आत्मज्ञान – पूर्वीय पक्ष

चेतना को जानना व अनुभव करना इसके लिए ब्रह्माण्डीय सोच वाला होना ही होता है। यह पूर्वीय पक्ष है, पूर्व का विश्वास है। भारत में लोग आत्मज्ञानी होने की आकांक्षा करते हैं। ब्रह्माण्डीय जीवन शक्ति जो सर्व विद्यमान, सर्व ज्ञानवान व सर्व शक्तिमान है उसे जानकर उसी में विलय होना ही मानव जीवन को पूर्णता देना है। यही पूर्वीय पक्ष है।पाश्चात्य देशों में मस्तिष्क को जीतने की आकांक्षा है। मस्तिष्क को जानना मानसिक शक्ति और उसके खेलों में रमना जो कि सीमित है व भ्रमित भी करता है। कुछ सीमा तक सांसारिक जीवन को सफलता भी देता है। आध्यात्मिक व आत्मिक उत्थान हेतु, मन मस्तिष्क को सेवक बनाना होता है। उसे मानव अस्तित्व व सृष्टि के रहस्य, उजागर हेतु ध्यान में लगाना होता है।जय सत्येश्वरप्रणाम मीना ऊँ

तन्हाई मन भाई

मैं मेरा मन मेरा खुदा मेरी आत्मा और मेरी तन्हाई एक ही तो हैं खुदा और खुदाई सारी खुदाई में मैं और मेरी तन्हाई यही तन्हाई मन भाई कन्हाई यही है सच्चाई यहीं है सच्चाई मैं मेरा मन मेरा खुदा मेरी आत्मा और मेरी तन्हाई मैं पाँच ही हूँ मैं अकेली अकेली कहाँ हूँ सारी खुदाई में मैं और मेरी तन्हाई यही तन्हाई मन भाई यही है सच्चाई - यहीं है सच्चाई प्रणाम मीना ऊँ

ऊर्जा का खेल

जब तक इंसान दूसरे इंसानों से ऊर्जा लेकर काम चलाएगा, शक्ति लेगा उसके दुखों का अन्त नहीं होगा क्योंकि इंसान से ऊर्जा लेने पर उसके कर्मों का बोझा भी ढोना पड़ता है। जब मनुष्य दूसरे से ऊर्जा लेता है तो बंधता है जब अपने आप ब्रह्माण्ड से ऊर्जा लेता है किसी और पर निर्भर नहीं होता ऊर्जा के लिए, तो मुक्त होता है स्वतंत्र होता है। स्वतंत्र होना बंधन मुक्त होना ही मानव की नियति है। मानव ही इसके विरुद्ध जाता है और कर्मफल बंधन में बंधकर कष्ट भोगता है। अपने बंधन ही खोल खोलकर समाप्त करना इतना कठिन है कि पूरा का पूरा जीवन लग जाता है इसी में तो और इंसानों से भी ऊर्जा लेकर भोगना तो अन्याय ही है इस मानव तन मन के साथ। हाँ! यदि आपने अपने सब कर्म भोग लिए हैं काट लिए हैं हिसाब किताब बराबर कर लिया है और आप शक्तिमान हो…