कोई भी कल्पना निरर्थक नहीं होती
मानव जो भी कल्पना करता है वह सत्य ही होती है। मानव में कल्पनाशक्ति ब्रह्माण्ड, सृष्टि, की दी हुई है और मानव ब्रह्माण्ड की ही अनुकृति है 'यथा ब्रह्माण्डे तथा पिण्डे' यह भी सत्य ही है। जो भी कल्पना में आ जाता है वो या तो घटित हो चुका होता है या घटित हो रहा होता है या कहीं घटने वाली घटना की पूर्व सूचना होता है। कल्पना को बखान पाना या उनका रहस्य जान पाना साधारण मानव बुद्धि से परे है। कल्पनाओं को ही कुछ पुरुषार्थी मानव सत्य संकल्प जान कर उन पर पूरी शक्ति केन्द्रित कर ध्यान लगाकर निरन्तर कर्म कर नए-नए आविष्कार कर लेते हैं साहित्य रच लेते हैं, अनमोल कलाकृतियाँ बना लेते हैं जो चमत्कारों की श्रेणी में आते हैं। वैज्ञानिकों लेखकों कलाकारों आदि-आदि यहाँ तक कि युगदृष्टाओं के उत्थान का आधार भी कल्पना ही होता है। जब से सृष्टि बनी तब से अब तक जो…