अपूर्ण ज्ञान, मानसिक कुश्ती

आज ज्ञान इधर-उधर से ली गई जानकारी, कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा के बारे में होता है। इसमें उधार लिए हुए शब्द, बने-बनाए मंच और वैसे ही बनावटी श्रोतागण होते हैं। निष्क्रिय और कर्महीन दर्शक ही तो चाहिए बस ज्ञान का क्रियाकर्म करने हेतु। आज मुझे एक ऐसे ही गोष्ठी में जाने का अवसर मिला। मैं यह सोचकर वहाँ गई कि कुछ नया या क्रांतिकारी विचार सुनने को मिलेगा। लेकिन… मानव निष्कर्षों में फँसा हुआ है जो तकनीकी प्रयोगात्मकता से प्राप्त होते हैं जिसे वह समझता है कि वह ज्ञान के तत्व व थाह तक पहुंँच गया है। वह अपने इस अहम के वशीभूत होकर बड़ी-बड़ी बातों और तकनीकी शब्दों से दूसरों को भ्रमित करता है, जैसे व्याख्याता वैसे ही जिज्ञासु। कृष्ण और अर्जुन के मध्य जैसा संवाद अब कहाँ! श्रीकृष्ण सच्चे ज्ञान के ज्ञाता व प्रत्येक कला में निपुण, प्रत्येक कर्म में पूर्ण, इसी प्रकार अर्जुन भी अपने…

जन्म, पुनर्जन्म, पूर्वजन्म के कर्म, पिछला जन्म

ये सब मानव को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करने को रचे गए थे। आज भी जब कोई कष्ट पाता है, या गरीब है तो उसे तसल्ली देने को कह देते हैं कि भई पूर्वजन्म का फल है जो भोग रहे हो। यदि सुखी है, अमीर है तो भी यही जवाब है कि पूर्वजन्म में अच्छे कर्म किए होंगे उसी का फल है। न कोई पूर्वजन्म है न होगा। मरने के बाद भी पुनर्जन्म या किसी चौरासी लाख योनि-चौरासी लाख- में पड़ना कि अच्छा कर्म किया तो अच्छी योनि का, बुरा कर्म किया तो बुरी योनि। ये सब ऐसे ही है जैसे बालक से कोई काम कराना हो या उसे सुलाना हो तो कहते हैं - हौआ आया या तुझे भूत पकड़कर ले जाएगा इत्यादि-इत्यादि। यदि किसी को विशेषकर हिन्दु धर्म के अनुयायिओं को कर्मजन्य फल अगले जन्म में भोगने या खराब योनि में पड़ने का भय न…

कर्मगति

जब जिज्ञासुओं के प्रश्नों के उत्तर नहीं बन पड़ते या नहीं कह पाते तो कह देते हैं कि पिछले जन्मों के कर्मफल हैं। कोई अमीर घर में पैदा क्यों होता है, कोई गरीब घर में पैदा क्यों होता है, जीव की उत्पति अपने अनुकूल वंशानुगत वातावरण में होती है। नाली का कीड़ा नाली में ही बच्चा पैदा करेगा। इसमें पिछले कर्मों को दोष देना व्यर्थ है। वैसे भी हम भारतीयों का राष्ट्रीय चरित्र बन गया है- अपनी कमियों असफलताओं का दोषारोपण दूसरे पर डाल देना। यह आलस्य है, कर्म न करने का बहाना है। यदि गरीबी पिछले जन्मों का कर्मफल होता तो कोई-कोई गरीब दुनिया का सबसे बड़ा अमीर क्यों बन जाता है? कारण है, तत्बुद्धि ज्ञान और कर्म। सही दिशा में कर्म पूरे मनोयोग और पुरुषार्थ से न कि पिछले जन्मों का कर्मफल। अगला-पिछला जन्म किसने देखा है। सब प्रश्नों को टालने के बहाने हैं या यह भी हो…

मार्गों की अटकन सत्य से भटकन

यह सत्य तो सभी जानते हैं, स्वीकारते भी हैं कि कोई भी मार्ग अपनाओ सभी परमात्मा तक पहुँचते हैं। पर यह सत्य समझने की चेष्टा कोई नहीं करता कि प्रत्येक मार्ग की अपनी साधना है जो व्यक्तिगत पुरुषार्थ पर निर्भर है। व्यक्ति यह तत्व भुलाकर अपने मार्ग को उत्तम बताने और जताने के फेर में स्वयं भी अपने धार्मिक मार्ग के कर्मकाण्डों क्रियाकलापों और दिखावटी प्रदर्शनों की भूल-भुलैया में जीवनभर फँसा रहता है। अपने-अपने मार्ग को सही व सर्वोत्तम बताने में अथक प्रयत्न करने वाले स्वयं कहाँ पहुँचते हैं, ये तो वो ही जाने। अपने अपनाए धर्म को दूसरों के धर्म से बेहतर बताने वालों में से क्या कोई कृष्ण नानक ईसा विवेकानन्द कबीर तुलसी या गांधी जैसा महान मानव बन पाया या बना पाया। मार्ग कोई भी हो, ज्ञान भक्ति या कर्म या अन्य कोई सब सीढ़ियाँ मात्र हैं प्रभुता की प्रभुताई- ऊँचाई तक पहुँचने की। अगर नहीं पहुँचे…

अदृश्य आंतकवाद

दक्षिण भारत यात्रा के अंश : भाग - 3 कन्याकुमारी होटल की खिड़की से बाहर दिखाई दे रहा है सागर का विस्तार ही विस्तार। हिन्द महासागर बंगाल की खाड़ी और अरब सागर का संगम। हल्की-हल्की लहरें, सूर्य की किरणें, उन्हें छूकर अठखेलियाँ करती हुई शान्त ठहरी हुई। अथाह जलराशि ध्यान में लीन बदलाव की तैयारी जैसी शान्त नि:शब्दता। श्री विवेकानन्द स्मारक व गांधी मंडपम में जाने का मन नहीं हुआ। पिछली शाम चक्कर लगा ही लिया था। अच्छी तरह समझ आ गया यहाँ भी वही हाल हो गया है जो ओरोविलियन और पांडुचेरी मदर के आश्रम का हुआ है। कोई भाव नहीं न कोई विचार विस्तार केवल एक भावहीन व्यापारिक-सा पर्यटक स्थल नक्शे पर दिखाने के लिए। न कोई इनका महत्व ठीक से बताता है न ही कोई इनके प्रति दिल से आदर दिखाता है। स्थानीय लोगों के लिए यह गौरव के स्थल नहीं व्यावसायिक केन्द्र मात्र हैं। केवल दानपेटियाँ…

अदृश्य आतंकवाद

दक्षिण भारत यात्रा के अंश : भाग-2 मन में बहुत उमंग थी श्री माँ और श्री अरविन्द जी की तपोभूमि व कर्मस्थली पांडुचेरी को दुबारा सोलह साल बाद देखने की। क्योंकि उनके सपनों की नगरी ओरोविलियन की भी बहुत चर्चा सुनाई देती रही है। समाधि दर्शन से जो अनुभूति सोलह साल पहले हुई थी उसकी याद भी पुलक जगा रही थी । पर ओरोविलयन पहुँचने पर वहाँ कुछ भी ऐसा नहीं पाया जो श्री माँ का विज़न था। कुछ अजीब-सा असंदिग्ध-सा वातावरण। मन बहुत घबरा-सा गया। फौरन ही बाहर निकलकर पांडुचेरी जो अब पुण्डुचेरी हो गया उसका रास्ता पकड़ा। वहाँ पहुँचकर समाधि दर्शन किया। दोनों समाधियों पर फूल सज्जा तो मनमोहक थी पर वहाँ भी वो पहले जैसी भावानुभूति नहीं हुई। बार-बार यही ध्यान आता रहा कि जो श्री माँ और श्री अरविन्द का सपना और दूरदर्शिता है उस पर काम नहीं हो रहा। एक उदासीनता सी छाई थी। वहाँ…

अदृश्य आतंकवाद : दक्षिण भारत यात्रा के अंश- भाग : 1

आजकल चारों ओर से और सभी प्रचार माध्यमों से आतंकवाद शब्द की गूँज सुनाई देती रहती है। यहाँ हमला हुआ वहाँ बम फूटा कहीं आक्रान्तों का आक्रमण,कहीं आपसी सिरफुटौव्वल जिधर देखो हिंसा का तांडव। जिनकी सारी सूचनाएँ बहुतायत से मिलती ही रहती हैं। जिस आतंकवाद का विरोध या प्रतिकार होता है कुछ मुठभेडें होती हैं वहाँ तो पता लग ही जाता है कि आतंकवाद है, घुसपैठ है, वहाँ सुरक्षा भी कड़ी की जाती है क्योंकि यह प्रत्यक्ष और दृश्य आतंकवाद है। पर उस अदृश्य आतंकवाद का कहीं भी विवरण या उल्लेख नहीं जो आराम से पसर कर भारतीय संस्कृति को निगल गया है और निगल रहा है। वो निश्चिन्त होकर अपने पैर पसार रहा है क्योंकि उसका विरोध या निराकरण करने वाला कोई सजग प्रहरी है ही नहीं, सब बखानने में लगे हैं। यह भारत प्रायद्वीप के निचले दक्षिणीय पश्चिमी तटों, क्षेत्रों व कन्याकुमारी तक स्पष्ट दिखाई देता है और…

युगदृष्टा दोहराए नहीं जाते

सच्चे और वास्तविक युगदृष्टा या युग प्रवर्तक जो पूर्णता उत्थान व रूपांतरण की गति को दिशा व दशा देने आते हैं वो कभी भी एक जैसे नहीं होते न ही दोहराए जाते हैं। उनके शरीर छोड़ने के बाद उनका 'भाव' और अधिक उन्नत होकर नया रूप लेकर अवतरित होता है जिसे मानव फिर नहीं समझ पाते क्योंकि वो बीत गई छवि को या मन में बनाई किसी छवि विशेष को ही चिपके रहते हैं और उसी की पूजा-अर्चना प्रचार व प्रसार करने में ही अपने को धन्य मानते रहते हैं। क्योंकि वो जीवित नहीं है उनसे प्रश्न नहीं कर सकता, न ही कह सकता है कि 'तूने अपने पर मेरे मार्गदर्शन अनुसार काम तो किया नहीं इसीलिए भटक रहा है' और वो उसको जो अब मूर्ति या तस्वीर रूप में है उसे सब कुछ सुना सकते हैं। शिकायत मनुहार अपेक्षा आदि कर सकते हैं। हे मानव! यह सत्य समझ ले…

मानव की चतुराई

अपनी ही ज्ञान ध्यान चिन्तन मनन की सतत् साधना से यदि आप सत्य को जान व समझ गए हैं तो पहले तो एक वाक्य सुनने को मिलेगा कि आप तो बहुत पहुंचे हुए हैं। समझ नहीं आता कि व्यंग्य है या प्रशंसा। उस पर हर ऐरा गैरा सबूत माँगता है और यदि आपने कुछ सबूत दे भी दिया तो वो भी आपको माने या न माने उसकी मर्जी। सबूत मांगने वाले यह नहीं समझते कि सबूत स्वयं को मनवाने के लिए नहीं है केवल यह बताने के लिए है कि सबका उद्देश्य सत्य को जानना होना चाहिए। पर ये सब कुछ प्रमाण मांगना परीक्षाएं आदि लेना इसलिए कि या तो आपको नकार सकें या यह जाँच सकें कि आपमें कितनी शक्ति है उसी के अनुसार आपका लाभ उठाया जा सके। इतना चतुर है मानव कि यदि आप उसकी सांसारी इच्छाएँ पूरी कर सकें अपने दर्शनों व आशीर्वादों से उन्हें सफलता…

हम कहाँ जा रहे हैं ये क्या हो रहा है?

बेचो बेचो सब कुछ बेचो जो भी हत्थे चढ़े बस बेचोबिक गया जो वो खरीदार नहीं हो सकता बन गया जो व्यवसाय वो खेल नहीं हो सकता एक समय गुलाम बिका करते थे। अभी भी लड़के लड़कियों की खरीद फरोख्त की बातें सुनाई पड़ती ही रहती हैं। पर बुद्धिजीवियों ने कभी भी इसे उचित नहीं ठहराया। सदा मानव अधिकारों का हनन व समाज का कोढ़ बताया। इतने आलोचक व समाजसेवियों के जत्थे होने पर भी समाज दो वर्गों में सिमट गया है। एक बेचने वाले दूसरे खरीदने वाले। हर वो चीज़ जो कम से कम श्रम और समय में कमाई का रास्ता सुझाती है वो बिक रही है। तकनीक से लेकर बुद्धि तकï, जमीनों से लेकर रेल की पटरियों के बीच की जगह तक, मादक द्रव्यों से लेकर गुर्दों तक। भिखारी तक अपने बैठने की जगह या क्षेत्र, ठेकों व नीलामी पर उठा रहे हैं। दुनिया में मेहनत ईमानदारी मर्यादा…