सेवा-दया
उस पर व्यय करो जो सुपात्र हो ! अब सुपात्र कौन है यही जानना-समझना ही ज्ञान है सही मानव उन्नत मानव आपको सामने वालों को स्वत: ही अपने समकक्ष कर लेता है। यही सत्संग माहात्म है। कौन गुरु कौन शिष्य सब छलावा है एकतरफा रास्ता नहीं। कौन लेता है कौन देता है सब माध्यम हैं। अपनी-अपनी सीढ़ी पर खड़े ब्रह्मïज्ञानी को ब्रह्मज्ञानी स्वत: ही पहचान लेता है। तुम जिस सीढ़ी पर पहुँच गए हो जहाँ खड़े हो वहीं से आगे ले जाने वाला गुरु स्वत: ही मिलता जाता हैवो गुरु किसी भी रूप में हो सकता है। यही सत्य है प्रणाम मीना ऊँ