दर्द का सलीब

मैंने सबका सलीब ढोया है मैंने सबका दर्द भोगा है पूरा का पूरा तुम लोगों ने तो टुकड़ों-टुकड़ों में भोगा है सिर्फ एक-दो तरह का मैंने हर तरह का दर्द भोगा है सबका सलीब ढोया है मैं तुम सबका दर्द जानती हूँ…हूँ न इसलिए कि जो ऊँ तुम्हारे अन्दर है वही तो मेरे अन्दर भी है तुमसे मिल गया है समा गया है समाहित होकर ही जाना जा सकता है कि तुम तो वही हो जो मैं हूँ और ना मैं हूँ न तुम हो… अब वो ही वो तो है वही तो है केवल सच सिर्फ सच मेरा तुम्हारा सबका सच प्यार से प्यारा सच बस सच ही सच जिसे सिर्फ शत-प्रतिशत पूर्णरूप से सच होकर ही जाना जा सकता है पाया जा सकता है ढूँढ़ना नहीं है ढूँढ़ना नहीं होता बस पाना होता है यही सत्य है - यहीं सत्य है !! प्रणाम मीना ऊँ

ज़हर पीना जि़न्दगी का

शिवजी की तरह ज़हर पीती है मीना ताकि तुम सब खुश रह सको क्या जानता है यह बात कोई शिवजी ने पीया सबने जाना मीना ने पीया किसी ने न जाना यही तो और मजा है पीने का जीने का तभी तो मुस्कुराती रहती हूँ कि कोई भी कुछ नहीं जानता कैसे-कैसे हादसे सहते रहे और मुस्कुराते रहे यही सत्य है यहीं सत्य है प्रणाम मीना ऊँ

युगचेतना का तत्व आत्मगीत

मैं युगचेतना हूँ गीता हूँ सुगीता हूँ वेद हूँ विज्ञान हूँ विधि का विधान हूँ जैसा प्रकृति ने चाहा वही इंसान हूँ मानसपुत्री प्रकृति की सर्वोत्कृष्ट कृति धरती की सर्वोत्कृष्ट कृति प्रकृति की संभवामि युगे-युगे हूँ पूर्ण हूँ पराशक्ति वही तो हूँ, कर्मयोगी हूँ धर्मयोगी हूँ सत्ययोगी हूँ यही सत्य है यहीं सत्य है उगा सूर्य सत्य का सतरंगी रास पकड़ ले सत की अनमोल धरोहर सात घोड़ों के रथ पर सवार करने को जगतोद्धार जीवन नहीं व्यापार, जीवन नहीं व्यापार उञ्चास मरुतों का साथ अन्तर ज्ञान-विज्ञान संगीत अपार लय-ताल का अद्भुत संगम तब जीवन क्यों हो दुर्गम? यही बताने आए कृष्ण बार-बार ले परा शक्ति अपार इस बार सीखो जगत् व्यवहार धर्म है अपूर्णता को नकार कर्म है पूर्णता को कर अंगीकार वाह वाह भारत की भारत ने सदा दिया है युग पुरुष का युग पौरुषी का शिवशक्ति का सत्यम् शिवम् सुन्दरम् का अद्भुत संगम फिर एक बार पूर्ण…

छोटा-सा ज्ञान

हे मानव! ध्यान से सुन अपने अस्तित्व की गाथा इतना छोटा-सा ज्ञान क्यों तेरी समझ नहीं आता मानव एक छोटा-सा अणु ब्रह्माण्ड का उसी से जुड़ पूर्णता पाता पूर्णता पाकर अलग हो जाता अलग हो जाता अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाता पूर्णता के मंत्र से ही उत्पत्ति पाता क्या ब्रह्माण्ड का घट जाता सारे शरीर में व्याप्त अणुओं का अगणित गणित चलाता अपना ही व्यवहार जहाँ है ही नहीं कोई व्यापार बस पूर्णता से पूर्णता प्राप्त कर पूर्ण से अलग होकर भी तू हो सकता केवल ध्यान से ही पूर्णता से कृतित्व में रत तभी तो होता है तेजोमय प्राणतत्व तभी तो होता है तेजोमय प्राणतत्व यही सत्य है !! यहीं सत्य है !! प्रणाम मीना ऊँ

नया युग

नया युग नई बात अब न चलेगी झूठ की घात करनी होगी ऐसी भावी पीढ़ी तैयार जो करे अपूर्णता पर वार रहा समय निहार कहे कण-कण पुकार हो धरती माँ का श्रंगार फैले सत्य प्रकाश और प्यार यही तो है प्रणाम का आधार यही सत्य है !! यहीं सत्य है !! प्रणाम मीना ऊँ

माँ कृपा अपार

माँ कृपा अपार प्रेम से जीते संसार तेज पुंज सब देवों का रूप धरे शक्ति का करे हुंकार, काँपे संसार हुं हुं हुंकार, करे प्रचंड वार अपूर्णता संहार करे सत्यम् शिवम् सुन्दरम् का प्रसार आह्लाद अपार आनन्द विस्तार निश्छल प्रेम व्यवहार ही करे निस्तार यही सत्य है !! यहीं सत्य है !! प्रणाम मीना ऊँ

पूर्णता का मंत्र

समिष्टि का संकीर्तन मैं मीना शरीर में पूर्ण हूँ प्रणव हूँ प्रत्यक्ष हूँ प्रमाण हूँ वेद हूँ विज्ञान हूँ वेद विज्ञान मिलन हूँ मैं मीना शरीर में युगचेतना हूँ, समिष्टि का संकीर्तन हूँ समय की किताब पर श्रीकृष्ण का हस्ताक्षर हूँ, मैं वही तो हूँ यही सत्य है यहीं सत्य है !! प्रणाम मीना ऊँ

कौन बाँधेगा मुझे

मैं मीना प्रकृति की पुत्री प्रकृति की ही अनुकृति न बँधी थी न बँध रही हूँ न बँध के रहूँगी मैं खुशबू का झोंका मस्त पवन की बहार बहती नदी का बहाव एक लहर किनारे तक पहुँच ही दम ले समुद्र में समा फिर बादल बन चल दे कौन बाँधेगा मुझे प्रकृति की चाल को शायद कोई हिमालयी चट्टान जैसे व्यक्तित्व वाला निर्बाध अनन्य निश्छल प्रेम पगा कृष्ण चेतना वाला जो मुझे बाँधकर घेरकर साफ पानी की झील बना दे जो सदा नीलमणि-सी चमके आँख के तारे-सी दमके आँख के तारे-सी दमके सबको प्रकृति के स्वरूप का कराए अमृतपान देकर मानव को अनन्त प्रेम धाराओं का दान जो बाँधेगा बहती मीना को वही देगा मानसरोवर धरा को एक पावन पुण्य देवभूमि जैसे स्वर्ग धरा पर जन्नत जमीं पर मीना के मन वाली होगा कोई अनन्य जो जानेगा मीना का मन धरूँ ध्यान बाँटू ज्ञान करूँ दूर पूर्ण अज्ञान वेदों का…