प्रणाम मंगलम्

मंगलम् प्रणाम मंगलम् सत्य जीवन मंगलम् प्रेम धर्म मंगलम् कर्म प्रसार मंगलम् प्रकाश विस्तार मंगलम् प्रकृति विधान मंगलम् प्रणाम सुगीता मंगलम् जीवन आनन्द मंगलम् प्रणाम बंधु मंगलम् प्रणाम बंधुत्व मंगलम् प्रणाम एकत्व मंगलम् विश्व कल्याण मंगलम् वेद भारत मंगलम् सनातन ज्योति मंगलम् भारत भारती मंगलम् परम ब्रह्मïवेत्ता मंगलम् अनन्त ब्रह्मïाण्ड मंगलम् सम्पूर्ण सृष्टिï मंगलम् चेतन तत्व मंगलम् परम चैतन्य मंगलम् अथक पुरुषार्थ मंगलम् प्रणाम प्रसार मंगलम् मंगलम् प्रणाम मंगलम् यही है सत्य यहीं है सत्य प्रणाम मीना ऊँ

ज्ञान की सार्थकता

ज्ञान की सार्थकता तो सत्य जानकर सत्य होकर सच्चिदानन्द में विलय होने में है परमानन्द को पाकर सम्पूर्ण ज्ञान द्वारा परमानन्द फैलाना है कर्म औ' पूर्ण शक्ति से ज्ञान का प्रकाश फैलाना ही धर्म है सत्य ज्ञान प्रवचन करना नहीं सिखाता है सत्य ज्ञान तो सत्य कर्म का वो रास्ता बताता है जिसे जीकर अनुभव कर सत्यमय होना होता है सत्यमय होकर ही सत्य बताना होता है यही सत्य है यहीं सत्य है प्रणाम मीना ऊँ

स्तुति

ओ प्रभु मुझे दृढ़ता साहस व शक्ति दो सद्विचारों व सत्य दूरदर्शिता को कर्म में बदलने की एक ऐसी अद्भुत क्षमता दो जो जड़-चेतन सबमें एकाकार हो समस्त सृष्टि में लीन हो जाए जो सब मानव-मस्तिष्कों का भाव एक कर सत्य पे्रम व प्रकाश द्वारा शान्ति और आनन्द के प्रसार का सर्वत्र जन अभियान चला दे यही सत्य है यहीं सत्य है प्रणाम मीना ऊँ

मेरा तेरा एक ही प्राण

झूला जरा धीरे से झुलाओ ओ सांवरिया प्रभो तुम ही तो भेजते हो जगह-जगह क्यों कृष्ण क्यों जगह-जगह फिराए तुम्हारा विरह जो भी काम कराने हैं जिनके भी कर्म धुलवाने हैं ज्ञानचक्षु खुलवाने हैं तुमने मेरे कदम वहीं पहुँचाने हैं क्यों चुन लिया मुझे ही यही तो बात है मीना के मुस्कुराने की अन्तर में दर्द छुपाने की दिल में अपार विरह ऊपर मनोहारी मुस्कान करे निसदिन तेरा गुणगान प्रभो न देना अभिमान मेरा तेरा एक ही तो प्राण यही सत्य है यहीं सत्य है प्रणाम मीना ऊँ

सबकी आत्माओं का आह्वान

आओ मिलकर करें सृजन जान लो सब आया संदेशा माई का जो सुनेंगे पाएँगे जीवन का दर्शन ज्ञान-ध्यान वेद विज्ञान सत्य प्रेम औ' कर्म का महामंत्र जो देगा शक्ति अनन्त करने को स्थापित प्रकृति का सत्य मानव का कृत्य इस धरा पर सुखदां वरदां शस्य श्यामला वसुंधरा पर या किसी से कुछ सीखो या कुछ सिखाओ यही जीवन का ज्ञान है पाँच तत्व पूर्ण प्रणव प्रमाण प्रत्यक्ष प्रणाम यही सत्य है यहीं सत्य है प्रणाम मीना ऊँ

शब्द साकार ब्रह्म

हे मानव! शब्द के सार से ही संचालित है समस्त संसार का व्यवहार, इसकी महिमा जानकर जीवन सुधार। एक-एक शब्द में संसार समाया है। एक भावपूर्ण प्रेममय शब्द में असीम शक्ति निहित है। आज विज्ञान भी शब्दों की ध्वनि व भाव से उत्पन्न कम्पन गति (वाइब्रेशन) का सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त होने को मान रहा है। हमारे वैज्ञानिक ऋषियों ने सदियों पहले इसी ऊर्जा का ध्यान द्वारा अनुभव कर मंत्रों की कुंजियाँ हमें प्रदान कीं। जो भी शब्द नकारात्मक या सकारात्मक भाव से ब्रह्माण्ड में उछाल दिए जाते हैं वे वैसी ही सुगति या दुर्गति हमें लौटाते हैं। यहां तक कि विचारों में भी सोचे गए शब्द यही प्रतिक्रियाएँ आकर्षित करते हैं। अच्छा, मधुर, सबका शुभ करने वाले शब्दों का प्रसार मुख, मन व मस्तिष्क से करो तो प्रकृति भी उसे द्विगुणित कर प्रसारित करती है। एक से अच्छे विचारों व शब्दों वालों की एक अनदेखी संस्था होती है चाहे…

सबसे बड़ा आश्चर्य

हे मानव! सबसे बड़ा आश्चर्य यही है कि जब पराशक्ति मानवों को अपने ही बनाए हुए चक्रव्यूहों से निकालकर किसी महान उद्देश्य की ओर इंगित व अग्रसर करने का सत् संकल्प किसी एक उन्नत मानव के अन्तर, अस्तित्व में प्रस्फुटित करती है तो भावानुसार वैसे ही कुछ मानवों को भी अवश्य ही तैयार कर लेती है जो स्वेच्छा से स्वत: ही उसमें योगदान को तत्पर होते हैं। जो परमबोधिनी शक्ति सत्य को अवतरित करती है वो ही उसे पूर्णता तक पहुँचाने के माध्यम भी कालानुसार जुटा देती है। इस संदर्भ में शास्त्रानुसार, शक्ति बल बुद्धि और दृढ़निश्चयी हनुमान जी और अर्जुन जैसे निद्राजयी महाबाहो एक लक्ष्यधारी जैसे प्रतीकात्मक स्वरूप मानव, हर युग में हर अवतारी के साथ होते हैं। यही विधि का विधान है मानवों को प्रकाशित कर सत्यता का मार्ग प्रशस्त करने का, संभवामि युगे-युगे का। जहाँ तक भी प्रणाम के पाँचजन्य- प्रणाम संदेश का शंखनाद पहुँचे, सत्य प्रेम…

परमदाता

मैं अपने सृजनहार की ओर अनुकम्पा के लिए मुड़ी मुझे प्रकृति में ही सांत्वना मिली और देखो तो प्रकृति ने मुझे सब कुछ दिया मेरी सारी भावनात्मक आवश्यकताओं को थपथपाया ऊर्जा दी सांसारिक कर्मों व दिव्य कृत्यों के लिए तृप्त किया मेरी ज्ञान पिपासा को भेदा मेरी दुविधाओं के बादलों को मिटा डाले सभी संशय और भ्रम इसी धरती पर मेरे अस्तित्व और ब्रह्माण्ड के रहस्यों के उत्तरित हुए प्रश्न सभी तब किया जाकर आलिंगन मैंने परम पवित्र चेतना का हुआ सफर आरम्भ दो अभिन्न सहयात्रियों का एक-दूसरे को जानते हुए महसूस करते हुए एक ही समय में एक ही विचार से सचेत आत्मा के अहसास समेत वह सोच जो सोची नहीं जा रही वह विचार जो विचारा नहीं जा रहा एक सौंदर्यमय होनी अद्भुत चमत्कृत होनी न दुविधा न ध्रुवीकरण पूर्ण निरंतरता नित्यता अब है निवास मेरा पूर्ण विलय के केंद्र बिंदु में एक ऊर्जा पुंज सभी ऊर्जा स्तरों…

देवनहार प्रभु

परमदाता परमेश्वर प्रभु सिर्फ देता ही देता है किसी को कुछ किसी को कुछ किसी को खुशी किसी को गम किसी को साथ किसी को अकेलापन किसी को धन किसी को मन किसी को आराम किसी को कर्म किसी को सेवा किसी को ज्ञान किसी को भक्ति किसी को मर्म जलवायु आकाश मिट्टी ताप विस्तार प्रसार वरदान शाप सुपात्र अनुरूप जीवन का अंत तभी तो उसके रूप अनंत यही सत्य है यहीं सत्य है प्रणाम मीना ऊँ