एक बात

जय श्रीकृष्ण आज तुम आए हो भाग जगाए हो यही बताए हो कर्म न करने में कभी भी न हो आसक्ति तेरी यदि प्रभु कर्म न करें तो कैसे चले सृष्टि का कारोबार यही है जीवन का सार हर तरफ ज़ुदाई ही ज़ुदाई है प्रभु से ज़ुदाई ही तो खुदाई है और प्रभु से मिलन ही तो खुदाई से ज़ुदाई है यही सत्य है !! यहीं सत्य है !! प्रणाम मीना ऊँ

भीगा मन

मन भीगा-भीगा सा हो गया है मन खाली-खाली सा हो गया है मन अब कुछ भी याद रखना नहीं चाहता मन के साथ यह करिश्मा हो गया है क्या तू भी मेरा हो गया है हाँ…हाँ…हाँ… यही है सत्य जली इक श़मा अपना ही दिल जलाने को ताकि दुनिया को रोशनी दे सके शामे गम की कसम महफिल में अँधेरा होगा हमारे जाने के बाद बहुत दिए जलाओगे रोशनी के लिए यही सत्य है यहीं सत्य है प्रणाम मीना ऊँ

मीना मिट्टी का एक कण

मिट्टी का एक कण खाक का इक ज़र्रा मीना रास्ता भी यहीं, मंजिल भी यहीं सारी तालाशें खत्म हो गईं रास्ता ही मंजिल बन गया मंजिल ही रास्ता बन गई मीना न कहीं गई, न आई न आई न गई यहीं की थी यहीं रही और यहीं रह गई मिट्टी मिट्टी में मिल गई कोई कर्मयोगी कोई प्रेमयोगी कोई सत्ययोगी फिर छान लेगा इस मिट्टी को और ढूँढ़ ही लेगा मीना को मीना के होने को उसके जीने को, उसके मरने को उसके तुम में समाने को खाक के खाक हो जाने को तुम्हीं तुम तो हो सब जगह सब तरफ ओ मेरे मन ओ मेरे मन मोहना यही सत्य है !! यहीं सत्य है !! प्रणाम मीना ऊँ

मेरा मन

मैं और मेरी तन्हाई तन्हाई में पाना अपने को अपने मन को मीना के मन को मैं और मेरी तन्हाई मैं और मेरा मन मनु और मनु मन मीना और मीना का मन अक्सर बातें करते हैं ढेर-सी बातें मेरी उदासी मेरी तन्हाई सबसे प्यारी मन भाई मन को भायी लुभायी सारी खुदाई में बस यही तन्हाई तो मुझे रास आई इसी तन्हाई में पाई खुदाई इसी तन्हाई से पाई खुदाई यही है सच्चाई खुदाई से खुदा तक का सफर तय किया मीना मनु के मन ने यही सत्य है !! यहीं सत्य है !! प्रणाम मीना ऊँ

आँसू की बूँद जो बन गई मोती

आँसू की बूँद जो बन गई मोती पानी बहुत ही शान्त एकदम ठहरा पानी कहे आँखों का पानी शान्त रहना है खाली रहना है हवा का रुख देखना है सुबह की सुनहरी किरण क्या संदेशा लाई है यही देखना है संदेश का रूप देखना है पहचानना है अनन्त के इस रूप को अपने ही में धीरे-धीरे घूँट-घूँट बूँद-बूँद रिस-रिस कर, पी-पी कर अन्तर तक ऐसे समाकर कि अन्तर का स्वरूप ही मिट जाए सारा अस्तित्व जैसे एक संदेश ही बन जाए एक एक रोम-रोम यही गाए, यही गाए तुम आओ न, आओ मेरा पूरा का पूरा रूप तुम्हारा स्वरूप बन जाए तुम्हारा ही गुन गाए तुम्हारा ही प्रकाश फैलाए यही सत्य है !! यहीं सत्य है !!

बिन्दु

मैं मेरा मन मेरा खुदा मेरी आत्मा और मेरी तन्हाई एक ही तो है खुदा और खुदाई सारी खुदाई में मैं और मेरी तन्हाई यही तन्हाई मन भाई यही है सच्चाई यहीं है सच्चाई मैं मेरा मन मेरा खुदा मेरी आत्मा और मेरी तन्हाई मैं पाँच ही हूँ मैं अकेली अकेली कहाँ हूँ सारी खुदाई में मैं और मेरी तन्हाई यही तन्हाई मन भाई यही है सच्चाई यहीं है सच्चाई यही सत्य है !! यहीं सत्य है !!

ज्ञान-सागर

ज्ञान-सागर में सागर रत्नाकर प्रभाकर सुधाकर करे ध्यान उजागर भरे मन की गागर स्मृति अनन्त सागर स्मरण की बना मथनी, इच्छा की लगा शक्ति बुद्धि की बना डोर ध्यान का लगा जोर काल का चक्र घुमा पाया अनमोल रत्न ज्ञान का वेद विज्ञान का, मानव विधान का नव निर्माण का, कर्म प्रधान का सत्य विहान का, प्रेम समान का विश्व कल्याण का, प्रणाम अभियान का महाप्रयाण की इससे अच्छी तैयारी और क्या होगी पूर्ण होकर ही पूर्ण में लय होने की पूर्णता के पूर्णता में विलय की अंतिम तैयारी पूर्ण हुई प्रभु कृपा कृपा ही कृपा अपार - नमन बारम्बार… यही सत्य है यहीं सत्य है

एक बुलबुला

मीना एक खाली बुलबुला भर गया प्रभु कृपा से सारे भृगु मनु और वेदव्यास समा गए इस मीना नामधारी ज्योति पुंज में मैं ही राम मैं ही रहीम मैं ही सीता मैं ही गीता मैं ही बुद्ध मैं ही कृष्णमयी मीन मीनावतार जब से बनी सृष्टि मैं थी थी… मैं हूँ हूँ… मैं रहूँगी रहूँगी ही मैं न नर न मादा बस एक आत्मा ज्योतिस्वरूप प्रकाशपुंज यही सत्य है यहीं सत्य है

गुरुपूर्णिमा

ऊँ हृीं श्री सर्वगुरु समूह अत्रावतरावतर संवौषट् ऊँ हृीं श्री सर्वगुरु समूह अत्र तिष्ठï तिष्ठï ठ: ठ: ऊँ हृीं श्री सर्वगुरु समूह अत्र ममसन्निहितो भवभव वषट् रोम रोम कृतज्ञता से भरे मेरा मन अंजान प्रभु कैसे करूँ अपनी छोटी-सी बुद्धि तुच्छ जुबान औ' कमजोर कलम से तेरी कृपा बखान सभी कुछ तो पूर्ण ब्रह्माण्ड ही भर दिया मेरे अन्दर इससे ज्यादा पूर्णता क्या होगी मुझे अपने में समा खुद मुझमें समा मुझे पूर्ण कर दिया कृष्ण हैं अब राधा स्वरूप नर को होना होगा नारी रूप तभी जानेगा दर्द राधा का होगा पूर्ण तब रूप अर्धनारीश्वर का जगद्गुरु का यही सत्य है !! यहीं सत्य है !!

आँखों का भाव

यहीं है सत्य, मीना की आँखों में आँखों के भाव में यही सत्य है कि यहीं सत्य है मीना नाम का जीव बह रहा है युग-युगान्तर से युगचेतना के साथ युग पुरुषों की इच्छाशक्ति से सब गुरु मेरे अन्तर में ही तो समाए हैं अपना-अपना काम मुझसे करवाए हैं बारी-बारी आकर समय के हिसाब से मेरा अन्दर बाहर सब उनका ही आधार उनका ही आकार हो जाता है मीना अब कहाँ? कहाँ ढूँढ़े मीना अपने को बिना मोल खरीदा सबने इस जीव मीना को बस दृष्टि का, आँख का भाव ही बता पाएगा यहीं यहीं सत्य को… यही सत्य है !! यहीं सत्य है !!