जीवन एक प्रतीक्षा है क्या
हे मानव! कुछ तो सोच जरा- बच्चा सोचे कब बड़ा होऊँ बड़ों की तरह रहूँगा व्यवहार करुँगा आदि-आदि बच्चे को बड़ा होने की प्रतीक्षा। पढ़ाई पूरी कर कमाने की प्रतीक्षा कमाना शुरु करते ही सही साथी की या शादी की प्रतीक्षा। फिर प्रतीक्षा की लम्बी कड़ी प्रतीक्षा ही प्रतीक्षा कब बच्चे हों बड़े हों फिर उनका जीवन संवार कर उनको व्यवस्थित करने की प्रतीक्षा। फिर कब बूढ़े माँ-बाप से छुटकारा हो और जायदाद हाथ में आ जाए इसकी प्रतीक्षा। सदा प्रतीक्षा ही प्रतीक्षा। प्रतीक्षा करना जैसे एकमात्र आवश्यक नितकर्म हो गया हो। यह हो जाए तो वह करेंगे वह हो जाए तो यह करेंगे। प्रतीक्षा और बहाने एक दूसरे के पर्याय हो गए हैं। इस प्रतीक्षा में कब स्वयं बूढ़े हो जाते हैं पता ही नहीं लग पाता। यह कैसी किसकी और क्यों अन्तहीन प्रतीक्षा है। इस प्रतीक्षा ही प्रतीक्षा में कब जीवन चूक और चुक जाता है पता ही…
प्रणाम है : सत्य की शक्ति
प्रणाम-सत्य की वो शक्ति जो अतीन्द्रिय मानव जैसा कर्म, सम्पूर्ण मानव जाति को महानता, दिव्यता की ओर ले जाने का, करने के लिए तत्पर और उद्यत है। सत्य की यह ओजमयी दिव्य शक्ति केवल आन्तरिक दिव्यता जागृत करने और औरों का भी उत्थान करने से प्राप्त होती है अवतरित होती है। कोई भी गणना योजना विधि या तकनीक मानव को महान नहीं बना सकती यह तभी होता है जब ब्रह्माण्डीय युग चेतना, Universal era Consciousness, से जुड़ने पर एकात्म और एकत्व का भाव जागे। ऐसा भाव प्रसार होने पर, सत्यधर्म की एक ऐसी बलवती शक्ति का प्रस्फुटन होता है जो इस सर्वाेत्कृष्ट उद्देश्य का आधार बनती है-कि समस्त विश्व को मानवता हेतु शोभामय व सौन्दर्यपूर्ण स्थली बनाना है। वसुधैव कुटुम्बकम् का वेद वाक्य सत्य सिद्ध करने की दिशा में अग्रसर होना है। सत्यात्मा का मानव धर्म सुनिश्चित व स्पष्ट होता है। किसी भी व्यवधान का कोई भी, रत्ती भर भी…
प्रणाम धर्म
प्रणाम का धर्म मानवता है जो प्रकृति के नियमों की सत्यता पर आधारित है। मानव जीवन का सत्य क्या है कैसे मानव अपने अन्दर छुपी दिव्य शक्तियों को उजागर कर विश्व में सत्य प्रेम व प्रकाश का प्रसार कर सकता है इसी का मार्गदर्शन प्रणाम में उदाहरण बनकर मिलता है। प्रणाम का कर्म- वेदभूमि भारत की गौरवमयी संस्कृति के सौंदर्य की पुन: स्थापना करना। उसका मानव के शरीर मन व आत्मा के उत्थान में क्या महत्व है इसका सत्य बताकर स्वयं ही उत्थान के मार्ग पर अग्रसर होने की प्रेरणा देना है। प्रणाम मीना ऊँ
सबसे बड़ा आश्चर्य
हे मानव! सबसे बड़ा आश्चर्य यही है कि जब पराशक्ति मानवों को अपने ही बनाए हुए चक्रव्यूहों से निकालकर किसी महान उद्देश्य की ओर इंगित व अग्रसर करने का सत् संकल्प किसी एक उन्नत मानव के अन्तर, अस्तित्व में प्रस्फुटित करती है तो भावानुसार वैसे ही कुछ मानवों को भी अवश्य ही तैयार कर लेती है जो स्वेच्छा से स्वत: ही उसमें योगदान को तत्पर होते हैं। जो परमबोधिनी शक्ति सत्य को अवतरित करती है वो ही उसे पूर्णता तक पहुँचाने के माध्यम भी कालानुसार जुटा देती है। इस संदर्भ में शास्त्रानुसार, शक्ति बल बुद्धि और दृढ़निश्चयी हनुमान जी और अर्जुन जैसे निद्राजयी महाबाहो एक लक्ष्यधारी जैसे प्रतीकात्मक स्वरूप मानव, हर युग में हर अवतारी के साथ होते हैं। यही विधि का विधान है मानवों को प्रकाशित कर सत्यता का मार्ग प्रशस्त करने का, संभवामि युगे-युगे का। जहाँ तक भी प्रणाम के पाँचजन्य- प्रणाम संदेश का शंखनाद पहुँचे, सत्य प्रेम…
रुकना कब जाने मीना
आगे बढ़ना ही होगा रुकना कब जाने मीना तुमको कदर नहीं तुमको खबर नहीं तुमको सबर नहीं तो ये चली मीना बही मीना सही मीना कब कहाँ रही मीना न यहाँ न वहाँ पारे की तरह पारदर्शी मीना फिर भी न जाने मीना हैरान है मीना क्यों नहीं समझ पाए जमाना कि क्या है मीना वेदमयी सत्यमयी प्रेममयी मीना कर्म दीवानी मीना प्रभु की कहानी मीना यही सत्य है यहीं सत्य है प्रणाम मीना ऊँ
प्रणाम माना मार्ग
सत्य प्रेम कर्म प्रकाश का मंगलकारी चतुर्भुज प्रथम मंगलकारी एक ओंकार नाम तन मन छाए अनन्त परम विश्राम सत्यरूप का जो मानव करता ध्यान हो जाए प्रेममय स्वरूप भगवान दूजा मंगलकारी पावन आत्मवान कर्म बंधन तोड़ प्रकाशित मुक्तिवान ऐसी सुवासित आत्मा को जो सिमरे तन-मन-बुद्धि का सब संताप बिसरे तीसरा मंगलकारी सच्चा ऋषि-संत कलियुग तारण निर्मल सत्संग प्रेमयुक्त योगी परमात्म समरूप दिखलावे जीवन का सत्य स्वरूप चौथा मंगलकारी माना मार्ग यह मान सत्य स्थापन हेतु आया यह जान प्रकाशमय सदा अपने आपको भान साध कर्म नित निरतंर धर्म प्रधान सर्वमंगलकारी सतकर्म प्रेम प्रकाश मंगलमय करे पूर्ण धरती आकाश सत्यम् शिवम् सुन्दरम् ये चारों धाम इस ज्योतिर्मय चतुर्भुज को प्रणाम बस प्रणाम ही प्रणाम बस प्रणाम ही प्रणाम यही है सत्य यहीं है सत्य प्रणाम मीना ऊँ
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