मैं विज्ञान हूँ

ज्ञान विज्ञान का परा और अपरा का मैं पवित्र चेतन आनन्द हूँ सृष्टि का अनन्त नृत्य मैं कृष्ण हूँ यह अहम् नहीं है जैसे श्रीकृष्ण ने गीता में कहा - 'मेरे पास आओ। मैं समग्र हूँ, मैं पूर्ण हूँ। सर्वव्यापी चेतना का स्वरूप हूँ परम चेतना का प्रवक्ता हूँ प्रणाम मीना ऊँ

ज्ञान के गढ़

4 वेद - ऋगवेद, सामवेद, अथर्ववेद और यजुर्वेद 6 वेदांग - - शिक्षा विद्या- व्याकरण - छन्द- निरुक्त- कल्प - ज्योतिष 4 मीमांसा- न्याय, पूर्ण, धर्म, शास्त्र 4 अर्थशास्त्र- धनुर्वेद, गंधर्ववेद, आयुर्वेद अंतिम चार का सम्बन्ध धर्म से नहीं है पर ये ज्ञान के गढ़ होने के योग्य हैं। विज्ञान और ज्ञान यह दर्शाते हैं, कैसे एक अनंत अपार ऊर्जा स्रोत असंख्य तथा भिन्न पदार्थों में रूपांतरित हो एक ब्रह्माण्ड निर्मित करता है जो सबकी उत्पत्ति का स्रोत है। श्रुति एवं स्मृति धर्म की पुस्तकें स्मृति हैं वेद श्रुति है !! प्रणाम मीना ऊँ

स्व ज्ञान

तुम जो हो अपने को वही जानो तुम जो कहो वही सत्य हो, जिया भोगा सोचा तुम जो करो वह सत्यम् शिवम् सुंदरम् हो तुम जो हो वही तुम्हारा सत्य है तुम जैसे हो वही तुम्हारा सत्य है अच्छा-बुरा, झूठा-सच्चा दिमाग की सोच है सबसे बड़ी बात अपने को समझना न कि इस चक्कर में पड़ना कि तुम अच्छे हो या बुरे झूठ हो या सच !! झूठ को नकारना झूठ है झूठ को स्वीकारना सच है तो झूठ भी तो सच ही है यही सत्य है !! प्रणाम मीना ऊँ

समय थोड़ा रह गया

मुझे प्रचार नहीं चाहिए प्रसार चाहिए मुझे अपने अनुयायी नहीं चाहिए माध्यम चाहिए जिनका दीया प्रभु मुझ माध्यम द्वारा जलवा देवें और वो माध्यम इतने सक्षम हों कि और आगे मानवता का दीया जला सकें आत्मा के उत्थान की आत्मा की आज़ादी की मशाल जलती रहे एक माध्यम थक जाए चुक जाए तो दूसरा माध्यम उसकी जगह ले ले कर्मयोगी चाहिए अंध भक्त नहीं मुझे स्वामी माता गुरु बन पाँव नहीं पुजवाने बहुत काम है आगे जाना है रुकना नहीं है। यही सत्य है !! प्रणाम मीना ऊँ

वेद – विज्ञान का संतुलन

परा ज्ञान - अपरा ज्ञान दोनों का दोनों का संतुलन ही पूर्ण ज्ञान ही सम्पूर्ण ज्ञान है अहम् सांसारिक विज्ञान के परे ही तिरोहित होता है। मैं सांसारिक विज्ञान की पकड़ से दूर हूँ मैं सदा से ही मानवाकृत विज्ञान से परे हूँप्रभु सम्पूर्ण ज्ञानमय हैआनन्दमय हैसुखमय हैपरमानन्द है प्रभु सम्पूर्ण ज्ञान हैं सम्पूर्ण धर्म हैं सम्पूर्ण वैराग्य हैं सम्पूर्ण यश हैं सम्पूर्ण शोभा हैं सम्पूर्ण ऐश्वर्य हैं ईश्वर ऐश्वर्य है ईश्वर है सर्वव्यापक सर्वशक्तिमान सर्वज्ञाता वेद मन को ऐश्वर्यवान बनाता है। विज्ञान शरीर को ऐश्वर्यवान बनाता है दोनों का योग ही सम्पूर्ण योग है वेद प्रकृति का दिया ज्ञान है विज्ञान है सत्य ज्ञान है विज्ञान मानव बुद्धि द्वारा जाना गया तथ्य ज्ञान है मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा दोनों के योग से बने महामानव ईश्वर स्वरूप यही सत्य है !! प्रणाम मीना ऊँ

पूर्णता का मंत्र

मैं मीना शरीर में पूर्ण हूँ ऊँ प्रणव हूँ ऊँ प्रत्यक्ष हूँ ऊँ प्रमाण हूँ ऊँ प्रणाम हूँ ऊँ वेद हूँ विज्ञान हूँ वेद विज्ञान मिलन हूँ मैं मीना शरीर में युग चेतना हूँ समिष्टि का संकीर्तन हूँ समय की किताब पर श्री कृष्ण का हस्ताक्षर हूँ मैं वही तो हूँ यही सत्य है !! प्रणाम मीना ऊँ

होगा कोई परम हंस

होगा कोई परम हंसजिससे जुड़े मेरे मानस का हंस उड़ने को तैयार हो जगत उजियार देखे संसार आ गया मेरे मानस का हंस पाकर दुर्गा शक्ति हुई उत्पत्ति अब ना नष्ट होगी सरस्वती की सम्पत्ति परमहंस परमज्ञानी ही बाँचेंगे जाँचेंगे - मेरी वाणी दत्तात्रेय - ज्ञान ध्यान विवेक त्रय दत्ता ब्रह्मा : महासरस्वती विष्णु : महालक्ष्मी महेश : दुर्गेश्वरीमहाकाली ऊर्जाओं से युक्त मानस का हंस !! प्रणाम मीना ऊँ

मैं मानस पुत्री प्रकृति की

मैं प्रकृति ही हूँ संत नहीं जो तांडव न करूँप्रत्येक अपूर्णता को नकारना ही धर्म है मेरापूर्णता को स्वीकारना पे्रम है मेरापूर्णता की ओर ले जाना कर्म है मेरा यही सत्य है मीना नामधारी जीव कुछ नहीं है कोई नहीं है समय की उत्पत्ति हूँ ...ऊँ संभवामि युगे युगे हूँ ऊँ प्रकृति की मानस पुत्री हूँ ...ऊँ जैसे वो है वैसी ही हूँ ...ऊँमीना ऊँजो वो करती है वही करती हूँ ...ऊँयही सत्य है !!

ज्ञान ध्यान

कोई भी किसी को रास्ता नहीं बता सकता। कोई भी किसी को सही रास्ते पर नहीं चला सकता। हाँ, रास्ता बता सकता है और रास्ते भी कई हैं। सैकड़ों ज्ञानी ध्यानी अवतारी बता गए। क्या दुनिया में दुख-दर्द दूर हो गए। प्रणाम का माना मार्ग सत्य जानने वाला ही सत्य समझ पाता है पूर्ण सत्यमति सत्यगति सद्गति की मति और अनुभूति की पूर्णता का कालजयी युगचेतना द्वारा मान्य मार्ग माना मार्ग जो सनातन है शाश्वत है यही सत्य है !! प्रणाम मीना ऊँ

पर एक द्वार

दस द्वार मानव शरीर के जो नजर आते हैं कुंजी के - जिनकी व्याख्या बहुत - आकार के - है शास्त्रों में सब जानते हैं - पर एक द्वार जहाँ से दिव्यता आती है, शरीर में समाती है और तन-मन-मस्तिष्क इस सम्पूर्ण शरीर को माध्यम बना अपनी दिव्यता से मानवता को उत्थान का रास्ता दिखाती है वह द्वार कभी नहीं बखाना गया। इसी द्वार से ब्रह्माण्ड से नाता जुड़ता है। ब्रह्माण्ड स्वयं पढ़ाते हैं ज्ञान देते हैं और इसी द्वार से प्रवेश कराते हैं वह सब अलौकिक विचार जो सृष्टि के, मानवता के व मानव के उत्थान में सहायक होते हैं मानव को दिव्यता की ओर ले जाकर अंत में दिव्य रूप बनाते हैं। पहले हुए अवतारों ने दिव्य पुरुषों ने जहाँ तक मानव उत्थान का कर्म लाकर छोड़ा वहीं से उत्थान कर्म आगे बढ़ता है क्योंकि इसी द्वार से उनके विचार सत् चित वाले शरीर को माध्यम बनाकर सृष्टि…