धिकता से उछाले शब्दों व वाद-विवाद से प्रत्येक विसंगति को उचित ठहराने में ही कुशलता मानी जा रही है। कलियुग में सबकी बुद्धियों का इतना विकास हो गया है कि समस्याएँ तो खूब गिना सकते हैं। स्वयंसेवी संस्थान, NGO, बनाकर सेमीनार, Seminar, गोष्ठियाँ प्रदर्शन आदि कर धन समय और कागज तो खूब बरबाद कर सकते हैं पर सही समाधान जानकर उसे सही ढंग से लागू कर उचित मार्गदर्शन देने वाले न के बराबर हैं। और जो हैं भी उनकी सहायता को ना तो कोई आगे आता है और ना ही उनकी पूरी बात को कोई प्रचार माध्यम ही प्रसारित करता है। केवल चटपटी मसालेदार बातों का प्रचार ही प्रचार और उसमें भी व्यक्तिगत लाभ ही प्रमुख हो गया है। प्रत्येक…

अहम् जरूरतमंद है आत्मा नहीं

अहम् है जो तुम हो अपने को वही जानना और मानना तथा विश्वास भी करना। अहम् का उपयोग उत्थान के लिए आधारभूत शक्ति में करना है न कि कर्तापन के दम्भ व अहंकार में। जब प्रमाद आलस्य दुख संताप क्रोध विषाद हिंसा आदि स्थितियाँ हम पर हावी रहती हैैं तब हम अपनी स्वाभाविक स्थिति में नहीं रहते, कोई और स्व हमारे स्वयं के सत्य और दिव्यता के बीच होता है। यही कोई और स्व ही अहम् है। अहम् एक दुर्बलता है, उत्थान को सीमित करता है और रुकावटें पैदा करता है। अहम् सदा दूसरों की स्वीकृति चाहता है और इस प्रकार की अहम् तुष्टि में बहुत ऊर्जा व्यय होती है। जो मानव आत्मा के ही गुणों में रमक र आत्मा की ही विभूतियों के अनुसार जीता है वो केवल ब्रह्माण्डीय विस्तार के लिए जीता है और प्रकृति की तरह बदले में कुछ लेने की भावना से रहित हो अपने को…

क्यों आए हो तुम यहाँ सबको सत्य कर्म व प्रेम के प्रकाश से प्रकाशित करने

तुम यहाँ क्यों हो? मैं यहाँ क्यों हूँ? क्यों आए हो तुम यहाँ? यही तो जानना है जानने योग्य है। हम सभी उस परम चैतन्य सत्ता के कर्ता कारण हैं। सभी उसी परम की ऊर्जा शक्ति से संचालित हैं। उस परम शक्ति की परम बोधि, Supreme Intelligence, यह अच्छी तरह जानती है कि तुम कितनी पावर के बल्व हो इसलिए उतनी ही ऊर्जा तुम्हें प्रदान करती है जितनी तुम्हारे शरीर यंत्र के लिए ठीक है अपेक्षित है। अपने शरीर यंत्र की शुद्धि कर चक्रों का सन्तुलन कर उत्थान करकेउसकी क्षमता बढ़ानी होती है यदि अधिक ऊर्जा का प्रवाह परम स्रोत से आकर्षित करना है तो अपना शरीर यंत्र ट्यून tune, किए बगैर तकनीकों बाह्य उपकरणों या अन्य उपायों से परम ऊर्जा खींचने का प्रयत्न विनाशकारी भी हो सकता है। इसलिए अपरा ज्ञान, संसार से प्राप्त विज्ञान ही ठीक है जो तुम्हारी क्षमतानुसार ही कार्य कर पाता है। इसे ही वैज्ञानिक…

अपने को जानो उत्थान व रूपान्तरण हेतु

भारत के परम श्रेष्ठ गौरव को पुन: स्थापित करने के लिए प्रणाम प्रतिष्ठान का प्रणाम अभियान कटिबद्ध है और इसी दिशा की ओर अग्रसर है।भारत की संस्कृति - सत्यम् शिवम् सुन्दरम्भारत की भाषा - देवनागरी लिपि में संस्कृत, हिंदी व अन्य भारतीय भाषाएँभारत का ज्ञान - वेद उपनिषद् गीता निहित आत्मज्ञानभारत का विवेक - सर्वोच्च परम सत्ता की चेतना से योग स्थित होकर, संयुक्त होकर सही समय पर सही ज्ञान पाकर पूर्ण पुरुषार्थ से कर्मरत होना। भारत वेद है और वेद ही रहेगा। वेद शरीर, मन और आत्मा का विज्ञान है। वेद ब्रह्माण्डीय सत्य का प्रत्यक्ष प्रमाण है जो :-न हिन्दुत्व, न बुद्धत्व, न सिखत्व, न ईसाइत्व, न इस्लाम आदि आदि किसी भी कट्टरपंथिता में बाँधा नहीं जा सकता। वो केवल सनातन शाश्वत सत्य है। ऐसा सत्य जिसे जाना जा सकता है तो केवल :-- पूर्णरूपेण सत्य होकर- ब्रह्माण्डीय, Universal, सोच वाला होकर- मनसा-वाचा-कर्मणा सत्य होकर। जो सोचना वही बोलना…

जागो आत्मा की आवाज़ सुनो

जागो उठो भारतीयों ! अपनी आत्मा की आवाज़ सुनो!कर्म को तत्पर होओ। विविधता की एकता जानो ! एक तुच्छ सी सेविका मानवता की एक अदना सी बन्दी, ईश्वर अल्लाह की, सभी भारतीयों से कुछ मन की बातें कहती है। यह एक सत्य है और इसे झुठलाया नहीं जा सकता कि ''भारत में रहने वाला हर बन्दा पहले भारतवासी है बाद में कुछ और।'' भारत की हर विरासत हर नियामत उसकी अपनी है। कश्मीर की सुन्दर दिव्य घाटियाँ, बर्फीली रुहानी चोटियाँ कल कल करते बहते झरनों का संगीत और झीलों का विशाल हृदय। वृहद हिमालय ऋषियों मुनियों की तपस्या की महान स्थली। उत्तर भारत के लहलहाते खेत दिव्य नदियों की धाराएँ सामाजिक जीवन का सौन्दर्य महामानवों के उद्भव, विद्या ज्ञान-विज्ञान की पोषक स्थली। दिव्यता अवतरण की भूमि। बिहार की रसभरी लोक परम्पराएँ नीति ज्ञान व वाकचातुर्य। असम व बंगाल की मातृशक्ति में आस्था मानव यंत्र के ज्ञान का तंत्र विज्ञान व…

प्रणाम बोले : तत्वज्ञानी व तांत्रिक का भेद खोले

सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड तंत्र-यंत्र और मंत्र से ही निबद्ध है। मानव शरीर ब्रह्माण्ड की ही अनुकृति है। तंत्र का अर्थ है दिखाने वाले शरीर के अंदर फैला नाड़ी तंत्र शरीर, मन व आत्मा का आंतरिक स्वरूप। यंत्र का अर्थ है वो वाहन या मशीन-शरीर जो इनको धारण किए हुए जगह-जगह फिराता है कर्मों के हिसाब से। मंत्र व ब्रह्माण्डीय ध्वनि स्पन्दन है जो तंत्र और यंत्र को स्पन्दित करता है, जीवन्त करता है। ऊँ ही वो महामंत्र है। इस सबसे ऊँचे यंत्र मानव की शारीरिक, मानसिक व आत्मिक प्रक्रियाओं का ज्ञान पाकर इनका ब्रह्माण्डीय शक्तियों से संतुलन बना लेना ही व्यक्ति को तंत्रज्ञानी या तत्वज्ञानी बना देता है। पर ऐसे दिव्य रहस्योद्घाटन से प्राप्त शक्तियों का प्रयोग अहंकारमयी बुद्धि से स्वार्थी व अहमयुक्त लक्ष्यों के लिए करना ही तांत्रिक बना देता है। तांत्रिक इस मानव यंत्र के ज्ञान के कुछ भागों में निपुणता प्राप्त कर अपनी शक्ति प्रदर्शन में व व्यापारिकता…

भारत की सच्ची स्वतंत्रता

आज के ऐतिहासिक दिवस पर भारत के शरीर को गुलाम बनाने वाली शक्तियों से स्वतंत्रता प्राप्त हुई। पर भारत की आत्मा तो अभी भी उन शक्तियों के भार से दबी हुई है जो कि मानव के अधोपतन व गुंजल का कारण हैं। सत्ता व धन की लोलुपता उत्थान में बाधक हैं क्योंकि सत्य सुयोग्य क्षमताओं को न तो प्रेरित कर आगे लाया जाता है न सहायता की जाती है। अब समय है भारत की आत्मा की मुक्ति का, सत्य के आधार पर सामाजिक धार्मिक आर्थिक व राजनैतिक सभी क्षेत्रों के पूर्ण रूपान्तरण हेतु। हमको हमारी उस सनातन धर्म की गौरवशाली परम्परा में स्थित होना है जो कि भारत की पवित्र धरती पर प्रथम सत्य मानव को सौंपी गई। सनातन का अर्थ है आदि न अन्त- नित्य निरन्तर शाश्वत-अन्तहीन अविरल प्रवाह शाश्वत सत्य का। यही आधार है कृतित्व पूर्णता और अपूर्णता व अज्ञान के संहार का। इन्हीं सत्य नियमों के आधार…