अपूर्ण ज्ञान, मानसिक कुश्ती
आज ज्ञान इधर-उधर से ली गई जानकारी, कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा के बारे में होता है। इसमें उधार लिए हुए शब्द, बने-बनाए मंच और वैसे ही बनावटी श्रोतागण होते हैं। निष्क्रिय और कर्महीन दर्शक ही तो चाहिए बस ज्ञान का क्रियाकर्म करने हेतु। आज मुझे एक ऐसे ही गोष्ठी में जाने का अवसर मिला। मैं यह सोचकर वहाँ गई कि कुछ नया या क्रांतिकारी विचार सुनने को मिलेगा। लेकिन… मानव निष्कर्षों में फँसा हुआ है जो तकनीकी प्रयोगात्मकता से प्राप्त होते हैं जिसे वह समझता है कि वह ज्ञान के तत्व व थाह तक पहुंँच गया है। वह अपने इस अहम के वशीभूत होकर बड़ी-बड़ी बातों और तकनीकी शब्दों से दूसरों को भ्रमित करता है, जैसे व्याख्याता वैसे ही जिज्ञासु। कृष्ण और अर्जुन के मध्य जैसा संवाद अब कहाँ! श्रीकृष्ण सच्चे ज्ञान के ज्ञाता व प्रत्येक कला में निपुण, प्रत्येक कर्म में पूर्ण, इसी प्रकार अर्जुन भी अपने…