मूलरूप
तू खुशबू है तुझे कैसे गिरफ्तार करूँ मैं जो जल गया मैं जो मिट गया मैं जो मिट गया जल गया गल गया बह गया उड़ गया मिल गया अग्नि अग्नि में पानी पानी में आकाश आकाश में हवा हवा में पृथ्वी पृथ्वी में समा गया और बन गया तेरा ही मूलरूप जिसमें मिला दो लगूँ उस जैसी यही है उसका रंग मैं तो यही जानूँ हूँ बस अब वो ही वो है, वो ही वो है वो ही वो तो है मैं कहीं नहीं, मैं तो कहीं नहीं, कहीं नहीं कहीं भी नहीं यही सत्य है यहीं सत्य है !! प्रणाम मीना ऊँ