ज्ञान सागर

रत्नाकर प्रभाकर सुधाकर करे ध्यान उजागर भरे मन की गागर स्मृति अनन्त सागर, स्मरण की बना मथनी इच्छा की लगा शक्ति बुद्धि की बना डोर, ध्यान का लगा जोर काल का चक्र घुमा पाया अनमोल रत्न ज्ञान का नव निर्माण का कर्म प्रधान का सत्य विहान का प्रेम समान का विश्व कल्याण का प्रणाम अभियान का महाप्रयाण की इससे अच्छी तैयारी और क्या होगी। पूर्ण होकर ही पूर्ण में विलय होने की। पूर्ण हुई ईश्वर कृपा कृपा ही कृपा पूर्ण अनुकम्पा में नतमस्तक है !! प्रणाम मीना ऊँ

स्तुति

ओ प्रभु मुझे दृढ़ता साहस व शक्ति दो सद्विचारों व सत्य दूरदर्शिता को कर्म में बदलने की एक ऐसी अद्भुत क्षमता दो जो जड़ चेतन सबमें एकाकार हो समस्त सृष्टि में लीन हो जाए जो सब मानव मस्तिष्कों का भाव एक कर सत्य प्रेम व प्रकाश के द्वारा शांति और आनन्द के प्रसार का सर्वत्र जन अभियान चला दे...!! प्रणाम मीना ऊँ

मेरा ईश्वर

हे मानव ! मेरा ईश्वर, आकाश वायु अग्नि जल व पृथ्वी समान सत्य है। प्रकृति समान जीवन्त और गतिमान है। आचार्य गुरु ऋषि ज्ञानी मानव जिस ईश्वर से भय खाते हैं डरते डराते हैं वह ईश्वर नहीं है। वह तो ब्रह्माण्ड समान अन्तहीन है प्रारम्भहीन है पूरी सृष्टि का स्रोत है आधार है। तर्क केवल खण्डन कर नकारात्मकता उपजाता है। मैं परम इच्छाशक्ति हूँ ...ऊँ परम जिज्ञासा हूँ ...ऊँ परम प्रेम हूँ ..ऊँ परम सत्य हूँ ..ऊँ परम कर्म हूँ ...ऊँ परम प्रकाश हूँ ...ऊँ जो इन सबका स्रोत है वही मेरा सत्य सनातन नित्य निरन्तर शाश्वत ईश्वर है। तुम अपना ईश्वर स्वयं प्रकट कर सकते हो। प्रकृति ने प्रत्येक मानव को यह क्षमता दी है, ईश्वर साक्षात्कार की। प्रकट कर लो अपना ईश्वर। हो सकता है कि वो मेरे द्वारा जाना, मेेरे अन्दर में स्थापित ईश्वर से भिन्न हो, क्या अन्तर पड़ता है या क्या अन्तर पड़ेगा। अपने में…

काल की किताब पर समय का हस्ताक्षर

अन्तरिक्ष के ज्ञान पर ब्रह्माण्ड के विज्ञान पर युगों की पहचान पर कालचक्र के विधान पर समय का हस्ताक्षर है प्रणाम प्रकृति के नियमाचार पर मानव के प्राकार पर अवतार के आकार पर भाव के प्रसार पर समय का हस्ताक्षर है प्रणाम स्वरों के नाद पर रेखाओं के प्रभाव पर रंगों के आभास पर शब्दों के प्रसाद पर समय का हस्ताक्षर है प्रणाम वेदों के न्यास पर व्यास के विन्यास पर बोधि के विस्तार पर जीव गति के सार पर समय का हस्ताक्षर है प्रणाम सृष्टि के संवाद पर एक से एकाकार पर अनहद के ओंकार पर अनन्त के आभार पर समय का हस्ताक्षर है प्रणाम सत्य के विहान पर असत्य के अवसान पर कर्म प्रेम प्रकाश के प्रत्यक्ष प्रमाण पर काल की किताब पर समय का हस्ताक्षर है प्रणाम यही सत्य है यहीं सत्य है प्रणाम मीना ऊँ

प्रणाम प्रकाश स्रोत

प्रणाम धरा पर प्रकाश स्रोत है सत्य का आवाहन है कर्म का प्रोत्साहन है प्रेम का वाहन है सरस्वती का वचन है लक्ष्मी का वंदन है पूर्णता का सृजन है अपूर्णता का विसर्जन है प्रणाम धरा पर प्रकाश स्रोत है मानव उत्कृष्टता का उदाहरण है मानव आनन्द का कारण है व्याधियों का निवारण है मुक्तता का पर्यावरण है प्रणाम धरा पर प्रकाश स्रोत है देवी-देवताओं का अवतरण है मानव रूप में रूपान्तरण है इसी देह से पूर्ण समर्पण है आत्मवान महापुरुषों का तर्पण है प्रणाम धरा पर प्रकाश स्रोत है मानवता के गौरव की है पुष्टि समरूप प्रेम से परिपूर्ण है दृष्टि वसुधैव कुटुम्बकम् है सफल सृष्टि सहज सरल धर्म की हो कल्याण वृष्टि प्रणाम धरा पर प्रकाश स्रोत है जीवन को जीवंत करने की कला है उत्तरोत्तर मानव विकास की श्रृंखला है चार दल से सहस्रदल यात्रा की कुंजी है प्रकाश सत्य कर्म प्रेम प्रीति की पूंजी है प्रणाम…

जागरूकता व चैतन्यता का मर्म

हे मानव ! अब इनका मर्म जानकर इन पर ध्यान लगाकर कर्म करने का समय आ ही पहुँचा है। पिछले कुछ दशकों से शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत काम हो रहा है। लगभग सभी वैज्ञानिक व आध्यात्मिक चिकित्सा पद्धतियों द्वारा शरीर मन व बुद्धि को संयत स्वस्थ व सकारात्मक रखने का अथक प्रयास हुआ है। लेखन व अन्य प्रचार माध्यमों से भी इनसे सम्बन्धित सभी जानकारियाँ व सूचनाएँ उपलब्ध कराई गईं हैं। लगभग सभी कुछ कहा सुना व लिखा जा चुका है। अब समय है चेतना, consciousness, और जागरूकता, awareness, पर काम करने का। इसका प्रारम्भ केवल आन्तरिक यात्रा द्वारा ही सम्भव है। अपना सत्य सभी जानते हैं पर उसको स्वीकारने का साहस कर पाना ही आन्तरिक यात्रा के शुभारम्भ का आधार है तत्पश्चात निरन्तर ध्यान साधना अपेक्षित है। मानव ने अपनी चेतना की आवाज़ को सुनकर भी अनसुना करने का इतना अभ्यास कर लिया है कि चेतना की…

शब्द को ब्रह्म जान : सही इन्सान बनने हेतु वाणी संवार

हे मानव ! तू केवल मैं होकर रह गया है। मुझे क्या मिलेगा मुझे क्या नहीं मिला मुझे पूछा नहीं मैं बोर हुआ मुझे अच्छा नहीं लगा मेरा क्या होगा आदि-आदि। इस मैं मैं को मुझसे क्या-क्या दिया जा सकता है क्या-क्या अर्पण हो सकता है इसमें बदल। अपने अवचेतन मन में और स्वार्थी बुद्धि में एकत्रित अनर्गल अनर्थक व निरर्थक शब्दों स्मृति चिन्हों चित्रों और रूढ़िवादी मान्यताओं को मिटा डाल। शब्द शक्ति प्राप्ति हेतु असत्य पाखंडपूर्ण स्वार्थी व छलपूर्ण बुद्धि विलास जो कि मानव उत्थान में गतिरोधक है उन्हें तिरोहित कर। सही इन्सान बनने हेतु उच्चरित शब्दों का महत्व जान और अपनी वाणी संवार। प्रत्येक शब्द को परम कृपा का प्रसाद जानकर ध्यान व श्रद्धा से प्रयुक्त कर। प्रत्येक शब्द अपने आप में एक मंत्रवत शक्ति संजोए रहता है। सकारात्मक सुन्दर शब्द चारों ओर सकारात्मकता व सौन्दर्य ही प्रवाहित करते हैं। जैसा सुना समझा वैसा का वैसा ही बिना…

एक प्रश्न पूछ रहा प्रणाम

हे मानव! तू किसे पूजता है तेरा आराध्य या ईष्ट कौन है। किसे याद करता है किसे फूल-पत्र, भोग व प्रसाद चढ़ाता है। कहाँ मुसीबत में भेंट प्रार्थना व अर्चना करता है भजन कीर्तन करता है। तू जिसके लिए यह सब करता है और गर्व से कहता है कि मैं तो अमुक-अमुक को गुरु मानता हूँ, अमुक-अमुक देवी देवताओं का भक्त हूँतो फिर तेरा समर्पण पूर्ण क्यों नहीं है। क्यों इधर-उधर भागता है कि तेरी समस्याओं का समाधान और उल्टे-सीधे अज्ञानतापूर्ण प्रश्नों के उत्तर मिल जाएं। ज्योतिष वास्तु या कोई कष्ट निवारक ही मिल जाए, कुछ नगों मंत्रों या अन्य उपायों से चमत्कार हो जाए। ये सब बाहरी फैलाव या भागदौड़ क्यों, दिमागी जोड़-तोड़ क्यों… क्यों जब तेरा जहाँ से जी चाहे वहीं से तुझे सब प्रश्नों के उत्तर मिल जाएं, मुसीबतें या सांसारी कष्टों का नाश हो जाए। ऐसी शब्दों की बौछार हो जाए जिसमें तू अपनी बुद्धि से…

गिर के सम्भलने का आनन्द

हे मानव! तू असफलता के भय से त्रस्त होकर पहले से ही पक्का इन्तजाम कर सफलता ही चाहता है। किताबी तकनीकी ज्ञान, प्रचुर मात्रा में धन व अन्य प्रकार के साधनों की इच्छा रखता है। शारीरिक स्वास्थ्य व बनावटी और दिखावटी, बढ़ा हुआ ऊँचा जीवन स्तर कायम रखने के लिए। वो जीवन स्तर जिसकी कोई सीमा रेखा है ही नहीं नित नया मापदण्ड। इसी उधेड़बुन के तनाव व समय के साथ भाग न पाने के भय में जीवन का स्वरूप व आनन्द खो ही गया है। विज्ञान पर अत्यधिक निर्भरता व आरामतलबी के उपकरणों ने मानव की, संघर्ष से जूझने की सोच को पंगु बना दिया है। बालक जब खड़ा होकर चलने की प्रक्रिया में बार-बार गिरता है इससे वो सीखता है कैसे हाथों पैरों व घुटनों का तालमेल बिठा कर खड़ा होना है अपने आप सम्भल कर खड़े होने पर उसे आनन्द की अनुभूति होती है। सोच व कर्मेंद्रियों…

सच्चा कर्मयोग : कर्म सकल तव विलास

हे मानव ! पूरे मनोयोग से किया नित्य कर्म संसार धर्म का कर्म और कर्त्तव्य कर्म, जो सदा परम सत्ता को पूजा अर्चना की तरह फलेच्छा रहित हो समर्पित किया जाए वही निष्काम कर्म है। निर्मल पवित्र शुद्ध कर्म है कर्म बंधन काटने का मर्म है। कर्म बंधन निष्काम कर्म से ही कटते हैं। सम्पूर्ण भक्ति भाव से परम चेतना को अर्पित कर्म, यज्ञ समान है, उच्चकोटि के तप समान है जिससे मानव का सम्पूर्ण अस्तित्व पूर्ण परिष्कृत हो उत्कृष्टता को प्राप्त होता है। मानव चेतना पूर्ण विकास पाकर परम चेतना से संयुक्त, योग होती है। अंतर्मन पूर्णतया दोष रहित होकर हीरे की भांति चमकदार व पारदर्शी हो जाता है। जिसमें सारे ज्ञान विज्ञान, सारे ब्रह्माण्डीय व अंतरिक्षीय रहस्य, जीवन रहस्य, मानव अस्तित्व रहस्य उजागर हो जाते हैं। मन के सभी द्वंद व प्रश्न उत्तरित हो शान्त हो जाते हैं, असीम कृपा का अनुभव होता है। अपरिमित कृपा वैराग्य शान्ति…