आँखों का भाव

यहीं है सत्य, मीना की आँखों में आँखों के भाव में यही सत्य है कि यहीं सत्य है मीना नाम का जीव बह रहा है युग-युगान्तर से युगचेतना के साथ युग पुरुषों की इच्छाशक्ति से सब गुरु मेरे अन्तर में ही तो समाए हैं अपना-अपना काम मुझसे करवाए हैं बारी-बारी आकर समय के हिसाब से मेरा अन्दर बाहर सब उनका ही आधार उनका ही आकार हो जाता है मीना अब कहाँ? कहाँ ढूँढ़े मीना अपने को बिना मोल खरीदा सबने इस जीव मीना को बस दृष्टि का आँख का भाव ही बता पाएगा यहीं यहीं सत्य को… यही सत्य है यहीं सत्य है !! प्रणाम मीना ऊँ

ज्ञान से तीसरा नेत्र खोलो : तीसरा नेत्र दिव्य चक्षु

हे मानव ! ज्ञान का विस्तार अर्थहीन हो जाता है अपना महत्व समेट लेता है जब मानव तत्व के बिन्दु तक पहुंच जाता है इस बिन्दु तक पहुँचने के लिए ज्ञान बहुत सहायक होता है। योगियों द्वारा सिखाया जाने वाला योग जीवन पर्यन्त, मृत्यु तक विस्तारित रहता है मोक्ष प्राप्ति हेतु! पर सबसे बड़ा सच है जीते जी इसी मानव शरीर में ही पूर्ण मुक्तावस्था या मोक्ष प्राप्त कर लेना ! मानव को फिर-फिर बार-बार जन्म न लेना पड़े। मोक्ष मिल जाए मुक्ति मिल जाए और जब-जब शरीर नष्ट हो या मृत्यु आए स्वास्थ्य ठीक रहे आजकल यही योग बता रहा है। जब तक शरीर रहे योग क्रियाएँ चलती रहें उसके बाद योग कुछ नहीं कहता। योग का काम आपको वो मोक्ष दिलाना है जिसके बाद क्या होता है उसका कुछ अता-पता ही नहीं। मोक्ष पाने के बाद का अनुभव क्या होगा उसे न आप बता सकते हैं न तथाकथित…

सृष्टि की दीवाली

जीवन्त पटाखे रंग-बिरंगे रोज छोड़े रोज तोड़े धूमकेतु पुच्छल तारे छोटे मोटे ग्रह न्यारे-न्यारे यहाँ से वहाँ तक ब्रह्माण्ड के अनन्त छोर तक अपनी मर्जी के मालिक स्वच्छन्द नटखट पूर्णता के खेल में रमे न थके न बुझे यह तो केवल मानव ही है जो कहे धरती की दीवाली पर पटाखे उड़े मिटे चले जले बुझे-अनबुझे जो करते रहते हमारी ही मानसिकता को तृप्त उस अनन्त रचयिता के पटाखे करते अपने को ही संतुष्ट अपना ही गुन गुनें अपने में ही जलें-बुझें कोई निहारे या न निहारे कोई पुकारे या न पुकारे कोई छुटाए या न छुटाए कोई जलाए या न जलाए अपनी मन की मौज से ही जलते तड़पते दौड़ते डूबते सरकते घूमते चमकते रगड़ते बने सृष्टि का हिस्सा कह रहे उसी का किस्सा फिर क्यों मानव मन चाहे उसे कोई जलाए बुझाए घुमाए रिझाए क्यों नहीं जलता अपनी ही आग से बुझता अपनी ही प्यास से क्यों नहीं…

आह्वान

पराशक्ति यहीं है मैं पूर्ण समर्पण में स्थित हुई तुम्हारे साथ विकसित हो रही हूँ तुम्हारे लिए विकसित हो रही हूँ। सच्चे जीवन की ओर जागृत हो जाओ। अहंकार त्याग, पवित्र प्रेम के पंखों के नीचे आओ। यही पूर्ण आनन्द का स्रोत है। पूर्ण समर्पण में कोई प्रतिशत नहीं। शत-प्रतिशत ही चाहिए। कालचक्र फिर घूमा है। श्रीकृष्ण चेतना तथा जगत मातृ चेतना एक ही शरीर में है। जो समय की मांग होती है वही प्रकृति उपलब्ध कराती है। उसे समझने जानने मानने को विवेक चाहिए। क्योंकि वही समयानुसार कर्म की प्रेरणा व शक्ति का स्रोत है। परमानन्द है। यही सत्य है !! प्रणाम मीना ऊँ

नवयुग का सुप्रभात

धरती पर सत्य का सूर्य उदय हुआ है- हमें प्रकाशित करने तथा अपूर्णता व अंधकार मिटाने के लिए। हमारे बीच एक ऐसा मानव है जिसके पास अपार प्रेम व ज्ञान की अनबूझ ज्योति है तथा सतत सत्कर्म में पूर्ण विश्वास है। इनका आह्वान है- रूढ़ियों से उठकर आत्मानुभूति को अपनाओ जो जीवन का अस्तित्व है। अपनी आत्म जागृति से ये वेद और विज्ञान को मिलाने में कार्यरत हैं। परमस्रोत से स्वत: इनमें ज्ञान प्रवाहित हो रहा है जो अंतर्दृश्यों, अंतर्ध्वनियों से प्रकट होकर ध्यान में लिपिबद्ध हो रहा है। यह ज्ञान अमृत है तथा इसमें पूर्ण ब्रह्मशक्ति है सत्य का तत्व है। एक मुस्कान जो कभी भी निराश नहीं करती। यही सत्य है !! प्रणाम मीना ऊँ

सत्य

सत्य था है और सदा सत्य ही रहेगा।तन मन आत्मा का सत्य। विचार वाणी कर्म का सत्य।सत्य सबका आधार है सत्य किसी पर निर्भर नहीं। सत्य ही सत्य तक किसी बाहरी शक्ति के बिना सहज स्वत: ही पहुंचता है। यही सत्य की शक्ति है। सूर्यमुखी प्राकृतिक रूप से ही सूर्य की ओर उन्मुख होता है। सत्य को कभी ढूंढ़ा या छोड़ा नहीं जा सकता।सत्य को सत्य होकर ही पाया जा सकता है।सत्य ही सत्य है :- स्वीकार करो या न करो अनुभव करो या न करो पहचान करो या न करो प्रशंसा करो या न करो ग्रहण करो या न करो अनुसरण करो या न करो उपासना करो या न करो उपदेश दो या न दो मन वचन कर्म एक ही सत्य से संचालित हों। जो सोचें वही बोलें वैसा ही कर्म करें- यही सत्य की अनुपम साधना है ! मनसा वाचा कर्मणा सत्य होना ही सत्य है। सत्य निरन्तर…

आकांक्षा करो

एक ऐसे संवेदनशील हृदय की जो सबसे नि:स्वार्थ प्रेम करे ऐसे सुंदर हाथों की जो सबकी श्रद्धा से सेवा करें ऐसे सशक्त पगों की जो सब तक प्रसन्नता से पहुंचे ऐसे खुले मन की जो सब प्राणियों को सत्यता से अपनाए ऐसी मुक्त आत्मा की जो आनन्द से सब में लीन हो जाए। यही सत्य है !! प्रणाम मीना ऊँ

लक्ष्य की ओर

पूर्ण शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य तथा आत्मा का विकास।पूर्ण उन्नत अवस्था के लिए प्राचीन तथा नवीन प्रणालियों का समन्वय।यह जानना कि रोग आंतरिक असंतुलन की बाह्य अभिव्यक्ति है।पूर्ण स्वास्थ्य तथा पूर्ण आत्मज्ञान के उच्च शिखर तक पहुँचने के लिए प्राकृतिक विधि से व्यक्ति का पूर्ण उपचार व अज्ञान का अंधकार भेदन।सत्य परम संतुलन है। सत्य दु:ख तपस्या है। असत्य ही असंतुलन है।मानव विकास के योग का ज्ञान।आत्मानुभूति और ज्ञान भक्ति एवं कर्म का विस्तार। प्रणाम मीना ऊँ

उत्थान हेतु पुरानी मान्यताएँ बदलो

पुरानी मान्यताएँ मापदंड बदलने होंगे उत्थान के लिए। भय को बदलो प्रेम में नाटकीयता को बदलो स्वयं सिद्धता में तथ्य सत्य में नियंत्रण को विश्वास में स्वयं की आलोचना को अपनी शक्ति में मानसिक शक्ति विज्ञान, ज्ञान को विद्वता में स्वतंत्रता आत्मनिर्भरता को एक-दूसरे की पूरकता में बदले को माफी में, आत्म-प्रताड़ना प्यार के ज्ञान, विद्वता में क्रोध को शक्ति में प्रेम की कमी को दिव्य ज्योतिर्मय प्रेम में घरेलू झगड़ों समस्याओं को ईमानदारी सत्य व्यवहार में अपनी बात मनवानी हो तो अपने में विश्वास रखो। सत्य जीओ ऊँ वाणी में सत्यता का बल शक्ति तभी आती है जब स्वयं सत्यरूप हो जाओ। नकारात्मकता को क्रियाशीलता में असहमति को कृतित्व में छवि को शक्ति में आंतरिक मूल्यांकन में जो तुम अपने लिए चाहते हो वही दूसरों के लिए चाहो और करो जो दूसरे तुमको समझते हैं वो उनकी अपनी आंतरिक झलक है दूसरे तुम्हें क्या समझते हैं इसी से उनका…

सबसे छोटा वेद

तुम कौन?… सत्य कैसे मानूं?… अनुभव करो अनुभव कराओ… अनुभव करने के पुरुषार्थ की क्षमता प्रकृति ने सबको दी है। जानो अपने सत्य से, पर जान लेने पर केवल सत्य के लिए और सत्यमय होकर ही जीना होता है। प्रणाम मीना ऊँ