रामसेतु- विहंगम दृष्टिकोण : भाग-2
''प्रकृति के नित्य निरन्तर सर्वव्यापक नियमों के सत्य पर आधारित'' हे मानव ! प्राकृतिक अनुकम्पा व सम्पदा से खिलवाड़ बन्द कर। मानव धर्म है प्राकृतिक सम्पदाओं को संवारना निखारना और सौन्दर्यमय बना कर मानव कल्याण के लिए उपयोगी बनाना न कि अपने क्षणिक स्वार्थी आर्थिक लक्ष्यों की पूर्ति के लिए उजाड़ना। प्रणाम मीना ऊँ मानसपुत्री प्रकृति की, गत कई वर्षों से चेता रही है। जाग ओ मानव! प्रकृति से तारतम्य व संतुलन बना। उसके उत्थान कार्य में सहायक हो अन्यथा मानव अपने विनाश का कारण स्वयं ही होगा। रामसेतु विवाद धार्मिक व्यापारिक या राजनैतिक इतना नहीं है जितना प्रकृति को नियंत्रित कर अपने-अपने निजी स्वार्थों और अहमों की तुष्टि का है। मानव की तर्क पोषित बुद्धि सदा ही अपने कर्मों के पक्ष विपक्ष में अनेकों व्यक्तव्य प्रस्तुत कर ही देती है जबकि सत्य बहस का मोहताज नहीं। हे मानव सीधी सी बात तेरी समझ में क्यों नहीं आती कि भारतभूमि…